धमतरी/कुरुद: आजादी के बाद से अब तक देवार समाज के लोगों को शासन से आशियाना तक नसीब नहीं हुआ. शिक्षा,रोजगार और सभ्यता की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती. देवार समुदाय का सामाजिक परिदृश्य आज भी जैसा का वैसा बना हुआ है. शासन-प्रशासन के तमाम दावे खोखले नजर आते हैं.
बताया जाता है कि देवार जाति के लोग पहले स्थाई रूप से निवास करते थे और जंगल ही उनके जीविकोपार्जन के साधन होते थे. कालांतर में इस समुदाय का जीवन घुमंतू हो गया. देवार समुदाय कला में निपुण होने के कारण गोदना गोदने का भी काम करते हैं. द्वार-द्वार जाने के कारण इस समुदाय का नाम देवार पड़ा है. मौजूदा वक्त में इनके परंपरागत व्यवसाय में बदलाव हुआ है. अब महिलाएं गांव, गली, शहर, मोहल्ले में घूम -घूमकर कबाड़ इकट्ठा करती है और पुरुष वर्ग साइकिल और अन्य साधनों से घूम-घूम कर कबाड़ के सामान खरीदते है. अच्छी बात है कि इस समुदाय के बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं.
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इस समुदाय के 50 से 60 परिवार झोपड़ी बनाकर कुरुद में रह रहे हैं. जनजातिय संस्कृति के संवाहक होने के कारण यह प्रकृति की पूजा करते हैं. देवार समुदाय के लोगों ने बताया कि आज तक शासन प्रशासन की योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिला और ना ही कभी अधिकारी उनकी सुध लेने आये. कुरुद नगर पंचायत से राशन कार्ड बन चुका है. इसके अलावा कोई भी लाभ नहीं मिल पा रहा है.
अधिकारियों ने दिया आवास दिलाने का आश्वासन
इन परिवारों का कहना कि सरकार उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मुहैया करा देती तो उन्हें बरसात से बचने एक छत मिल जाती. बरसात के दिनों में सामुदायिक भवनों में शरण लेनी पड़ती है. इस समुदाय के लोग छोटी छोटी टोली बनाकर और घूम घूमकर जीवन यापन करते है.बहरहाल, जिला प्रशासन का कहना है कि यदि ये लोग एक जगह पर रहने को तैयार हो जाए तो उन्हे शासन की सभी योजनाओं का लाभ मिल सकता है. उन्हें आवास मिल जाए इसकी पूरी कोशिश की जाएगी.