दंतेवाड़ाः सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के आदिवासी समाज ने जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए एक बार फिर अभियान शुरू किया है. सोमवार को भूमकाल दिवस पर एक बार फिर इलाके के सर्व आदिवासी समाज के लोगों ने नंदराज बचाओ अभियान शुरू किया. आदिवासी समाज ने पंचायत संघर्ष समिति की अगुवाई में अभियान के लिए एकजुटता दिखाई है.
आदिवासी क्रांतिकारियों की याद में 10 फरवरी को मनाए जाने वाले भूमकाल दिवस के दिन बैलाडीला के नंदराज पर्वत पर हजारों आदिवासी लगभग 15 किलोमीटर पदयात्रा कर पहुंचे और आदिवासी विधि विधान से पूजा अर्चना कर खदान का बहिष्कार करने का संकल्प लिया. यहां आदिवासी नाट्य मंडली ने परंपरागत नृत्य और गीत के माध्यम से जल,जंगल और जमीन को बचाए रखने की अपील की है.
जल,जंगल और जमीन बचाने के लिए भूमकाल विद्रोह
पंचायत संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों के अनुसार साल 1910 में वीर गुंडाधुर और वीर गेंद सिंह ने जल,जंगल और जमीन सहित अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए भूमकाल विद्रोह किया था. हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाया जाता है. तीनों जिले के आदिवासी समाज के लोग NMDC खदान डिपॉजिट नंबर 13 पर स्थित देवधाम पेटोडमेटा में पहुंचे, जहां उन्होंने परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की.
संस्कृति बचाने के लिए अंतिम सांस तक लड़ाई
सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेत्री सोनी सोरी ने बताया कि इस पहाड़ से ग्रामवासियों की आस्था जुड़ी हुई है, जिसे अडानी ग्रुप को खनन के लिए दिए जाने से आदिवासी समाज ने नाराज होकर पिछले साल जून महीने में बड़ा आंदोलन किया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने इस खदान में चल रहे सभी काम को रोकने का आदेश दिया था. उन्होंने पुलिस प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा है कि नंदराज को बचाने की मुहिम में लगे लोगों को पुलिस नक्सली बताकर मार रही है, लेकिन हम अंतिम सांस तक आदिवासी आस्था को बचाने के लिए लड़ते रहेंगे.