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एक वारदात ने बदल दी कैदियों की जिंदगी, 'अंगूठाछाप' आते हैं और 'जेंटलमैन' बनकर जाते हैं

2007 में जिला जेल दंतेवाड़ा में जेल ब्रेक के बाद आज 2019 में इस जेल की तस्वीर बिल्कुल बदल गई है.

जिला जेल दंतेवाड़ा
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Published : Sep 29, 2019, 7:55 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 8:35 PM IST

दंतेवाड़ा : जिला जेल दंतेवाड़ा, इसका नाम लेते ही 2007 का वो जेल ब्रेक कांड याद आ जाता है, जिसमें 299 कैदी जेल से भागने में कामयाब हुए थे. उन्हें पकड़ने में पुलिस आज भी असफल है, लेकिन इस बदनामी के कलंक को मिटाने के लिए जिला प्रशासन और जेल प्रबंधन कैदियों को डिजिटल साक्षरता अभियान से जोड़ रही है, ताकि यहां बंद कैदी शिक्षित हो सके और जब वे यहां से रिहा हो तो जेल की बदनामी के साथ नहीं बल्कि इसकी अच्छाई के साथ आगे बढ़े.

पैकेज.

दंतेवाड़ा जेल ब्रेक के इस कलंक को धोने के लिए जेल प्रशासन ने कैदियों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है. इस जेल में 50 प्रतिशत अनपढ़ कैदी हैं. जिन्हें शिक्षित करने और व्यस्त रखने के लिए जेल प्रशासन हर मुमकिन कोशिश कर रहा है. सबसे पहले इन बंदियों को a b c d सिखाई जाती है. जब वह पढ़ना सिख जाते हैं, तो कम्प्यूटर से बेसिक ज्ञान दिया जाता है. तीन महीने की पढ़ाई पूरी होने पर इनका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. सभी कैदी इस परीक्षा में बैठते हैं और पास होने पर उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाता है. जेल अधीक्षक जीएस सोरी बताते हैं कि कैदी अंगूठाछाप आते हैं और कम्प्यूटर में दक्ष हो कर जाते हैं.

2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित
वहीं जेल आरक्षक मोहन राव ने कहा कि इस प्रयास के लिए साल 2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया. इस प्रयास को और सफल बनाने के लिए तत्कालीन कलक्टर ने भी जेल प्रबंधन की काफी मदद की. जेल प्रवंधन को 10 कम्प्यूटर और 30 लैपटॉप दिए. अब इस जेल में एक भी बंदी निरक्षर नहीं हैं.

क्यों था दंतेवाड़ा जेल बदनाम

  • साल 2007 में दंतेवाड़ा जेल से 299 कैदी भागे थे.
  • दंतेवाड़ा पुलिस ने लगभग 140 कैदियों को ही पकड़ने में सफलता पाई.
  • साल 2018 में एक बार फिर कैदियों ने भागने का प्रयास किया.
  • दंतेवाड़ा पुलिस ने जेल परिसर में ही कैदियों को पकड़ लिया.

अब हो रहा है दंतेवाड़ा जेल का नाम

  • इस जेल में 50 प्रतिशत से अधिक निरक्षर कैदी, जिन्हें साक्षर कर जेल प्रबंधन को मिला नेशनल अवॉर्ड.
  • 250 की क्षमता वाले इस जेल में 739 विचारधीन और 2 दंडित बंदी हैं.
  • साल 2018 से अब तक 1300 से अधिक कैदी ले चुके हैं बेसिक कम्प्यूटर की शिक्षा.
  • देश का ये पहला जेल जहां कम्प्यूटर की शिक्षा के बाद मिलता है सर्टिफिकेट.
  • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता के तहत कैदी हो रहे लाभान्वित.
  • जेल में प्रतिदिन 10 कम्प्यूटर और 30 लेपटॉप से 250 कैदी कर रहे शिक्षा ग्रहण.

दंतेवाड़ा जेल ब्रेक के 10 साल बाद इस जेल की तस्वीर बदल रही है. अब यहां के कैदी भागने के लिए नहीं, बल्कि 'जेंटलमैन' बनकर रिहा होने के लिए जाने जाते हैं.

दंतेवाड़ा : जिला जेल दंतेवाड़ा, इसका नाम लेते ही 2007 का वो जेल ब्रेक कांड याद आ जाता है, जिसमें 299 कैदी जेल से भागने में कामयाब हुए थे. उन्हें पकड़ने में पुलिस आज भी असफल है, लेकिन इस बदनामी के कलंक को मिटाने के लिए जिला प्रशासन और जेल प्रबंधन कैदियों को डिजिटल साक्षरता अभियान से जोड़ रही है, ताकि यहां बंद कैदी शिक्षित हो सके और जब वे यहां से रिहा हो तो जेल की बदनामी के साथ नहीं बल्कि इसकी अच्छाई के साथ आगे बढ़े.

पैकेज.

दंतेवाड़ा जेल ब्रेक के इस कलंक को धोने के लिए जेल प्रशासन ने कैदियों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है. इस जेल में 50 प्रतिशत अनपढ़ कैदी हैं. जिन्हें शिक्षित करने और व्यस्त रखने के लिए जेल प्रशासन हर मुमकिन कोशिश कर रहा है. सबसे पहले इन बंदियों को a b c d सिखाई जाती है. जब वह पढ़ना सिख जाते हैं, तो कम्प्यूटर से बेसिक ज्ञान दिया जाता है. तीन महीने की पढ़ाई पूरी होने पर इनका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. सभी कैदी इस परीक्षा में बैठते हैं और पास होने पर उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाता है. जेल अधीक्षक जीएस सोरी बताते हैं कि कैदी अंगूठाछाप आते हैं और कम्प्यूटर में दक्ष हो कर जाते हैं.

2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित
वहीं जेल आरक्षक मोहन राव ने कहा कि इस प्रयास के लिए साल 2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया. इस प्रयास को और सफल बनाने के लिए तत्कालीन कलक्टर ने भी जेल प्रबंधन की काफी मदद की. जेल प्रवंधन को 10 कम्प्यूटर और 30 लैपटॉप दिए. अब इस जेल में एक भी बंदी निरक्षर नहीं हैं.

क्यों था दंतेवाड़ा जेल बदनाम

  • साल 2007 में दंतेवाड़ा जेल से 299 कैदी भागे थे.
  • दंतेवाड़ा पुलिस ने लगभग 140 कैदियों को ही पकड़ने में सफलता पाई.
  • साल 2018 में एक बार फिर कैदियों ने भागने का प्रयास किया.
  • दंतेवाड़ा पुलिस ने जेल परिसर में ही कैदियों को पकड़ लिया.

अब हो रहा है दंतेवाड़ा जेल का नाम

  • इस जेल में 50 प्रतिशत से अधिक निरक्षर कैदी, जिन्हें साक्षर कर जेल प्रबंधन को मिला नेशनल अवॉर्ड.
  • 250 की क्षमता वाले इस जेल में 739 विचारधीन और 2 दंडित बंदी हैं.
  • साल 2018 से अब तक 1300 से अधिक कैदी ले चुके हैं बेसिक कम्प्यूटर की शिक्षा.
  • देश का ये पहला जेल जहां कम्प्यूटर की शिक्षा के बाद मिलता है सर्टिफिकेट.
  • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता के तहत कैदी हो रहे लाभान्वित.
  • जेल में प्रतिदिन 10 कम्प्यूटर और 30 लेपटॉप से 250 कैदी कर रहे शिक्षा ग्रहण.

दंतेवाड़ा जेल ब्रेक के 10 साल बाद इस जेल की तस्वीर बदल रही है. अब यहां के कैदी भागने के लिए नहीं, बल्कि 'जेंटलमैन' बनकर रिहा होने के लिए जाने जाते हैं.

Intro:बदनाम है जेल पर बंदी दाग धुलने में लगे है - 2007 में 299 कैदी भागे, लगभग140 की ही हुई गिरफ्तारी - 2018 में एक बार फिर बंदियों ने भागने का प्रयास किया, पकड़े गए - 50 प्रतिशत से अधिक आते है निरक्षर, साक्षर कर जेल प्रबंधन को मिला नेशनल अवार्ड - 250 की क्षमता वाली इस जिला जेल में 739 विचारधीन अरब2 दंडित बंदी है - एक वर्ष में 1300 से अधिक बंदी ले चुके है 2018 से अब बेसिक कम्प्यूटर की शिक्षा - देश का पहला जेल जहा कम्प्यूटर की शिक्षा के बाद मिलता है सर्टिफिकेट - प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता के तहत हो रहे लाभान्वित बंदी - जेल में प्रतिदिन 10 कम्प्यूटर और 30 लेपटॉप से 250 बंदी कर रहे शिक्षा ग्रहण दंतेवाड़ा। 60 प्रतिशत से अधिक नक्सली प्रकरण में बंद जिला जेल दंतेवाड़ा में बंदी है।विस् जिला जेल का नाम आते ही लोंगो के जहन में 2007 का जेल ब्रेक आ जाता है। 16 दिसम्बर 2007 प्रबंधन के लिए काला दिन था। इस जेल से 299 कैदी फरार हुए थे। सभी पर धारा 224 के तहत करवाई हुई। फरार हुए कैदियों में से लगभग 140 को ही पुलिस गिरफ्तार कर सकी है। इतना ही नही 2018 में एक बार फिर नक्सलियों ने नाकाम कोशिश की थी। हालांकि उनको कैम्पास में ही पकड़ लिया गया। ये जेल बुरी तरह से देश भर में बनाम हुई। बदनामी के दंश को झेल रहा जेल प्रबंधन इन्ही बंदियों के हुनर से दागों को धुलने में जुटा है।


Body:चल रहा प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जिला प्रशासन की मदद से जेल प्रबंधन डिजिटल साक्षरता अभियान में जुटा है। उन बंदियों को साक्षर किया जा रहा है, जहां 50 प्रतिशत अनपढ़ होते है। पहले इनको अक्षर ज्ञान दिया जाता। इसके बाद कम्प्यूटर की शिक्षा दी जाती है। इस अथक प्रयास के लिये 2017 में नेशनल अवार्ड भी मिला। बंदियों को साक्षर बनाने के लिए तत्कालीन कलक्टर ने भी जेल प्रबंधन की काफी मदद की। 10 कम्प्यूटर और 30 लैपटॉप दिए। अब इस जेल में एक भी बंदी निरक्षर नही हैं। जेल अधीक्षक जी एस सोरी बताते है कि अंगूठा छाप आते है और कम्प्यूटर में दक्ष हो कर जाते है।


Conclusion:जेल आरक्षक जुटा शिक्षा देने में जेल आरक्षक के मैदान मोहन राव कम्प्यूटर की शिक्षा देने में जुटा है। बंदियों को पहले तो अक्षर ज्ञान और a b c d सिखाई जाती है। जब वह पढ़ना सिख जाते है तो कम्प्यूटर में बेसिक ज्ञान दिया जाता है। तीन माह तक पढ़ाई चलती हैं। इसके बाद ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होता है। इसके बाद परिक्षा ली जाती है। बंदियों के पास होने के बाद उनको सर्टिफिकेट मिलता है
Last Updated : Sep 29, 2019, 8:35 PM IST
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