दंतेवाड़ा: शहीद अपना फर्ज निभा कर चले जाते हैं, दर्द क्या होता है कोई उनके परिवार से पूछे. धमतरी के कैलाश दंतेवाड़ा में हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर जब गांव पहुंचा तो मातम छा गया. जब नन्ही बेटी ने मुखाग्नि दी, तो वहां मौजूद हर किसी की आंखों से आंसू छलक पड़े. शहीद की देह पर कफन बनकर लिपटे तिरंगे को देखकर लोग फूट-फूटकर कर रो रहे थे.
शहीद कैलाश के पिता भी जहां एक तरफ शहीद बेटे का शव देख रोए जा रहे थे, वहीं शहादत पर गर्व से उनका सिर ऊंचा भी था. पिता का कहना है कि उनके बेटे ने नक्सलियों से लड़ते-लड़ते प्राण न्योछावर कर दिए. उन्हें अपने बेटे पर गर्व है.
बड़ी बेटी ने दी मुखाग्नि
गांव के सरपंच बताते हैं कि शहीद बेटे कैलाश को छिंदभर्री गांव में उनकी बड़ी बेटी ने मुखाग्नि दी, जिसे ये भी नहीं पता था कि वहां हो क्या रहा है. उसके नन्हे हाथों ने पिता को अंतिम सफर पर विदा किया. सरपंच ने बताया कि 3 महीने पहले ही कैलाश की पोस्टिंग यहां हुई थी.
राजकीय सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार
वहीं एसडीओपी नितीश ठाकुर बताते हैं कि कैलाश नेताम की 6 जनवरी 2012 को दंतेवाड़ा में पोस्टिंग हुई थी. वे पहली सर्चिंग में निकले थे लेकिन नक्सलियों के खिलाफ जाबांजी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए. राजकीय सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया गया है.