दंतेवाड़ा: मां दंतेश्वरी मंदिर में होलिका दहन अनूठी परंपरा आज भी निभाई जा रही है. जिसमें दंतेश्वरी देवी की विधि विधान से पूजा अर्चना कर ताड़ के पत्तों को लेकर सवारी निकाली जाती है. इस परंपरा में 12 लंकवार, माझी चालक और सेवादार ढोल नगाड़ों की थाप के साथ निकलते हैं. ये सवारी भैरव मंडप तक ले जाई जाती है. इसके बाद विधिविधान से होलिका दहन किया जाता है.
ताड़ के पत्तों की होलिका का महत्व : दंतेश्वरी मंदिर के सेवादार ने बताया कि 'ताड़ के पत्तों से जलाए गए होलिका दहन की राख को खेत में डालने की पुरानी परंपरा है.ऐसा कहा जाता है कि ताड़ के पत्तों की राख से फसल ज्यादा अच्छे से होती है. इस राख में तांत्रिकीय शक्ति के गुण भी होते हैं. किसी बीमार पड़ने पर भी इस राख को बीमार पड़े व्यक्ति को खिलाया जाता है .इसलिए लोग इस राख को दवा के जैसे ही सहेजकर रखते हैं. हर साल 900 से ज्यादा देवी देवताओं को होली पर्व के दौरान इसी राख से टीका लगाकर पूजन किया जाता है.''
कब से हो रहा है होली का आयोजन :मंदिर पुजारी परमेश्वर नाथ जीया ने बताया कि ''होलिका दहन के बाद उसकी राख और पलाश के फूलों का रंग बनाया जाता है. दूसरे दिन मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना कर माझी चाल भैरव बाबा का सिंगार करता है. सिंगार के बाद भैरव बाबा के साथ दूर दराज से आए 900 से ज्यादा ग्राम देवी -देवताओं को होली का तिलक लगाया जाता है'.
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माता भी होती हैं होली में शामिल : दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में सभी देवी देवता होली खेलते हैं. ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है. मान्यता ये भी है कि मां दंतेश्वरी साल में एक बार मंदिर से बाहर निकल कर ग्राम देवी देवताओं के साथ होली में शामिल होती हैं. जिनका आशीर्वाद लेने मंदिर प्रांगण में भक्तों का ताता भी लगा रहता है. दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में सभी देवी देवता होली खेलते हैं. ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है. मान्यता ये भी है कि मां दंतेश्वरी साल में एक बार मंदिर से बाहर निकल कर ग्राम देवी देवताओं के साथ होली में शामिल होती हैं. जिनका आशीर्वाद लेने मंदिर प्रांगण में भक्तों का ताता भी लगा रहता है.