दंतेवाड़ा: मां दंतेश्वरी दरबार में पलाश के फूलों से बने रंग और होलिका दहन की राख से होली खेली गई. सभी लोगों ने एक दूसरे को रंग लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हुए भाईचारे का संदेश दिया.
पलाश के फूलों से होली
मां दंतेश्वरी मंदिर में 100 सालों से चली आ रही परंपरा से होली मनाई जाती है. यहां होली का विशेष महत्व है. होलिका दहन के दूसरे दिन मां दंतेश्वरी के दरबार में पलाश के फूलों से होली खेली जाती है. जिसका विशेष महत्व है. सबसे पहले मां दंतेश्वरी की डोली से उतरे पलाश के फूलों से भैरव को सजाया जाता है. मां दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में भैरव अपने रूप में मंदिर पुजारी और आम जनता के साथ पलाश के फूलों से बने रंग से होली खेलते है. इसके बाद वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली खेलते हैं.
होलिका दहन की राख से खेली होली
भैरव के साथ आम जनता होली खेलते हुए शनि मंदिर पहुंचते है. इसके बाद जिस जगह पर होलिका दहन किया गया था. वहां पहुंचकर विधि विधान से पूजा अर्चना कर होलिका दहन की राख को सेवा दरबार आम जनता को बांटते हैं. इस राख का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस राख को लेकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है वह पूरी होती है. ढोल नगाड़ों के साथ नगर भ्रमण कर होली मनाई जाती है.
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पौराणिक परंपरा से मनाई जा रही होली
पुराने काल से चली आ रही या परंपरा आज भी कायम है. रीति रिवाज के अनुसार मां दंतेश्वरी दरबार में होली मनाई जाती है. वहां के प्रधान पुजारी बताते हैं कि पौराणिक काल से चली आ रही प्रथा के अनुसार पहले दंतेश्वरी माई के मंदिर में भैरव को सजाया जाता है. उसके बाद पलाश के फूलों से मां दंतेश्वरी के साथ होली खेली जाती है. उसके बाद मंदिर प्रांगण में सभी एक दूसरे को रंग लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हुए होली मनाते हैं.