दंतेवाड़ा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने शनिवार को दंतेवाड़ा में विशाल जनआक्रोश रैली निकाली. यह रैली दंतेवाड़ा जिला परिषद के तत्वावधान में निकाली गई. दंतेवाड़ा के एसबीआई चौक से दुर्गापूजा मंडप तक जनआक्रोश रैली में जिले के कई आदिवासी लोग शामिल हुए. जिसके बाद दुर्गापूजा मंडप में आमसभा आयोजित किया गया.
तालमेटल मुठभेड़ के न्यायिक जांच की मांग: आमसभा को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक मनीष कुंजाम सहित नेताओं ने तालमेटल मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए न्यायिक जांच की मांग की. उन्होंने पिछले चुनावी घोषणा अनुसार फर्जी नक्सली मामले में जेल में बंद आदिवासियों को तत्काल रिहा करने की मांग भी की. साथ ही जिला प्रशासन पर भी एनएमडीसी के डीएमएफ फण्ड का दुरुपयोग करने और भष्ट्राचार का आरोप लगाया.
"चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने बड़े बडे़ वादे किये. दोनों पार्टियों ने बहुत से प्रलोभन देकर के सत्ता में बैठे हैं. दोनों ने इतने सारे वादों में से एक भी वादे पूरे नहीं किये. नौकरी देंगें बोले, नौकरी नहीं दी. भत्ता देंगे बोले, भत्ता नहीं दिया. किसानों को उचित मुल्य देने का वादा भी पूरा नहीं किया. दोनों सरकारें मिलकर आदिवासियों का शोषण कर रहे हैं." - सुदरू कुंजम, सदस्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
अडानी को पहाड़ बेचने का फैसला वापस लेने की मांग: सीपीआई के नेताओं ने 13 नम्बर पहाड़ को अडानी को बेचने का फैसला वापस लेने की मांग की. साथ ही बोधघाट विधुत परियोजना को बिना ग्राम सभा की अनुमति के चालू नहीं करने की मांग भी रखी है. छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण का मांग, पेशा कानून में किये गए बदलाव को वापिस लेने की मांग और शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने की मांग रखी है.
"सरकार में आने से पहले नेताओं ने नक्सलियों के नाम से जेल में बंद लोगों को छुड़वाने, बेरोजगांरों को नौकरी देने का वादा किया था. डीएमएफ फंड में भी ब्रष्टाचार हो रहा है. इसलिए आज हम 17 मुद्दों को लेकर जनआक्रोश रैली निकाले हैं." - भीमसेन मांडवी, सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
नौकरियों में स्थानीय की भर्ती को प्राथमिकता देने की मांग: शासकीय एवं एनएमडीसी की नौकरियों में स्थानीय की भर्ती को प्राथमिकता देने की मांग भी सीपीआई नेताओं ने रखी है. इसके साथ ही कई अन्य मुद्दों को लेकर सीपीआई नेताओं ने राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार को घेरा है. इस आमसभा में सीपीआई नेताओं के साथ साथ भारी तादाद में आदिवासी लोग शामिल हुए.