दंतेवाड़ा: सुकमा में पोटाकेबिन की छात्रा के साथ हुई हैवानियत ने छ्त्तीसगढ़ को सकते में डाल दिया था. हालांकि आरोपी को पुलिस ने सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, लेकिन इस घटना के बाद पोटाकेबिन की सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर तमाम सवाल उठाए जाने लगे. इस घटना के बाद ईटीवी भारत की टीम दंतेवाड़ा के अंदरूनी क्षेत्र के पोटाकेबिन का जायजा लेने पहुंची. दरअसल, यहां के बच्चे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहने के कारण शिक्षा से वंचित न रहें, इसलिए यहां एक पोटाकेबिन का निर्माण कराया गया.
पोटाकेबिन में ऐसे बच्चों को दी जाती है शिक्षा: अंदरूनी क्षेत्रों में पोटाकेबिन की स्थापना उन बच्चों के लिए की गई है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं. जिनके माता-पिता नक्सली हमले में मारे गए हों या फिर जिनके माता-पिता नहीं हैं. दंतेवाड़ा में वर्तमान में 14 पोटाकेबिन संचालित है, जिनमें इन बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है.
चितालुर बालिका पोटाकेबिन में 406 बच्चे पढ़ रहे हैं. यह सभी बच्चे अंदरूनी क्षेत्र के रहने वाले हैं. इन्हें जिला प्रशासन व छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा निशुल्क शिक्षा के साथ रहने और खाने की सुविधा दी जाती है.-गंभीर राम साहू, पोटाकेबिन प्राचार्य
कलेक्टर विनीत नंदनवार के मार्गदर्शन में दंतेवाड़ा में 14 पोटाकेबिन संचालित है, जिसे जिले के 17 लोकेशन में चलाया जा रहा है. जब पोटाकेबिन की स्थापना हुई थी तो उनका उद्देश्य था कि इन पोटाकेबिन में उन बच्चों को रखा जाए, जिनके माता-पिता नक्सली हिंसा में मारे गए हो. या फिर जिन स्कूलों की दर्ज संख्या सबसे कम हो. या जिन स्कूलों को नक्सलियों ने गिरा दिया हो. ऐसे बच्चों के शिक्षा का पूरा खर्च सरकार और जिला प्रशासन उठाती है. -प्रमोद ठाकुर, जिला शिक्षा अधिकारी
यहां के बच्चों के लिए खास व्यवस्था: फिलहाल यहां बच्चों का नए सत्र में एडमिशन चालू है. पूरे जिले में 6176 बच्चे पोटाकेबिन में पढ़ रहे हैं. सभी पोटाकेबिन में छात्र-छात्राओं को अलग-अलग रखा जाता है. सुरक्षा की दृष्टिकोण से सभी पोटाकेबिन में चारों तरफ बाउंड्रीवॉल बनाए गए हैं. इनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है. समय-समय पर बच्चों का मेडिकल चेकअप किया जाता है. गार्ड सहित हर तरह की सुरक्षा व्यवस्था का खासा ख्याल रखा जाता है.