दंतेवाड़ा: 25 जुलाई 2018 ये वह तारीख थी, जिस दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बस्तर के दौरे पर थे. इस दौरान तत्कालीन बीजेपी सरकार ने राष्ट्रपति के सामने खुद को आदिवासियों का हितैषी बताते हुए गीदम में कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की थी. इसके साथ ही दर्जनों किसानों का समूह बनाकर उन्हें कड़कनाथ और बतख के चूजे दिए गए. महिलाओं को ई-रिक्शा भी दिया गया, ताकि वो आत्मनिर्भर बन सकें.
प्रशासन की दरियादिली या कहें दिखावागिरी यहीं खत्म हो जाती तो गनीमत थी. छत्तीसगढ़ में आदिवासी संपन्न हैं और बेहतर जिंदगी जी रहे हैं. ये दिखाने के लिए आदिवासियों की जमीन पर तालाब तक खोदे गए. दो एकड़ जमीन पर आम के पौधे लगाए गए. सिस्टम की ओर से इतनी दरियादिली दिखाने के बावदजूद आज इन आदिवासियों की हालत में सुधार नहीं हुआ.
कबाड़ हुए ई रिक्शा
समन्वित कृषि प्रणाली विकसित करने के लिए हीरानार गांव में करीब एक करोड़ों की लागत से 25 एकड़ जमीन में प्रोजेक्ट तैयार किया गया था, जहां पशु-कुक्कुट, मधुमक्खी पालन केंद्र के साथ-साथ खेती की योजना बनाई गई थी. जिसमें आसपास के किसानों को जोड़कर एक समूह बनाया गया, लेकिन रख-रखाव के अभाव में जहां ई रिक्शा कबाड़ में तब्दील हो गए. वहीं गौशाला और मुर्गी पालन केंद्र् में गिनती भर की गाय और मुर्गी बची हैं.
किसी को नहीं पता कहां जा रहा दूध
परियोजना के तहत किसानों को दूग्ध उत्पादन के लिए देशी नस्ल वाली गिर, शाहीवाल आदि दर्जनों गायें दी गई थी. इनके लिए शेड और चारा आदि की व्यवस्था डीएमएफ से की गर्इ थी. साल भर बाद यहां केवल एक दर्जन गाय ही रह गई हैं. इससे कितना दूध उत्पादन हो रहा है, यह बताने वाला कोई नहीं है, जबकि तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी ने यहां के दूध की खपत व़द्धाश्रम, स्कूल आश्रम, पोटाकेबिन में खपत करने की व्यवस्था की थी.
किसानों ने बेच दी बकरी
हीरानार हब के स्वसहायता समूह को सिरोही नस्ल की 48 बकरियां पालन के लिए दी गई थी, तब 48 बकरियां लाई गई थी. बताया गया था कि यहां की आबोहवा उनके लिए अनुकूल है, लेकिन कुछ दिन बाद दो बकरियों की मौत हो गई, जिसे परिवहन में हुई क्षति बताया और इसके बाद देखरेख के अभाव में धीरे- धीरे कुछ और बकरे-बकरियों की मौत हो गई और जो बचीं उनमें से कुछ को ग्रामीणों ने बेच दिया.
मर गई कर्नाटक की मधुमक्खियां
ग्रामीणों के रूचि को देखते परियोजना के तहत मधुमक्खी पालन के लिए 10 बाक्स कर्नाटक से मधुमक्खियां लाई गई थीं. इसके अलावा जिले में अन्य स्थानों पर मधुमक्खियां पालन करने वाले किसानों के लिए रस प्रोसेंसिंग के लिए लैब की सुविधा वाली बस भी तैयार की गई थी. लेकिन आज तक इसका उपयोग नहीं हो पाया और वो धूल खा रही है. आलम यह है कि मधुमक्खियां मर चुकी हैं और बॉक्स खाली पड़े हैं.
सूख गई डबरी, मर गए मछली और बतख
परियोजना में दो तालाबनुमा डबरी बनाकर मछली और प्रजाति के बतख पालन किया गया था. मछली के बीज और बतख के चूजे लाने में लाखों रुपए खर्च हुए. इसके बाद इनका भी वही हश्र हुआ. गर्मी में पानी और चारा के अभाव में मछलियों के साथ बतख भी अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे.
कड़कनाथ के शेड रह गए
ऐसा नहीं है कि सिस्टम की मार सिर्फ मछली और बतख पर पड़ी हो बल्कि बस्तर की पहचान कड़नाथ भी इसके अछूता नहीं है. तस्वीरों में दिख रहा ये कड़कनाथ पालन केंद्र बाहर से भले ही चकाचक दिखाई दे रहा हो लेकिन इसकी हकीकत जानकर आप दंग रह जाएंगे. केंद्र के शुरू होने कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक रहा. चूजे बड़े हुए, उन्हें बाजार में बेचा भी गया. इसके बाद मिले फंड का क्या हुआ इस बात की जानकारी देने वाला कोई मौजूद नहीं है. चूजे नहीं होने की वजह से अब यह केंद्र बंद पड़ा है और यह खाली शेड चीख-चीखकर अपनी बदहाली बयां कर रहा है.
ई रिक्शा हो रहे कबाड़
आखिर में बात करते हैं उस ई रिक्शा की जिसने खूब सुर्खियां बटोरी थी. जिस वक्त परियोजना की शुरुआत हुई थी, उस दौरान महामहिम खुद इस ई रिक्शा में सवार होकर परियोजना स्थल करीब 500 मीटर की दूरी पर मौजीद आश्रम शाला तक पहुंचे थे. लेकिन आज ये ई रिक्शा कबाड़ हो चुके हैं. इस मामले में जिम्मेदारों का क्या कहना है हम आपको सुनाते हैं
मिस मैनेजमेंट की भेंट चढ़ी योजना
कहने को तो सरकार ने आदिवासियों के विकास के लिए बड़े बढ़िया इंतजाम किए थे, लेकिन आगाज जितना बेहतर था अंजाम उतना ही खराब रहा और आदिवासियों के सपने लाला फीताशाही के मिसमैनेजमेंट की भेंट चढ़ गए.