बिलासपुर: मौजूदा समय में हार्ट के पेशेंट की संख्या काफी अधिक है. हर दिन हजारों लोगों की हार्ट अटैक से मौत हो रही है. हार्ट के पेशेंट की अक्सर सर्जरी की जाती है. सर्जरी करके पेशेंट के हार्ट में पेसमेकर लगाया जाता है. ये पेसमेकर दो तरह के होते हैं. एक वायर वाला तो दूसरा वायरलेस. पहले के डॉक्टर मरीजों को वायर वाला पेसमेकर लगाते थे. हालांकि समय के साथ-साथ डेवलपमेंट होता गया. अब वायरलेस पेसमेकर हार्ट पेशेंट को लगाया जा रहा है.
वायरलेस पेसमेकर सुविधाजन: अमेरिका में दो साल पहले ही वायरलेस पेसमेकर का अविष्कार किया जा चुका था. अब छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में भी वायरलेस पेसमेकर की सुविधा उपलब्ध हो गई है. बिलासपुर के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एमबी सामल ने ईटीवी भारत को बताया कि, "पारंपरिक कृत्रिम पेसमेकर से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए वायरलेस पेसमेकर लगाया जाता है. वायरलेस पेसमेकर बहुत छोटा उपकरण है, जिसे सीधे हृदय में भेजा जाता है. इसके लिए मरीज के छाती में चीरा लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती."
40 से अधिक के उम्र को लगाया जाता है पेसमेकर: डॉक्टर एमबी सामल का कहना है कि, "मरीज की धड़कन दिन में तीन चार बार इतनी कम हो जाता है कि वह बेहोश होकर गिर जाता है. उसे कुछ होश नहीं रहता. ऐसे में गाड़ी चलाते समय या स्विमिंग करते समय या फिर किसी ऐसे जगह भी वो गिर सकता है, जिससे उसकी मौत हो सकती है. इसलिए पेसमेकर लगाने की जरूरत पड़ती है. धड़कन कम होने की समस्या बुजुर्गों को ही नहीं बल्कि युवा और बच्चों में भी हो सकती है, लेकिन वायरलेस पेसमेकर को अधिकतर 40 की उम्र के बाद वालों को लगाया जाता है."
वायरलेस पेसमेकर ऐसे किया जाता है फिट: डॉ सामल ने कहा कि "देवाशीष नंदे एक हार्ट के पेशेंट हैं. इनकी उम्र 66 वर्ष है. उनको वायरलेस पेसमेकर लगाया गया है. देवाशीष का पल्स कम ज्यादा होने पर पेट और छाती में हल्का दर्द होता है. साथ ही हाई, लो ब्लडप्रेशर भी है. ऐसे मरीजों को पेसमेकर लगाना जरूरी हो जाता है. इनके हार्ट में भी वायरलेस पेसमेकर सेट किया गया." दरअसल, हार्ट के मरीज पेसमेकर लगाए जाने के बाद पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं. इसे शरीर में फिट करने के लिए पहले मरीज की जांघ के पास एक छोटा छेद किया जाता है. छेद के माध्यम से वायरलेस पेसमेकर शरीर में मशीन में देखते हुए मरीज के हार्ट में ही इंप्लांट कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में जरा सा भी खून नहीं बहता. बिलासपुर में पहली बार वायरलेस पेसमेकर इंप्लांट किया गया है.
"पहले मुझे हमेशा डर लगा रहता था कि कभी भी मेरी धड़कन कम हुई और मैं गिर गया तो मौत हो सकती है. लेकिन पेसमेकर लगने के बाद अब पूरी तरह से स्वस्थ फील कर रहा हूं. वायरलेस पेसमेकर की खासियत के बारे में सुनकर ही मैंने इसे लगाने का निर्णय लिया. आज खुद को स्वस्थ देखकर खुश हूं." देवाशीष नंदे, हार्ट पेशेंट जिन्हें वायरलेस पेसमेकर लगाया गया
इसलिए खास है वायरलेस पेसमेकर: पहले पेसमेकर वायर के साथ हुआ करता था. वायर वाले पेसमेकर को मोटी नसों के अंदर वायर डालकर सीने का ऑपरेशन कर सीने के ऊपर और चमड़ी के नीचे लगाया जाता था. लेकिन वायरलेस पेसमेकर बुलेट के साइज का होता है. यह बहुत हल्का होता है. वायर वाला पेसमेकर 50 ग्राम का होता है लेकिन वायरलेस पेसमेकर 7 से 8 ग्राम का होता है. इसकी बैटरी लगभग 10 साल चलती है, जिसे ऑपरेशन करा कर बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ती. इसे बिना ऑपरेशन किए शरीर के नसों से हार्ट तक पहुंचाया जाता है और हार्ट के अंदर ऑटोमेटिक इंप्लांट हो जाता है.