बिलासपुर: कोई कहता है प्यार नशा है तो कोई कहता है प्यार सजा है, लेकिन इस प्यार को अगर सच्चे दिल से निभाओ तो यही प्यार जीने की वजह बन जाता है. जी हां 14 फरवरी यानि की 'वेलेंटाइंस डे' (valentine day 2019) इस दिन का इंतजार प्रेमी जोड़े को बेसब्री से रहता है. प्यार का ये दिन तो खास है लेकिन क्या आज बाजारवाद का शिकार हो रहा है, ये एक बड़ा सवाल है.
मशहूर गीतकार गुलजार लिखते हैं 'प्यार सिर्फ एहसास है इसे रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो'. तो क्या एक शायर की कल्पना अब अस्तित्व खोती नजर आ रही है. क्या पश्चिमी संस्कृति और बाजारवादी मानसिकता ने निश्छल प्रेम में भी सेंध लग दी है. वो प्रेम जो शर्तों से परे था, वो आखिर है कहां और अगर नहीं है तो उसे प्रेम का नाम ही क्यों दें.
वेलेंटाइंस डे के दिन ETV भारत की टीम ने आज नए सामाजिक बदलाव में निश्छल प्रेम के अस्तित्व को ढूंढ़ने की कोशिश की है.
प्रेम के वास्तविक स्वरूप में आया है बदलाव
सामाजिक जानकार बताते हैं कि प्रेम का विषय भावनाओं से जुड़ा हुआ विषय है. युवक-युवती के बीच प्रेम की आखिरी परिणीति 7 जन्मों तक साथ निभाने का भाव है, लेकिन बदलते व्यवसायिक मानसिकता और पश्चिमी संस्कृति में प्रेम के निश्छल भाव में बहुत हद तक अब परिवर्तन आया है. आज के प्रेम में स्वार्थ मनोवृत्ति और शर्त की भावना अधिक आ चुकी है, जो यह बताता है कि कहीं ना कहीं प्रेम के वास्तविक स्वरूप में बदलाव आया है.
कम होती जा रही है गहरे लगाव की संभावना
समाजशास्त्री बताते हैं कि आधुनिकता, मीडिया और संचार के नए माध्यमों ने वास्तविक प्रेम पर बहुत हद तक अतिक्रमण किया है. इस मॉडर्न लव ने नेचुरल लव की परिभाषा बदल कर रख दी है. वास्तविक प्रेम में वासना नहीं समर्पण महत्वपूर्ण होता है. आज का प्रेम तत्कालिकता के भाव को लिए हुए है, जहां गहरे लगाव की संभावना कम होती जा रही है.
प्रेम के बिना इंसान के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती
बता दें कि यह विषय इतना गहरा है कि हम इस विषय में किसी आखिरी निष्कर्ष पर शायद ही पहुंच पाएं और न ही किसी सामाजिक बदलाव को पत्थर की लकीर बताई जा सकती है. जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है प्रेम. प्रेम से परे इंसान जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और न ही प्रेम का कोई विकल्प है. जरूरत इस बात की है कि हम इस एहसास को महसूस करते रहे और बदलते दौर में भी निर्मल-निश्छल प्रेम को बरकरार रखने की कोशिश करें.
क्यों और कब से मनाया जा रहा है 'वैलेंटाइन डे'
'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नाम की पुस्तक के मुताबिक रोम के एक पादरी थे जिनका नाम संत वैलेंटाइन था. संत वैलेंटाइन दुनिया में प्यार को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे. उनके अनुसार प्रेम में ही जीवन था, लेकिन इसी शहर के एक राजा क्लॉडियस को उनकी ये बात पसंद नहीं थीं. राजा को लगता था कि प्रेम और विवाह से पुरुषों की बुद्धि और शक्ति दोनों ही खत्म होती हैं. इसी वजह से उसके राज्य में सैनिक और अधिकारी शादी नहीं कर सकते थे. हालांकि, संत वैलेंटाइन ने राजा क्लॉडियस के इस आदेश का विरोध किया और रोम के लोगों को प्यार और विवाह के लिए प्रेरित किया.
14 फरवरी 269 में संत वैलेंटाइन को दी गई थी फांसी
इतना ही नहीं, उन्होंने कई अधिकारियों और सैनिकों की शादियां भी कराई. इस बात से राजा भड़का और उसने संत वैलेंटाइन को 14 फरवरी 269 में फांसी पर चढ़वा दिया. उस दिन से हर साल 14 फरवरी का दिन 'प्यार के दिन' के तौर पर मनाया जाता है. कहा जाता है कि सेंट वेलेंटाइन ने अपनी मौत के समय जेलर की अंधी बेटी जैकोबस को अपनी आंखे दान की. सैंट ने जेकोबस को एक पत्र भी लिखा, जिसके आखिर में उन्होंने लिखा था 'तुम्हारा वैलेंटाइन'.