बांस की टोकरी बना कर रहे गुजर बसर
किसी जमाने में इनके पूर्वज रतनपुर रियासत के कलचुरी राजाओं के लिए धनुष-बाण बनाया करते थे. लेकिन आजादी के बाद राज-रजवाड़े के साथ इनका जीवन यापन का साधन भी खत्म हो गया. हालांकि, ये लोग आज भी अपने पूर्वजों की कला को बनाये हुए हैं, लेकिन जिंदगी की जरूरतों ने इन्हें कुछ और ही बना दिया है. अब ये लोग बांस से छोटी-छोटी टोकरी बना अपना गुजर बसर कर रहे हैं.
एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई
सरकारी सुविधा के नाम पर एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई है. गांव में सड़क, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी है. गांव के बच्चे पांच किलोमीटर की दूरी तय कर पढ़ने जाते हैं.
जंगलों में शौच जाने को मजबूर
ग्रामीण बताते हैं कि, इनके नाम पर गांव में शौचालय और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुछ घर तो बनाये गए, लेकिन शौचालय का हाल ये है कि लोग वहां जंगलों में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं आवास निर्माण के लिए राशि तो निकाल ली गई, अभी तक गांव में किसी को भी इसका लाभ नहीं मिला.
आरोपियों के खिलाफ होगा एफआईआर
जनपद सीईओ महेश यादव का कहना है, उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी, अब वे अपने स्तर पर गांव में मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए जहां तक बन सकेगा कोशिश करेंगे. साथ ही इनका आवास एक-दो दिन में शुरू नहीं किया गया तो वे आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराएंगे.
दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद
एक ओर जहां शासन युवाओं को बांस का प्रशिक्षण देने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. वहीं बांस से सामान बनाने वाले लोग आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. इस बीच इनके मुद्दों के लेकर कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन इनको बस विकास का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया.