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SPECIAL: बांस से चल रही है इन लोगों की 'सांस',  यहां आज भी पत्थर से आग जलाते हैं ग्रामीण - पाषाण युग

मरवाही जनपद के अखराडाड़ गांव में धनुहार समाज के 35 परिवार आज भी मुख्यधारा से अलग पाषाण युग में जीने को मजबूर हैं. इनकी पिछड़ेन का आलम यह है कि, ये आज भी आग जलाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करते हैं.

धनुहार समाज के आदिवासी
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Published : Mar 31, 2019, 2:46 PM IST

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बिलासपुर: प्रदेश की सरकारें खुद को आदिवासी और पिछड़े लोगों का हितैषी बताती रहे हैं. वर्तमान सरकार जहां खुद को आदिवासी और आम लोगों की सरकार बता रही है. वहीं इससे पहले की सरकारें प्रदेश में विकास गाथा को लेकर न जाने कितनी ही विकास यात्राएं निकाल चुकी है, लेकिन आज तक इनकी विकास यात्रा मरवाही जनपद के एक गांव तक नहीं पहुंच सकी. मरवाही जनपद के अखराडाड़ गांव में धनुहार समाज के 35 परिवार आज भी मुख्यधारा से अलग पाषाण युग में जीने को मजबूर हैं. इनकी पिछड़ेन का आलम यह है कि, ये आज भी आग जलाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करते हैं.

बांस की टोकरी बना कर रहे गुजर बसर
किसी जमाने में इनके पूर्वज रतनपुर रियासत के कलचुरी राजाओं के लिए धनुष-बाण बनाया करते थे. लेकिन आजादी के बाद राज-रजवाड़े के साथ इनका जीवन यापन का साधन भी खत्म हो गया. हालांकि, ये लोग आज भी अपने पूर्वजों की कला को बनाये हुए हैं, लेकिन जिंदगी की जरूरतों ने इन्हें कुछ और ही बना दिया है. अब ये लोग बांस से छोटी-छोटी टोकरी बना अपना गुजर बसर कर रहे हैं.

एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई
सरकारी सुविधा के नाम पर एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई है. गांव में सड़क, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी है. गांव के बच्चे पांच किलोमीटर की दूरी तय कर पढ़ने जाते हैं.

जंगलों में शौच जाने को मजबूर
ग्रामीण बताते हैं कि, इनके नाम पर गांव में शौचालय और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुछ घर तो बनाये गए, लेकिन शौचालय का हाल ये है कि लोग वहां जंगलों में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं आवास निर्माण के लिए राशि तो निकाल ली गई, अभी तक गांव में किसी को भी इसका लाभ नहीं मिला.

आरोपियों के खिलाफ होगा एफआईआर
जनपद सीईओ महेश यादव का कहना है, उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी, अब वे अपने स्तर पर गांव में मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए जहां तक बन सकेगा कोशिश करेंगे. साथ ही इनका आवास एक-दो दिन में शुरू नहीं किया गया तो वे आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराएंगे.

दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद
एक ओर जहां शासन युवाओं को बांस का प्रशिक्षण देने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. वहीं बांस से सामान बनाने वाले लोग आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. इस बीच इनके मुद्दों के लेकर कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन इनको बस विकास का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया.

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बिलासपुर: प्रदेश की सरकारें खुद को आदिवासी और पिछड़े लोगों का हितैषी बताती रहे हैं. वर्तमान सरकार जहां खुद को आदिवासी और आम लोगों की सरकार बता रही है. वहीं इससे पहले की सरकारें प्रदेश में विकास गाथा को लेकर न जाने कितनी ही विकास यात्राएं निकाल चुकी है, लेकिन आज तक इनकी विकास यात्रा मरवाही जनपद के एक गांव तक नहीं पहुंच सकी. मरवाही जनपद के अखराडाड़ गांव में धनुहार समाज के 35 परिवार आज भी मुख्यधारा से अलग पाषाण युग में जीने को मजबूर हैं. इनकी पिछड़ेन का आलम यह है कि, ये आज भी आग जलाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करते हैं.

बांस की टोकरी बना कर रहे गुजर बसर
किसी जमाने में इनके पूर्वज रतनपुर रियासत के कलचुरी राजाओं के लिए धनुष-बाण बनाया करते थे. लेकिन आजादी के बाद राज-रजवाड़े के साथ इनका जीवन यापन का साधन भी खत्म हो गया. हालांकि, ये लोग आज भी अपने पूर्वजों की कला को बनाये हुए हैं, लेकिन जिंदगी की जरूरतों ने इन्हें कुछ और ही बना दिया है. अब ये लोग बांस से छोटी-छोटी टोकरी बना अपना गुजर बसर कर रहे हैं.

एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई
सरकारी सुविधा के नाम पर एक साल पहले इनके गांव में बिजली आई है. गांव में सड़क, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी है. गांव के बच्चे पांच किलोमीटर की दूरी तय कर पढ़ने जाते हैं.

जंगलों में शौच जाने को मजबूर
ग्रामीण बताते हैं कि, इनके नाम पर गांव में शौचालय और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुछ घर तो बनाये गए, लेकिन शौचालय का हाल ये है कि लोग वहां जंगलों में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं आवास निर्माण के लिए राशि तो निकाल ली गई, अभी तक गांव में किसी को भी इसका लाभ नहीं मिला.

आरोपियों के खिलाफ होगा एफआईआर
जनपद सीईओ महेश यादव का कहना है, उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी, अब वे अपने स्तर पर गांव में मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए जहां तक बन सकेगा कोशिश करेंगे. साथ ही इनका आवास एक-दो दिन में शुरू नहीं किया गया तो वे आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराएंगे.

दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद
एक ओर जहां शासन युवाओं को बांस का प्रशिक्षण देने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. वहीं बांस से सामान बनाने वाले लोग आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. इस बीच इनके मुद्दों के लेकर कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन इनको बस विकास का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया.

Intro:30.03_CG_MUKESH_BLS_DHANUWAR_PKG

एंकर भारत को आजाद हुए 72 वर्ष बीत चुके हैं और आज भी मरवाही में 35 परिवार पाषाण युग के जीवन जीने को मजबूर है धनवार जनजाति के यह लोग कभी राजा महाराजा और उनके सैनिकों के लिए धनुष बाण बनाने का काम करते थे पर आज पहुंच वहीं जंगलों के बीच अपना जीवन बसर कर रहे हैं मूलभूत सुविधाओं के नाम पर इनके पास 1 साल पहले पहुंची बिजली है सड़क शिक्षा पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी यह लोग मोहताज हैं योजनाओं में मिले आवास भी ठेकेदार ने रुपए निकालकर अधूरे छोड़ दिए मामला सामने आने पर अब अधिकारी शीघ्र ही व्यवस्था बनाने और दोषियों पर एफआईआर करने की बात कह रहे हैं

वीओ 1 बांस की पतली पतली क राशि गई लकड़ियों को कुशलता से हाथ चलाकर टोकरी का आकार देते यह हैं धनवार आदिवासी जो कुछ ही मिनटों में बांस से किसी भी प्रकार का टोकनी या सूखा बना सकते हैं और इसी को यह लोग हाट बाजारों में 10 से ₹20 में बेच कर होने वाले आए थे तीन पीढ़ियों से यह धनवार अपना जीवन यापन कर रहे हैं मरवाही के मटिया डाल के पहुंच विहीन जंगलों के बीच तीन पीढ़ी के पूर्व आकर बसे यह धनवार हमेशा से यही काम नहीं करते थे इनका कहना है कि इनके पूर्वज रतनपुर के कलचुरी राजाओं के लिए यहां धनुष बनाया है इनके पूर्वज धनुष बाण बनाने का ही काम किया करते थे पर अब राजा राजवाडा का समय खत्म हो गया इसलिए उन धनुष्य को लेने वाला कोई नहीं बचा अब यह लोग धनुष बाण अपने लिए बना कर अपनी पहचान बना कर रखे हैं ते हैं और जीवन यापन करने के लिए यह लोग टोकनी सूपा बनाकर अपना गुजर-बसर करते हैं इन आदिवासियों को किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधाएं हासिल नहीं है जो सरकारी योजनाएं चलती हैं उनसे भी यह वंचित है महज 1 साल पहले ही इनके गांव में बिजली पहुंची उसके पूर्व इन्होंने कभी बिजली के दर्शन ही नहीं किए थे और जब प्रधानमंत्री आवास योजना और शौचालय योजना में इनके नाम आए तो वहां भी ठेकेदारों ने इन भोले भाले धनवार आदिवासियों के साथ छल किया इन आदिवासियों के आवास आज भी अधूरे पड़े हुए हैं ठेकेदारों ने पैसे निकाल लिए और आवाज पूरा नहीं किया यहां तक की आवाज के अंदर बड़े-बड़े पेड़ हैं वही हाल शौचालय का है गुणवत्ता ही शौचालय होने के कारण यह धनवार आदिवासी उनका उपयोग नहीं कर पाए और महज शौचालय एक औपचारिकता ही बनकर पड़ी हुई है ज्यादातर शौचालय खराब और उपयोग करने लायक नहीं है इनके यहां की महिलाएं और बच्चे आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर है इनके जीवन स्तर की कल्पना सिर्फ इस बात से ही की जा सकती है कि यह आदिवासी आज भी आग जलाने के लिए पाषाण युग के चकमक पत्थर का इस्तेमाल करते हैं इसमें इनके हाथ इतने परंपरागत है कि एक ही घर्षण में तुरंत आग पैदा हो जाती है और उससे यह आग जला लेते हैं

बाइट सोहन धनु वार बाइट 1+बाइट 2
बाइट बेसाहन धनुहार 2 बाइट
बाइट बिसन धनुहार
बाइट सुन्नी बाई 1 बाइट
बाइट सेमलिया बाई 1 बाइट

वी ओ 2 केंद्र और राज्य सरकार पिछले कई वर्षों से आदिवासियों को उनके खुद के रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने के लिए कई कार्यक्रम चला रही है जिसके लिए प्रशिक्षण के साथ संसाधन और आर्थिक मदद का भी प्रावधान है पर यह प्रावधान इन जरूरतमंदों तक कभी नहीं पहुंच सका सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ साल पूर्व खोदा गया एक हैंडपंप है वह भी गर्मी में सूख जाता है जिसके बाद इन्हें पानी के लिए दूर पहाड़ के नीचे जाना पड़ता है अगर पहुंच मार्ग की बात करें तो मुख्य सड़क से इनकी बस्ती लगभग 3 किलोमीटर दूर है पर इस सड़क पर सरकारी योजनाओं का एक ढेला भी खर्च नहीं हुआ इन 35 धनवार परिवार के 8 बच्चे जो अब प्राइमरी स्कूल में है उन्हें भी प्राथमिक शिक्षा के लिए 5 किलोमीटर पहाड़ी और जंगली रास्तों से होते हुए स्कूल पहुंचते हैं जबकि यह इलाका अत्यंत भालू प्रभावित क्षेत्र है वोट लेने के बाद सरपंच ने शायद ही कभी उनकी और पलट कर देखा होगा पर उसे यह पता है कि उनका प्रधानमंत्री आवास पूरा नहीं हुआ है ठेकेदार नारायण उनका पैसा लेकर भाग चुका है पर उसके लिए वह उन्हें ही दोषी ठहराते है वही मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे इन आदिवासियों के संबंध में जब जनपद के सीईओ महेश यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे अब तक इस मामले की जानकारी नहीं थी जो भी मूलभूत सुविधाएं जहां तक बन सकेगा मैं स्वयं वहां जाकर अब पूरी करने की कोशिश करूंगा जहां तक आदिवासियों के आवास की बात है अगर ठेकेदार एक-दो दिन में आवास निर्माण चालू नहीं करता है तो उनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई जाएगी और सड़क की भी सीख व्यवस्था किया जाएगा ताकि उनके गांव तक सड़क पहुंच सके

बाइट गोविंद धुर्वे टीचर
बाइट संजय कुमार सरपंच
बाइट महेश यादव सीईओ मरवाही जनपद

वी ओ फाइनल एक और जहां शासन बास प्रशिक्षण लाख प्रशिक्षण के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने वाली सरकारी योजनाएं इन जरूरतमंद तक नहीं पहुंच सकी अब जरूरत है कि सैकड़ों वर्षो से जंगलों के भीतर पाषाण युग का जीवन जीने वाले इन आदिवासियों को मुख्यधारा में लाकर ऐसी योजनाओं से जोड़ें ताकि यह भी समाज का अंग बनकर अपना और अपने परिवार को आगे बढ़ा सकें



Body:30.03_CG_MUKESH_BLS_DHANUWAR_PKG


Conclusion:30.03_CG_MUKESH_BLS_DHANUWAR_PKG
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