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SPECIAL: कोरोना काल में घर चलाना हुआ मुश्किल, मनरेगा ने भी दिखाया ठेंगा

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Published : Jul 6, 2020, 9:14 AM IST

Updated : Jul 6, 2020, 2:02 PM IST

मरवाही विकासखंड के मटिया ढांड गांव के अखराढांड में 15 से 20 धनुहार परिवार रहते हैं. इन आदिवासियों का जीवनयापन बांस के सामानों से होता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते इन परिवारों के सामने अब आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है.

employment in lockdown
आदिवासियों को नहीं मिल रहा रोजगार

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: कोरोना काल में सरकार ने जरूरतमंदों को रोजगार उपलब्ध कराने के तमाम दावे किए, लेकिन असल में हकीकत कुछ और है. मरवाही के अखराढांड में आदिवासी धनुहार परिवारों को इस कोरोना काल में रोजगार नहीं होने से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. न चाहते हुए भी ग्रामीण तंग परिस्थितियों में जीवनयापन करने को मजबूर हैं. धनुहार आदिवासी परिवारों के सामने लॉकडाउन के दौरान रोजगार न होने से खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है.

घर चलाना हुआ मुश्किल

मरवाही विकासखंड के मटिया ढांड गांव के अखराढांड में 15 से 20 धनुहार परिवार रहते हैं. इन आदिवासियों का जीवनयापन बांस के सामानों से होता है. आदिवासी बांस के सामान बनाकर इसे साप्ताहिक बाजारों में बेचते हैं और उससे मिले पैसे से वे अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से साप्ताहिक बाजार नहीं लगने के कारण इनका ये सामान भी नहीं बिक पा रहा है. जिससे धनुहार आदिवासियों के परिवार के सामने आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं.

employment in lockdown
आदिवासी परिवार

शुरू हो गया भोले की भक्ति का महीना सावन, सोशल डिस्टेसिंग के साथ मिलेंगे दर्शन

4 साल से नहीं मिला रोजगार

संकट के इस दौर में स्थानीय प्रशासन और ग्राम पंचायत इन धनवार आदिवासियों की सुध भी नहीं ले रहा है. न तो इन्हें कोई रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. धनुहार समुदाय के लोगों का कहना है कि पिछले 4 साल से अखराघाट गांव में मनरेगा के तहत काम नहीं मिला है, जबकि परिवार में सभी के पास जॉब कार्ड है. अखराढांड इलाके में काम ना होने के कारण ये लोग मनरेगा के तहत मजदूरी ही नहीं कर पा रहे हैं.

employment in lockdown
आदिवासियों को नहीं मिल रहा रोजगार

अधिकारी नहीं ले रहे सुध

धनुहार परिवार के लोग कई बार ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधियों से अखराढांड इलाके में भी रोजगार देने का आग्रह कर चुके हैं, लेकिन इनकी मांगों को अनसुना कर दिया गया. राज्य सरकार भले ही देश में मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार देने में टॉप पर हो, लेकिन जमीनी हकीकत दावों से बिल्कुल अलग है.

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: कोरोना काल में सरकार ने जरूरतमंदों को रोजगार उपलब्ध कराने के तमाम दावे किए, लेकिन असल में हकीकत कुछ और है. मरवाही के अखराढांड में आदिवासी धनुहार परिवारों को इस कोरोना काल में रोजगार नहीं होने से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. न चाहते हुए भी ग्रामीण तंग परिस्थितियों में जीवनयापन करने को मजबूर हैं. धनुहार आदिवासी परिवारों के सामने लॉकडाउन के दौरान रोजगार न होने से खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है.

घर चलाना हुआ मुश्किल

मरवाही विकासखंड के मटिया ढांड गांव के अखराढांड में 15 से 20 धनुहार परिवार रहते हैं. इन आदिवासियों का जीवनयापन बांस के सामानों से होता है. आदिवासी बांस के सामान बनाकर इसे साप्ताहिक बाजारों में बेचते हैं और उससे मिले पैसे से वे अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से साप्ताहिक बाजार नहीं लगने के कारण इनका ये सामान भी नहीं बिक पा रहा है. जिससे धनुहार आदिवासियों के परिवार के सामने आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं.

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आदिवासी परिवार

शुरू हो गया भोले की भक्ति का महीना सावन, सोशल डिस्टेसिंग के साथ मिलेंगे दर्शन

4 साल से नहीं मिला रोजगार

संकट के इस दौर में स्थानीय प्रशासन और ग्राम पंचायत इन धनवार आदिवासियों की सुध भी नहीं ले रहा है. न तो इन्हें कोई रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. धनुहार समुदाय के लोगों का कहना है कि पिछले 4 साल से अखराघाट गांव में मनरेगा के तहत काम नहीं मिला है, जबकि परिवार में सभी के पास जॉब कार्ड है. अखराढांड इलाके में काम ना होने के कारण ये लोग मनरेगा के तहत मजदूरी ही नहीं कर पा रहे हैं.

employment in lockdown
आदिवासियों को नहीं मिल रहा रोजगार

अधिकारी नहीं ले रहे सुध

धनुहार परिवार के लोग कई बार ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधियों से अखराढांड इलाके में भी रोजगार देने का आग्रह कर चुके हैं, लेकिन इनकी मांगों को अनसुना कर दिया गया. राज्य सरकार भले ही देश में मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार देने में टॉप पर हो, लेकिन जमीनी हकीकत दावों से बिल्कुल अलग है.

Last Updated : Jul 6, 2020, 2:02 PM IST
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