बिलासपुर: हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान का विरोध व्यापक तौर पर हो रहा (Social worker Medha Patkar) है. छत्तीसगढ़ में कोयला खदान के विरोध में हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन चल रहा है. इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर बिलासपुर (Social worker Medha Patkar supported Hasdev Aranya Bachao Andolan) पहुंची. उन्होंने बिलासपुर में कोनहेर गार्डन में हो रहे आंदोलन का समर्थन किया और मंच से लोगों को संबोधित करते हुए पेड़ों को बचाने की अपील (Medha Patkar in bilaspur target Baghel government) की.
"पेड़ और जंगल जिंदगी है": मेधा पाटकर ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि" पेड़ और जंगल जिंदगी है. बिना पेड़ और जंगल के जीवन खुशहाल नहीं हो सकता है. इसलिए हसदेव अरण्य को बचाना जरूरी है. मेधा पाटकर ने कहा कि प्रकृति के नियम को बिगाड़ने पर प्रकृति बदला लेती है. किसी को भी हक नहीं है कि वह प्रकृति के नियम को बदले. पेड़ और जंगल को बचाकर ही हम प्रकृति को बचा पाएंगे"
"हसदेव अरण्य को उजाड़ा जा रहा": मेधा पाटकर ने हसदेव अरण्य आंदोलन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि "कोयला खनन को लेकर जंगल को उजाड़ने की साजिश छत्तीसगढ़ में चल रही है. सरगुजा के हसदेव अरण्य को कोयला निकालने के लिए उजाड़ा जा हा है. मेधा पाटकर ने सीएम भूपेश बघेल पर निशाना साधा, और कहा कि आदिवासियों को जंगल से निकालने की साजिश हो रही है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद ऐसा लगा था कि यहां के आदिवासियों की स्थिति बदलेगी लेकिन अब आदिवासियों को उनके घर और जंगल से निकालने की साजिश हो रही है".
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सीएम बघेल पर अपने नेताओं की अनदेखी का आरोप: मेधा पाटकर ने सीएम भूपेश बघेल पर अपने नेताओं की अनदेखी का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि "आपने अपने नेता राहुल गांधी के आदिवासियों से किए हुए वायदों को नकार रहे हैं. उनके विचारों से अलग काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आपके मंत्री टीएस सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और सांसद ज्योत्सना महंत हसदेव अरण्य में कोयला खदान के विरोध में हैं तो आप अपने जनप्रतिनिधियों को क्यों नकार रहे हैं".
"हसदेव अरण्य एक पावन धरा": मेधा पाटकर ने कहा कि "केंद्र और राज्य सरकार हसदेव अरण्य को आदिवासियों से लेकर अडानी को देने का काम कर रहे हैं. यहां कोयला खदान के एमडी भले ही अडानी रहेंगे लेकिन वह इस जंगल के मालिक बन जाएंगे.यहां से आदिवासियों को बेदखल कर दिया जाएगा. हसदेव अरण्य एक पावन धरा है. यहां के आदिवासी ही हैं कि अब तक यहां के जंगल और जमीन बचे हैं. आज इस इलाके की नदी आदिवासियों की नहीं रही. अब करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर के जंगल को उजाड़ने का काम किया जा रहा है."
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"बघेल सरकार खुद अपने अधिकारों को कपड़े की तरह उतार रही": मेधा पाटकर ने कहा कि "राज्य सरकार के कई अधिकार होते हैं. यदि राज्य सरकार चाहे तो हसदेव को बचाया जा सकता है. लेकिन राज्य सरकार कपड़े की तरह अपने अधिकार को उतार रही हो तब ऐसे में क्या होगा". मेधा पाटकर ने आगे कहा कि "राज्य सरकार यदि अपने कपड़े उतार रही है तो देश में नंगा नाच होगा. जमीन तो हाथ से जाएगी ही, साथ ही हसदेव में लगे छोटे बड़े नौ लाख पेड़ों की बलि से प्रकृति का संतुलन बिगड़ेगा"