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छात्रों को डिजिटल माध्यम से जोड़ने का सपना हुआ दूर! कब शुरू होगी डिजिटल क्लास?

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Published : Dec 7, 2021, 5:46 PM IST

हायर सेकंडरी और हाईस्कूल स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को डिजिटल माध्यम से जोड़ने के लिए सरकार की क्लास योजना (Smart E-Class) चलाई थी. ताकि शिक्षा का स्तर उठाया जा सके. यह योजना भारत सरकार के सहयोग से शुरू की गई थी. लेकिन 2 साल बीतने के बाद भी यह योजना सही आकर नहीं ले पाई है. तो आईये जानते हैं कि वो क्या है प्रमुख कारण...

When will digital classes start?
कब शुरू होगी डिजिटल क्लास?

गौरेला पेंड्रा मरवाही: छत्तीसगढ़ के सरकारी हायर सेकंडरी और हाईस्कूल स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को डिजिटल माध्यम से जोड़ने के लिए सरकार की क्लास योजना चलाई थी. ताकि शिक्षा का स्तर उठाया जा सके. यह योजना भारत सरकार के सहयोग से शुरू की गई थी. लेकिन 2 साल बीतने के बाद भी यह योजना सही आकर नहीं ले पाई है. स्कूलों में स्मार्ट क्लास (Smart E-Class) के नाम पर सिर्फ स्पीकर एवं प्रोजेक्टर स्टैंड लगाकर छोड़ दिये गए हैं. वहीं छात्रों को अभी और स्कूल्स में स्मार्ट क्लास का इंतजार करना होगा. वहीं अधिकारियों को यह पता ही नहीं है कि क्लासेस कब तक स्मार्ट हो सकेंगी.

कब शुरू होगी डिजिटल क्लास?

अधर में अटकी योजना

छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रहे छात्र छात्राओं को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए भारत सरकार, समग्र शिक्षा अभियान एवं ICT ( INFORMATION AND COMMUNICATION TECHNOLOGY) के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में छत्तीसगढ़ के 4330 हायर सेकेंडरी एवं हाई स्कूल में दर्ज संख्या के अनुसार प्रति स्कूल चार से पांच स्मार्ट क्लास बनाने की योजना थी.

जर्जर भवन में मजबूरी का पढ़ाई, उम्मीद ने आश्वासन के आगे टेके घुटने

स्मार्ट क्लास के लिए आंवटित हुए थे 2 लाख रुपये

योजना के तहत सभी स्मार्ट क्लास में प्रोजेक्टर, लैपटॉप, स्मार्ट इंटरएक्टिव बोर्ड और साउंड सिस्टम के साथ बच्चों को विजुअल एवं डिजिटल माध्यम से उनके पाठ्यक्रम को पढ़ाना था. बिलासपुर के लिए प्रति क्लास पूर्व में 2 लाख एवं वर्तमान में 2 लाख 40 हजार रुपये सरकार द्वारा निर्धारित किया गया था.

280 स्कूलों में स्मार्ट क्लास की योजना

जिसमें गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला भी शामिल है. 280 स्कूलों में स्मार्ट क्लास बनाई जानी थी. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि 2 साल बीत जाने के बावजूद स्मार्ट क्लास के नाम पर स्कूलों में सिर्फ स्पीकर एवं प्रोजेक्टर के स्टैंड ही लगाए गए है. जबकि व्हाइट स्मार्ट बोर्ड (white smart board) लगाया जाना था. लेकिन न लैपटॉप, न प्रोजेक्टर, न अन्य सामग्री को लगाया है.

डिजिटल एवं विजुअल माध्यम से समझने में होती है आसानी

स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को आज भी स्मार्ट होने का इंतजार है. बड़े निजी स्कूलों की तरह स्मार्ट और ई-क्लास के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर अपने बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठा सकें. क्लास में लगे टूटे-फूटे उपकरणों को देखकर छात्र दुखी है. छात्रों का मानना है कि यदि स्मार्ट क्लास होती तो डाईग्राम या अन्य पाठ्यक्रम को डिजिटल एवं विजुअल माध्यम से समझने में आसानी होती. स्कूल बैग का बोझ भी कम होता. इसके साथ ही शिक्षकों को भी पढ़ाने में आसानी होती.

शिक्षा के लिए गिरता प्लास्टर और गिराउ छत के बीच पढ़ाई करते छात्र

छात्रों की उम्मीदें अब भी बरकरार

ब्लैक बोर्ड से कीबोर्ड की ओर अग्रसर बनाने के लिए शुरू की गई स्मार्ट क्लास योजना अभी अधर में लटकी हुई है. वहीं छात्रों को अब भी उम्मीद है कि विफल सरकारी तंत्र और लालफीताशाही जागेगी और बेबी स्मार्ट क्लास के माध्यम से शिक्षा लेकर स्मार्ट हो सकेंगे. लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग जिस पर देश के भविष्य को गढ़ने की जिम्मेदारी है कुंभकरण की नींद में सो रहा है.

कई जिलों में स्मार्ट ई-क्लास अधर में

वहीं छत्तीसगढ़ के स्कूलों में स्मार्ट क्लास बनाने का टेंडर मैसर्स बैनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (Tender M/s Bennett Coleman & Co. Ltd.) को मिला था. हालांकि कुछ समय के लिए मामला कोर्ट में था लेकिन कोर्ट से निराकरण होने के बावजूद अब तक स्कूलों में स्मार्ट क्लास नहीं लग सकी है. हालांकि समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan) के तहत इस तरह की योजनाओं में 60% व्यय केंद्र सरकार एवं 40% व्यय राज्य सरकार की ओर से किया जाता है. इस योजना के तहत भी शिक्षकों को ठेका कंपनी की तरफ से टेक्निकल ट्रेनिंग के साथ-साथ एक सपोर्ट स्टाफ भी उपलब्ध कराना था. लेकिन योजना के 2 वर्ष बाद भी छत्तीसगढ़ के कई जिले जिसमें गौरेला पेंड्रा मरवाही, बिलासपुर, कोरबा, मुंगेली जैसे जिले शामिल हैं. आज तक स्मार्ट ई-क्लास चालू नहीं हो सकी है.

गौरेला पेंड्रा मरवाही: छत्तीसगढ़ के सरकारी हायर सेकंडरी और हाईस्कूल स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को डिजिटल माध्यम से जोड़ने के लिए सरकार की क्लास योजना चलाई थी. ताकि शिक्षा का स्तर उठाया जा सके. यह योजना भारत सरकार के सहयोग से शुरू की गई थी. लेकिन 2 साल बीतने के बाद भी यह योजना सही आकर नहीं ले पाई है. स्कूलों में स्मार्ट क्लास (Smart E-Class) के नाम पर सिर्फ स्पीकर एवं प्रोजेक्टर स्टैंड लगाकर छोड़ दिये गए हैं. वहीं छात्रों को अभी और स्कूल्स में स्मार्ट क्लास का इंतजार करना होगा. वहीं अधिकारियों को यह पता ही नहीं है कि क्लासेस कब तक स्मार्ट हो सकेंगी.

कब शुरू होगी डिजिटल क्लास?

अधर में अटकी योजना

छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रहे छात्र छात्राओं को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए भारत सरकार, समग्र शिक्षा अभियान एवं ICT ( INFORMATION AND COMMUNICATION TECHNOLOGY) के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में छत्तीसगढ़ के 4330 हायर सेकेंडरी एवं हाई स्कूल में दर्ज संख्या के अनुसार प्रति स्कूल चार से पांच स्मार्ट क्लास बनाने की योजना थी.

जर्जर भवन में मजबूरी का पढ़ाई, उम्मीद ने आश्वासन के आगे टेके घुटने

स्मार्ट क्लास के लिए आंवटित हुए थे 2 लाख रुपये

योजना के तहत सभी स्मार्ट क्लास में प्रोजेक्टर, लैपटॉप, स्मार्ट इंटरएक्टिव बोर्ड और साउंड सिस्टम के साथ बच्चों को विजुअल एवं डिजिटल माध्यम से उनके पाठ्यक्रम को पढ़ाना था. बिलासपुर के लिए प्रति क्लास पूर्व में 2 लाख एवं वर्तमान में 2 लाख 40 हजार रुपये सरकार द्वारा निर्धारित किया गया था.

280 स्कूलों में स्मार्ट क्लास की योजना

जिसमें गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला भी शामिल है. 280 स्कूलों में स्मार्ट क्लास बनाई जानी थी. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि 2 साल बीत जाने के बावजूद स्मार्ट क्लास के नाम पर स्कूलों में सिर्फ स्पीकर एवं प्रोजेक्टर के स्टैंड ही लगाए गए है. जबकि व्हाइट स्मार्ट बोर्ड (white smart board) लगाया जाना था. लेकिन न लैपटॉप, न प्रोजेक्टर, न अन्य सामग्री को लगाया है.

डिजिटल एवं विजुअल माध्यम से समझने में होती है आसानी

स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को आज भी स्मार्ट होने का इंतजार है. बड़े निजी स्कूलों की तरह स्मार्ट और ई-क्लास के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर अपने बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठा सकें. क्लास में लगे टूटे-फूटे उपकरणों को देखकर छात्र दुखी है. छात्रों का मानना है कि यदि स्मार्ट क्लास होती तो डाईग्राम या अन्य पाठ्यक्रम को डिजिटल एवं विजुअल माध्यम से समझने में आसानी होती. स्कूल बैग का बोझ भी कम होता. इसके साथ ही शिक्षकों को भी पढ़ाने में आसानी होती.

शिक्षा के लिए गिरता प्लास्टर और गिराउ छत के बीच पढ़ाई करते छात्र

छात्रों की उम्मीदें अब भी बरकरार

ब्लैक बोर्ड से कीबोर्ड की ओर अग्रसर बनाने के लिए शुरू की गई स्मार्ट क्लास योजना अभी अधर में लटकी हुई है. वहीं छात्रों को अब भी उम्मीद है कि विफल सरकारी तंत्र और लालफीताशाही जागेगी और बेबी स्मार्ट क्लास के माध्यम से शिक्षा लेकर स्मार्ट हो सकेंगे. लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग जिस पर देश के भविष्य को गढ़ने की जिम्मेदारी है कुंभकरण की नींद में सो रहा है.

कई जिलों में स्मार्ट ई-क्लास अधर में

वहीं छत्तीसगढ़ के स्कूलों में स्मार्ट क्लास बनाने का टेंडर मैसर्स बैनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (Tender M/s Bennett Coleman & Co. Ltd.) को मिला था. हालांकि कुछ समय के लिए मामला कोर्ट में था लेकिन कोर्ट से निराकरण होने के बावजूद अब तक स्कूलों में स्मार्ट क्लास नहीं लग सकी है. हालांकि समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan) के तहत इस तरह की योजनाओं में 60% व्यय केंद्र सरकार एवं 40% व्यय राज्य सरकार की ओर से किया जाता है. इस योजना के तहत भी शिक्षकों को ठेका कंपनी की तरफ से टेक्निकल ट्रेनिंग के साथ-साथ एक सपोर्ट स्टाफ भी उपलब्ध कराना था. लेकिन योजना के 2 वर्ष बाद भी छत्तीसगढ़ के कई जिले जिसमें गौरेला पेंड्रा मरवाही, बिलासपुर, कोरबा, मुंगेली जैसे जिले शामिल हैं. आज तक स्मार्ट ई-क्लास चालू नहीं हो सकी है.

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