बिलासपुर : नवाज़ देवबंदी की एक मशहूर गजल है. उसके बोल कुछ इस तरह हैं "सफर में मुश्किलें आएं तो ज़ुर्रत और बढ़ती है, कोई जब रास्ता रोके तो हिम्मत और बढ़ती है. और वास्तव में एक बार फिर से इसे सच कर दिखाया है बिलासपुर की बेटी सानिया रिजवी ने. सानिया दोनों आंखों से दिव्यांग (Handicapped in Both Eyes) है, लेकिन उसने अपनी इस सबसे बड़ी कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना ली. डेढ़ साल की उम्र में ही हुए दवा के रिएक्शन (Drug Reaction) के कारण उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. तभी से उसकी जिंदगी में अंधेरा तो जरूर हुआ, लेकिन उसने हिम्मत टूटने नहीं दी और आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई. आज वह महिला बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी (Project Officer of Women and Child Development Department) बन गई है. सानिया ने पीएससी 2019 (psc 2019) की परीक्षा में अपने पहले ही प्रयास में सफलता पाई है.
डेढ़ साल की उम्र हुआ था डबल निमोनिया, दवा हुई थी रिएक्शन
सानिया जब डेढ़ साल की थी, तभी उसे डबल निमोनिया हो गया था. इसके लिए उसके माता-पिता ने उसका इलाज शहर के एक डॉक्टर से कराया. लेकिन डॉक्टर की दी हुई कुछ दवा रिएक्शन कर गई, जिसकी वजह से सानिया के शरीर में काले धब्बे हो गए. माता-पिता ने इसकी जानकारी जब डॉक्टर को दी तो उन्होंने कहा कि दवा का रिएक्शन है, जल्द ही ठीक हो जाएगा. इतना कहकर अस्पताल से उसे डिस्चार्ज कर दिया. माता-पिता सानिया को घर ले आए. घर आकर देखा कि सानिया रोशनी में चीख-चीखकर रोने लगी. लाइट से उसे आंखों में दिक्कत महसूस होने लगी. माता-पिता जब कमरे की लाइट बंद करते तो सानिया रोना बंद कर देती, जैसे ही चालू करती फिर रोने लगती.
डॉक्टर ने बताया-धीरे-धीरे चली जाएगी आंखों की रोशनी
इस समस्या को देखते हुए सानिया के माता-पिता को यह समझ में आ गया कि उसकी आंखों में कोई समस्या है. वे सानिया को आंख के डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने कहा कि उसकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे चली जाएगी. यह कुछ ऐसी दवा थी, जिसके रिएक्शन से ऐसा हुआ था. सानिया के माता-पिता उसका इलाज शहर के आंख के डॉक्टरों से कराते रहे, लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी. तब किसी ने उन्हें चेन्नई के शंकर नेत्रालय में दिखाने की सलाह दी. चेन्नई में डॉक्टरों ने उसकी आंखों की जांच कर बताया कि अब वह देख नहीं पाएगी. यह सुनकर माता-पिता के होश उड़ गए. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सामान्य बच्चों की तरह ही सानिया की परवरिश की. और आलम यह है कि आज सानिया एक सरकारी अफसर बन चुकी है.
एनआइटी में ही ठान लिया था बनना है अधिकारी
वहीं सानिया रिजवी ने बताया कि जब वह बारहवीं के बाद बीटेक की पढ़ाई करने एनआईटी रायपुर गई थी, तभी मन में ठान ली थी कि उसे भी बड़े अधिकारी के रूप में अपने आपको देखना है. यही सपना देखते हुए वह बीटेक की पढ़ाई पूरी कर वापस बिलासपुर लौटी. यहां उसने एक कोचिंग ज्वाइन किया, जहां वह टीचर की पढ़ाई और समझाने के समय उनकी आवाज रिकॉर्ड कर लेती थी. बाद में उसे सुनकर वह उसे याद कर लेती थी. सानिया ने 2019 में पहली बार पीएससी की परीक्षा दी औस उसे सफलता भी मिल गई. सानिया ने बताया कि उसने कभी भी अपने आप को दिव्यांग नहीं समझा. हमेशा वह सामान्य बच्चों में अपनी गिनती करती थी और वह सभी काम करती थी जो सामान्य बच्चे करते हैं.
माता-पिता ने कभी नहीं समझा दिव्यांग
सानिया के पिता ने सानिया की परवरिश की कहानी बताई. शुरुआत में उन्हें काफी तकलीफ होती थी. सानिया का इलाज, घर की देखभाल और अपने काम को लेकर वह हमेशा उलझे रहते थे. लेकिन धीरे-धीरे सानिया बहुत कुछ खुद करने लगी और धीरे-धीरे माता-पिता की भी परेशानियां कम होने लगीं. माता-पिता ने सानिया को कभी भी दिव्यांग नहीं समझा. उसकी परवरिश सामान्य बच्चों की तरह की और सानिया को यह कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग है.
सानिया को हुआ है स्क्रीमिंग जॉनसन रोग
सानिया की इस दिव्यांगता को स्क्रीमिंग जॉनसन रोग कहा जाता है. इसमें आंख में आंसू नहीं बनते. इसलिए आर्टिफिशियल आंसू आंख में डाला जाता है, जिसे आजकल रिफ्रेश टियर्स कहा जाता है. जिसके डालने से आंख सूख नहीं पाती और गीली रहती है. इस सानिया को तकलीफ नहीं होती. आंखों में नमी बनी रहती है. सानिया महिला बाल विकास की परियोजना अधिकारी तो बन गई हैं, लेकिन उनका कहना है कि अभी उनकी मंजिल बहुत दूर है.