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जानिए बिलासपुर का रावत महोत्सव क्यों है खास, कल से होगी शुरुआत - सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व

बिलासपुर के लाल बहादुर स्कूल प्रांगण में रावत नाच महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जिसके लिए प्रदेशभर से रावतों की टोली पहुंचेगी और छटा बिखेरेगी.

बिलासपुर का रावत महोत्सव
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Published : Nov 15, 2019, 10:17 PM IST

Updated : Nov 15, 2019, 10:39 PM IST

बिलासपुर: बिलासपुर में कल यानी 16 नवंबर से 42वां रावत महोत्सव मनाया जाएगा. इस आयोजन से एक बार फिर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बिलासपुर के लाल बहादुर शास्त्री स्कूल प्रांगण में लोक संस्कृति की छटा बिखरेगी. एक साथ हजारों यदुवंशियों की टोली अपने नृत्य और शौर्य का प्रदर्शन कर हजारों लोगों का दिल जीतेगी.

बिलासपुर का रावत महोत्सव

बताया जा रहा है बिलासपुर में रावत नाच महोत्सव लाल बहादुर स्कूल प्रांगण में 1978 से मनाने की परंपरा चली आ रही है. पहले शहर में रावतों की टोली असंगठित तौर पर शहर के कई हिस्सों में अपना शौर्य प्रदर्शन करते दिखते थे. इस प्रदर्शन के दौरान कई बार उनके बीच लड़ाई-झगड़े जैसी नौबत भी आ जाती है, लेकिन इस मुश्किल घड़ी के लिए कालीचरण यादव और उनकी टीम ने एक बीड़ा उठाया और असंगठित रावत नाच को एक महोत्सव का रूप दिया.

सम्मान स्वरूप उपहार दिया जाता है
रावत नाच का अपना एक अलग सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है. जानकारों की मानें, तो यह महोत्सव समाज में पशुसेवक के रूप में स्थापित यदुवंशियों के सम्मान का महोत्सव है. दीपावली के बाद तमाम यादवों को तकरीबन 1 पखवाड़े तक उन्हें उत्सव मनाने का अवसर दिया जाता है. इस बीच वो पशु सेवा के काम से दूर रहते हैं और समाज के तमाम उन लोगों से टोलियों में जाकर मिलते जुलते हैं, जिनसे उनका रोज का मिलना जुलना होता है. इस तरह से यदुवंशियों की टोलियों को घर-घर सम्मान स्वरूप उपहार दिया जाता है.

पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व को बताता है
रावत महोत्सव का मूल महत्व कृषि संस्कृति को बचाये रखना है. प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है. इस महोत्सव के दौरान यादवों की टोली विशेष वेशभूषा में पहुंचते हैं, जो उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व को बताता है. यादवों के साज-सज्जा के रूप में विशेष तौर पर पैरों में घुंघरू, हाथ में तेंदू की लाठी, आकर्षक रंगीन धोती और काजल का टीका, विशेष तरह की पगड़ी उन्हें आकर्षक बनाता है.

प्रचलित पंक्ति
जैसे भैया लिए दिए...वैसे देव अशीष...अनधन तुंहर घर भरे.....जुग जीयो लाख बरीस....
साम्प्रदायिक सौहार्द और महत्वपूर्ण संदेश
इतना ही नहीं पुरुष प्रधान रावत नृत्य में पुरुष ही महिलाओं की वेशभूषा में नजर आते हैं और नृत्य के दौरान विभिन्न दोहों के माध्यम से लोक कल्याण की कामना की जाती है. रावत नाच को कृष्णलीला के रूप में भी माना जाता है. इसे साम्प्रदायिक सौहार्द और महत्वपूर्ण संदेश वाहक के एक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है.

रावत की टोलियों को प्रोत्साहित किया जाएगा
बता दें कि कल यानी 16 नवंबर को हर साल की तरह इस बार भी विशेष प्रदर्शन करने वाले रावत की टोलियों को प्रोत्साहित किया जाएगा. वहीं हजारों के तादात में लोग रावत महोत्सव का लुत्फ भी उठाएंगे, लेकिन जरूरी यह है कि लोक संस्कृति के महत्व से लबरेज रावत महोत्सव को न सिर्फ एक दिन के आयोजन तक हम इसे सीमित रखें, बल्कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सहेजने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उठाएं.

बिलासपुर: बिलासपुर में कल यानी 16 नवंबर से 42वां रावत महोत्सव मनाया जाएगा. इस आयोजन से एक बार फिर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बिलासपुर के लाल बहादुर शास्त्री स्कूल प्रांगण में लोक संस्कृति की छटा बिखरेगी. एक साथ हजारों यदुवंशियों की टोली अपने नृत्य और शौर्य का प्रदर्शन कर हजारों लोगों का दिल जीतेगी.

बिलासपुर का रावत महोत्सव

बताया जा रहा है बिलासपुर में रावत नाच महोत्सव लाल बहादुर स्कूल प्रांगण में 1978 से मनाने की परंपरा चली आ रही है. पहले शहर में रावतों की टोली असंगठित तौर पर शहर के कई हिस्सों में अपना शौर्य प्रदर्शन करते दिखते थे. इस प्रदर्शन के दौरान कई बार उनके बीच लड़ाई-झगड़े जैसी नौबत भी आ जाती है, लेकिन इस मुश्किल घड़ी के लिए कालीचरण यादव और उनकी टीम ने एक बीड़ा उठाया और असंगठित रावत नाच को एक महोत्सव का रूप दिया.

सम्मान स्वरूप उपहार दिया जाता है
रावत नाच का अपना एक अलग सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है. जानकारों की मानें, तो यह महोत्सव समाज में पशुसेवक के रूप में स्थापित यदुवंशियों के सम्मान का महोत्सव है. दीपावली के बाद तमाम यादवों को तकरीबन 1 पखवाड़े तक उन्हें उत्सव मनाने का अवसर दिया जाता है. इस बीच वो पशु सेवा के काम से दूर रहते हैं और समाज के तमाम उन लोगों से टोलियों में जाकर मिलते जुलते हैं, जिनसे उनका रोज का मिलना जुलना होता है. इस तरह से यदुवंशियों की टोलियों को घर-घर सम्मान स्वरूप उपहार दिया जाता है.

पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व को बताता है
रावत महोत्सव का मूल महत्व कृषि संस्कृति को बचाये रखना है. प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है. इस महोत्सव के दौरान यादवों की टोली विशेष वेशभूषा में पहुंचते हैं, जो उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व को बताता है. यादवों के साज-सज्जा के रूप में विशेष तौर पर पैरों में घुंघरू, हाथ में तेंदू की लाठी, आकर्षक रंगीन धोती और काजल का टीका, विशेष तरह की पगड़ी उन्हें आकर्षक बनाता है.

प्रचलित पंक्ति
जैसे भैया लिए दिए...वैसे देव अशीष...अनधन तुंहर घर भरे.....जुग जीयो लाख बरीस....
साम्प्रदायिक सौहार्द और महत्वपूर्ण संदेश
इतना ही नहीं पुरुष प्रधान रावत नृत्य में पुरुष ही महिलाओं की वेशभूषा में नजर आते हैं और नृत्य के दौरान विभिन्न दोहों के माध्यम से लोक कल्याण की कामना की जाती है. रावत नाच को कृष्णलीला के रूप में भी माना जाता है. इसे साम्प्रदायिक सौहार्द और महत्वपूर्ण संदेश वाहक के एक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है.

रावत की टोलियों को प्रोत्साहित किया जाएगा
बता दें कि कल यानी 16 नवंबर को हर साल की तरह इस बार भी विशेष प्रदर्शन करने वाले रावत की टोलियों को प्रोत्साहित किया जाएगा. वहीं हजारों के तादात में लोग रावत महोत्सव का लुत्फ भी उठाएंगे, लेकिन जरूरी यह है कि लोक संस्कृति के महत्व से लबरेज रावत महोत्सव को न सिर्फ एक दिन के आयोजन तक हम इसे सीमित रखें, बल्कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सहेजने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उठाएं.

Intro:कल यानी 16 नवंबर को बिलासपुर में 42वां रावत महोत्सव आयोजित होगा और एकबार फिर से प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी बिलासपुर के लालबहादुर शास्त्री स्कूल प्रांगण में एक साथ हजारों यदुवंशियों की टोली अपने नृत्य और शौर्य प्रदर्शन से लोगों का दिल जीतेंगे । तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि बिलासपुर का यह रावत महोत्सव पूरे देश में क्यों है खास और जानिए इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को । एक ख़ास रिपोर्ट...


Body:बिलासपुर में रावत नाच महोत्सव संगठित तौर पर स्थानीय लाल बहादुर स्कूल प्रांगण में सन 1978 से होते आ रहा है । पहले शहर में रावतों की टोली असंगठित तौर पर शहर के विभिन्न हिस्सों में अपना शौर्य प्रदर्शन करते दिखते थे और इस प्रदर्शन के दौरान कई बार उनके बीच लड़ाई झगड़े जैसी नौबत भी आ जाती है ।इस मुश्किल घड़ी में उन्हें सँभाल पाना थोड़ा मुश्किल काम होता था । फिर शहर के ही डॉ कालीचरण यादव और उनकी टीम ने एक बीड़ा उठाया और असंगठित रावत नाच को एक महोत्सव का रूप दिया । इस तरह बिलासपुर के लालबहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में बीते 41 सालों से आयोजित हो रहे रावत महोत्सव की प्रसिद्धि देशव्यापी होती चली गई और रावत महोत्सव के रूप बिलासपुर पूरे देश में एकमात्र मंच के रूप में उभर के सामने आया ।
रावत नाच का अपना एक अलग सांस्कृतिक,सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है । जानकारों की मानें तो यह महोत्सव समाज में पशुसेवक के रूप में स्थापित यदुवंशियों के सम्मान का महोत्सव है । दीपावली के बाद तमाम यादवों को तकरीबन 1 पखवाड़े तक उन्हें उत्सव मनाने का अवसर दिया जाता है । इस बीच वो पशु सेवा के काम से दूर रहते हैं और समाज के तमाम उनलोगों से टोलियों में जाकर हिलते मिलते हैं जिनसे उनका रोजका मिलना जुलना होता है और जिनके यहां वो काम करते हैं । इस तरह से यदुवंशियों की टोलियों को घर घर सम्मानस्वरूप उपहार दिया जाता है । रावत महोत्सव का मूल महत्व कृषि संस्कृति को बचाये रखना है । प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में इस धूमधाम से मनाया जाता है । इस महोत्सव के दौरान यादवों की टोली विशेष वेशभूषा में पहुंचते हैं जो उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व को बताता है । यादवों के साजसज्जा के रूप में विशेष तौर पर पैरों में घुंघरू, हाथ में तेंदू की लाठी,आकर्षक रंगीन धोती,चेहरे पर रामरज का लेप और काज़ल का टीका,विशेष तरह की पगड़ी उन्हें आकर्षक बनाता है । पुरूष प्रधान रावत नृत्य में पुरुष ही महिलाओं की वेशभूषा में नजर आते हैं और नृत्य के दौरान विभिन्न दोहों के माध्यम से लोककल्याण की कामना की जाती है । रावत नाच को कृष्ण लीला के रूप में भी माना जाता है । इसे साम्प्रदायिक सौहार्द और महत्वपूर्ण सन्देशवाहक के एक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

प्रचलित पंक्ति....
जैसे भैया लिए दिए...
वैसे देव अशीष.........
अनधन तुंहर घर भरे.....
जुग जीयो लाख बरीस....!






Conclusion:कल हर साल की तरह इस बार भी विशेष प्रदर्शन करनेवाले रावत की टोलियों को प्रोत्साहित भी किया जाएगा और हजारों के तादात में लोग रावत महोत्सव का लुफ्त भी उठाएंगे । लेकिन जरूरी यह है कि लोकसंस्कृति के महत्व से लबरेज़ रावत महोत्सव को ना सिर्फ एक दिन के आयोजन तक हम इसे सीमित रखें बल्कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सहेजने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी उठाएं ।
बाईट....१.. डॉ कालीचरण यादव,
रावत महोत्सव संस्थापक(सफेद शर्ट)
बाईट....२.. डॉ विनय पाठक...साहित्यकार(कुर्सी पर बैठे हुए)
पीटूसी
विशाल झा..... बिलासपुर
Last Updated : Nov 15, 2019, 10:39 PM IST
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