बिलासपुर: धार्मिक अनुष्ठानों में मौली का काफी महत्व होता है. इसी महत्व को बताने और मौली के साइंटिफिक और धार्मिक उपयोगिता की जानकारी देने शहर की महिला ने नया प्रयास किया है. महिला मौली धागों से विभिन्न सामान बना कर इसकी बिक्री करती है. इसकी बिक्री से होने वाले प्रॉफिट से गरीब बच्चों के साथ ही स्पेशल (दिव्यांग) बच्चों की मदद करती हैं. बच्चों की पढ़ाई के साथ ही उनकी जरूरत के सामान खरीदकर देती हैं, जिससे उनका भविष्य बन (making Rakhi from Molly in Bilaspur For future of Poor children) सके.
बिलासपुर में मौली से बनी राखियों की डिमांड: ममता पांडेय कहती हैं कि मौली धागों की राखियां इस समय डिमांड पर है. मौली का अपना अलग महत्व होता है. मौली की राखियां सस्ती तो होती ही है. साथ ही त्योहार हो जाने के बाद भी इसे हाथों से नहीं निकाला जाए तो फैशन के रूप में भी इसे पहना जा सकता है. मुस्लिम धर्म और हिंदू धर्म में इसका उपयोग किया जाता है. मुस्लिम मजारों में इसे मन्नती धागों के रूप में बांधा जाता है. मन्नत पूरी होने पर इसे खोलकर हाथों में बांध लिया जाता है.
मौली को शुद्ध धागा माना जाता है: मौली धागों को शुद्ध और फायदेमंद माना जाता है. यही कारण है कि बाजार में मौली धागों से बनी राखियां काफी डिमांड पर हैं. लोगों को मालूम है कि मौली धागा बांधने से किस तरह के फायदे होते हैं. मौली धागा से मन को शांति मिलती है. इसे बांधने पर पेट के कई विकार दूर होते हैं. कब्ज, पित्त, पेट में जकड़न और मरोड़ दूर होता है.
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मौली का धार्मिक महत्व: मौली धागों का मंदिरों में काफी महत्व होता है. मंदिरों में मन्नती धागे के रूप में इसे बांधा जाता है. मन्नतों के लिए मौली धागों को हाथों में भी बांधा जाता है. मौली को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है. वैसे तो मौली का धार्मिक अनुष्ठान में काफी महत्व होता है. इसे पूजा के दौरान जजमान के हाथों में बांधा जाता है. हवन के पहले हाथ में बांध कर आहुति दी जाती है.
राखी के अलावा ये चीजें होती है तैयार: राखी के पर्व में बाजार में कई प्रकार की राखियों के साथ ही फैशन के अनुरूप राखियां उपलब्ध हैं. कहीं फिल्मों के फैशन की राखियां, कहीं क्षेत्रीय पहचान पर बनी राखियां उपलब्ध हैं. बिलासपुर की ममता पांडेय कहती हैं कि "बाजार में कई अलग अलग तरह की राखियां तो हैं लेकिन मौली से बनी राखियां बहुत कम ही उपयोग की जाती है. मौली की राखियां लेने वाले अलग लोग ही रहते हैं. जो इसके महत्व और फायदों को जानते हैं, वो इसकी खरीदी करते हैं.'' ममता मौली से अलग अलग चीजें बना रही है. राखियों के साथ ही पंजाबी फैशन की तोरन और लड़कियों के चोटियों और परांदे, हेयरबैंड, फ्रेंडशिप बैंड तैयार करती हैं.
प्रॉफिट से गरीबों की मदद: बिलासपुर में मौली से राखी तैयार करने वाली ममता पांडे कहती हैं कि " पिछले 2 साल से मौली से विभिन्न किस्म के सामान और राखियां बना रही हूंं. मेरा उद्देश्य है कि इस धागे के महत्व को लोग समझें. मौली धागों से बने सामान की बिक्री कर उससे हुए फायदे की रकम से गरीब बच्चों और दिव्यांगों की मदद कर सकूं.'' ममता पिछले 2 सालों से गरीब बच्चों की मदद कर रही है. उन्हें कॉपी किताब के साथ शिक्षा के दूसरे सामान और आवश्यक वस्तुएं खरीद कर देती हैं. इस बार ममता ने फैसला लिया है कि वो होने वाले प्रॉफिट को सरकंडा के दिव्यांग बच्चों की मदद करेंगी, ताकि उनको भविष्य में शिक्षा प्राप्त करने में सहूलियत मिले.