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गौरेला पेंड्रा मरवाही में बच्चों को दी जा रही जिम्नास्ट की ट्रेनिंग

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Published : Aug 12, 2022, 7:07 PM IST

गौरेला पेंड्रा मरवाही में ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को जिम्नास्ट के गुण सीखाए जा रहे हैं. इनके पास संसाधनों की कमी है बावजूद इन्हें ये प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बच्चे भी बढ़-चढ़ कर इस कला को सीख रहे हैं.

Qualities of gymnasts being taught to children
जिम्नास्ट की ट्रेनिंग

गौरेला पेंड्रा मरवाही: राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बीच पेंड्रा के गुरुकुल मैदान में ग्रामीण आदिवासी छात्रों को जिम्नास्ट एथलेटिक्स जैसे कठिन खेलों में पारंगत करने को प्रशिक्षित किया जा रहा है. सीमित संसाधनों के बीच आदिवासी ग्रामीण बच्चों को जिस तरह से इन कठिन खेलों में प्रशिक्षित किया जा रहा है, निश्चय ही यह खिलाड़ी देश का भविष्य बनने को तैयार हो रहे हैं. Training of gymnasts being given to children in Gaurela Pendra Marwahi

जिम्नास्ट की ट्रेनिंग

बच्चों को किया जा रहा प्रशिक्षित: बता दें कि लगभग 2 साल पहले छत्तीसगढ़ में जिले के रूप में अस्तित्व में आया गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की प्रतिभा और क्षमता को समझ कर दशकों पहले मध्यप्रदेश शासन काल में ही खेल प्रतिभा निखारने को गुरुकुल खेल परिसर बनाया गया था. जहां वनांचल में रहने वाले ग्रामीण आदिवासी बच्चों को खेल के साथ जोड़कर उनके और देश के भविष्य के रूप में आगे लाने के लिए विद्यालय और माहौल तैयार किया जा रहा है. गुरुकुल खेल परिसर के जिम्नेशियम प्रशिक्षण हाल में एथलेटिक्स और जिमनास्टिक का प्रशिक्षण पाते शहरी बच्चे नहीं हैं बल्कि छात्रावास में रहने वाले बैगा, भैना, गोंड़ कवर जैसे आदिवासी समाज के बच्चे हैं. जिन्हें छात्रावासों में रखकर पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें: चिरमिरी आत्मानंद स्कूल में शिक्षकों की कमी

इन विधाओं को सीखाया जाता है: वर्षों के प्रशिक्षण के बाद छात्र आज इस तरह के करतब दिखाने में सक्षम हो सके हैं. यह देखने में भले ही आसान लगता हो, पर इसे करना बहुत ही मुश्किल है. इसके लिए लगातार प्रशिक्षण के साथ-साथ कठिन परिश्रम की आवश्यकता है. जमीन पर बंदरों की तरह लगातार पलटी मारते हुए गुलाटी मारना हो, या हाथ के बल चलना हो, या हवा में उछल कर पूरे शरीर को घुमाकर जिमनास्टिक की इन कठिन विधाओं को दिखाना हो.. निश्चय ही छात्रों और प्रशिक्षकों के कठिन परिश्रम से संभव हो सका है. छात्र भी अपने प्रशिक्षकों की मेहनत से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वे पहले भी देश एवं प्रदेश स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके हैं.

ये होती है प्रक्रिया: इस विषय में मुख्य प्रशिक्षक मोहन कुमार थापा का कहना है कि संसाधनों को लेकर वैसे तो संतुष्ट हैं. गद्दे नए मिल जाते कुछ फटे हैं. उनकी रिपेयरिंग हो जाती है वह कुछ और सामान मिल जाता तो प्रशिक्षण में आसानी होती. फिर भी इन संसाधनों के बीच छात्रों को आने वाले राज्यस्तरीय खेलों के लिए तैयार किया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों से निकल कर आए बच्चों के मन से सबसे पहले डर हटाया जाता है ताकि वे कूदने बांधने एवं जिम्नास्ट के खेलों के प्रति उत्साहित होकर आगे बढ़े. उसके बाद उन्हें बेसिक सिखा कर आगे ट्रेंड किया जाता है.

गौरेला पेंड्रा मरवाही: राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बीच पेंड्रा के गुरुकुल मैदान में ग्रामीण आदिवासी छात्रों को जिम्नास्ट एथलेटिक्स जैसे कठिन खेलों में पारंगत करने को प्रशिक्षित किया जा रहा है. सीमित संसाधनों के बीच आदिवासी ग्रामीण बच्चों को जिस तरह से इन कठिन खेलों में प्रशिक्षित किया जा रहा है, निश्चय ही यह खिलाड़ी देश का भविष्य बनने को तैयार हो रहे हैं. Training of gymnasts being given to children in Gaurela Pendra Marwahi

जिम्नास्ट की ट्रेनिंग

बच्चों को किया जा रहा प्रशिक्षित: बता दें कि लगभग 2 साल पहले छत्तीसगढ़ में जिले के रूप में अस्तित्व में आया गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले की प्रतिभा और क्षमता को समझ कर दशकों पहले मध्यप्रदेश शासन काल में ही खेल प्रतिभा निखारने को गुरुकुल खेल परिसर बनाया गया था. जहां वनांचल में रहने वाले ग्रामीण आदिवासी बच्चों को खेल के साथ जोड़कर उनके और देश के भविष्य के रूप में आगे लाने के लिए विद्यालय और माहौल तैयार किया जा रहा है. गुरुकुल खेल परिसर के जिम्नेशियम प्रशिक्षण हाल में एथलेटिक्स और जिमनास्टिक का प्रशिक्षण पाते शहरी बच्चे नहीं हैं बल्कि छात्रावास में रहने वाले बैगा, भैना, गोंड़ कवर जैसे आदिवासी समाज के बच्चे हैं. जिन्हें छात्रावासों में रखकर पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में पारंगत करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.

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इन विधाओं को सीखाया जाता है: वर्षों के प्रशिक्षण के बाद छात्र आज इस तरह के करतब दिखाने में सक्षम हो सके हैं. यह देखने में भले ही आसान लगता हो, पर इसे करना बहुत ही मुश्किल है. इसके लिए लगातार प्रशिक्षण के साथ-साथ कठिन परिश्रम की आवश्यकता है. जमीन पर बंदरों की तरह लगातार पलटी मारते हुए गुलाटी मारना हो, या हाथ के बल चलना हो, या हवा में उछल कर पूरे शरीर को घुमाकर जिमनास्टिक की इन कठिन विधाओं को दिखाना हो.. निश्चय ही छात्रों और प्रशिक्षकों के कठिन परिश्रम से संभव हो सका है. छात्र भी अपने प्रशिक्षकों की मेहनत से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वे पहले भी देश एवं प्रदेश स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर चुके हैं.

ये होती है प्रक्रिया: इस विषय में मुख्य प्रशिक्षक मोहन कुमार थापा का कहना है कि संसाधनों को लेकर वैसे तो संतुष्ट हैं. गद्दे नए मिल जाते कुछ फटे हैं. उनकी रिपेयरिंग हो जाती है वह कुछ और सामान मिल जाता तो प्रशिक्षण में आसानी होती. फिर भी इन संसाधनों के बीच छात्रों को आने वाले राज्यस्तरीय खेलों के लिए तैयार किया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों से निकल कर आए बच्चों के मन से सबसे पहले डर हटाया जाता है ताकि वे कूदने बांधने एवं जिम्नास्ट के खेलों के प्रति उत्साहित होकर आगे बढ़े. उसके बाद उन्हें बेसिक सिखा कर आगे ट्रेंड किया जाता है.

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