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Reservation Amendment Bill: आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका, राज्यपाल को बनाया पक्षकार

छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर मचे घमासान के बीच अब राज्यपाल के खिलाफ बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. हाईकोर्ट के अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल अनुसुइया उइके के बिल में हस्ताक्षर नहीं करने और उन्हें बिल रोकने के खिलाफ याचिका लगाई है. याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के आरक्षण संशोधन बिल में साइन नहीं करने को संविधान का उल्लंघन बताया है. याचिका में बताया गया है कि राज्यपाल अपने पद में आने से पहले एक राजनेता रहीं हैं और उनके राजनैतिक जीवन परिचय को भी बताया गया है.

Chhattisgarh High Court
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
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Published : Jan 23, 2023, 7:35 PM IST

आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर नया मोड़ आ गया है. अब आरक्षण का मामला एक बार फिर हाईकोर्ट पहुंच गया है. राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके के खिलाफ इस बार याचिका दाखिल की गई है. याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार ने 18 जनवरी 2012 को प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत एससी वर्ग के लिए 12 प्रतिशत, एसटी वर्ग के लिए 32 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग के लिए 14 प्रतिशत किया था. जिसे छतीसगढ़ हाईकोर्ट ने याचिकाओं की सुनवाई करते हुए असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया.

याचिका खारिज होने के बाद छतीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में जनसंख्या और अन्य आधारों के मुताबिक प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 76 परसेंट कर दिया. जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए दिये जाने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल हैं. नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण संशोधन बिल पास होने के बाद यह हस्ताक्षर होने के लिए राज्यपाल महोदया के पास गया. लेकिन राज्यपाल ने उसमें साइन नहीं किया.

वे धमतरी जिले के राजाराव पाथर गांव में अयोजित वीर मेला महोत्सव में शामिल हुई.वहां बयान दिया कि "मैने केवल आदिवासी आरक्षण बढ़ाने के लिए राज्य सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने सबका ही बढ़ा दिया." याचिका में बताया गया है. समाचार पत्रों के माध्यम से राज्यपाल के बयानों की जानकारी मिली कि मैंने आरक्षण विधेयक पर सरकार से दस प्रश्न पूछे हैं. यदि उसका जवाब मिल जाए तब मैं आरक्षण विधेयक पर साइन करूंगी. अब सरकार ने उसका भी जवाब दे दिया है. फिर भी आरक्षण बिल को राज्यपाल ने लटका कर रखा है.''

याचिका में क्या है : याचिकाकर्ता अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने बताया कि '' याचिका में बताया गया है कि राज्यपाल कब कब और किस किस सन में राजनैतिक पदों पर रही हैं.साथ ही यह भी बताया गया है कि वे राज्यपाल की भूमिका में न होकर एक राजनैतिक पार्टी के सदस्य की भूमिका में है. शायद इसलिए ही बिल पास नहीं कर रहीं हैं. जबकि संविधान के अनुसार यदि विधानसभा बिल पास कर दें तो राज्यपाल को तय समय में उसे स्वीकृति देनी होती है."

ये भी पढ़ें- नीट क्वालीफाइड दिव्यांग स्टूडेंट के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला

''राज्यपाल सिर्फ एक बार ही विधानसभा को बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकती हैं. यदि विधानसभा उसमें किसी भी तरह के संसोधन के साथ या बिना संसोधन के पुनः राज्यपाल को भेजे तो उन्हें तय समय मे स्वीकृति देनी ही पड़ती है. लेकिन राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रही है. प्रदेश में आरक्षण की स्थिति का कोई पता ही नही है. हाईकोर्ट में लगी कई याचिकाओं की सुनवाई भी इसलिए ही ठप्प पड़ गई है कि आरक्षण का प्रतिशत प्रदेश में तय नहीं है. याचिका में राज्यपाल को जल्द से जल्द निर्णय लेने के लिए निर्देशित करने की मांग की गई है.''

आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर नया मोड़ आ गया है. अब आरक्षण का मामला एक बार फिर हाईकोर्ट पहुंच गया है. राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके के खिलाफ इस बार याचिका दाखिल की गई है. याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार ने 18 जनवरी 2012 को प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत एससी वर्ग के लिए 12 प्रतिशत, एसटी वर्ग के लिए 32 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग के लिए 14 प्रतिशत किया था. जिसे छतीसगढ़ हाईकोर्ट ने याचिकाओं की सुनवाई करते हुए असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया.

याचिका खारिज होने के बाद छतीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में जनसंख्या और अन्य आधारों के मुताबिक प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 76 परसेंट कर दिया. जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए दिये जाने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल हैं. नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण संशोधन बिल पास होने के बाद यह हस्ताक्षर होने के लिए राज्यपाल महोदया के पास गया. लेकिन राज्यपाल ने उसमें साइन नहीं किया.

वे धमतरी जिले के राजाराव पाथर गांव में अयोजित वीर मेला महोत्सव में शामिल हुई.वहां बयान दिया कि "मैने केवल आदिवासी आरक्षण बढ़ाने के लिए राज्य सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने सबका ही बढ़ा दिया." याचिका में बताया गया है. समाचार पत्रों के माध्यम से राज्यपाल के बयानों की जानकारी मिली कि मैंने आरक्षण विधेयक पर सरकार से दस प्रश्न पूछे हैं. यदि उसका जवाब मिल जाए तब मैं आरक्षण विधेयक पर साइन करूंगी. अब सरकार ने उसका भी जवाब दे दिया है. फिर भी आरक्षण बिल को राज्यपाल ने लटका कर रखा है.''

याचिका में क्या है : याचिकाकर्ता अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने बताया कि '' याचिका में बताया गया है कि राज्यपाल कब कब और किस किस सन में राजनैतिक पदों पर रही हैं.साथ ही यह भी बताया गया है कि वे राज्यपाल की भूमिका में न होकर एक राजनैतिक पार्टी के सदस्य की भूमिका में है. शायद इसलिए ही बिल पास नहीं कर रहीं हैं. जबकि संविधान के अनुसार यदि विधानसभा बिल पास कर दें तो राज्यपाल को तय समय में उसे स्वीकृति देनी होती है."

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''राज्यपाल सिर्फ एक बार ही विधानसभा को बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकती हैं. यदि विधानसभा उसमें किसी भी तरह के संसोधन के साथ या बिना संसोधन के पुनः राज्यपाल को भेजे तो उन्हें तय समय मे स्वीकृति देनी ही पड़ती है. लेकिन राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रही है. प्रदेश में आरक्षण की स्थिति का कोई पता ही नही है. हाईकोर्ट में लगी कई याचिकाओं की सुनवाई भी इसलिए ही ठप्प पड़ गई है कि आरक्षण का प्रतिशत प्रदेश में तय नहीं है. याचिका में राज्यपाल को जल्द से जल्द निर्णय लेने के लिए निर्देशित करने की मांग की गई है.''

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