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वाह रे सरकार: 'नून-भात' खाने को मजबूर मनरेगा के मजदूर - MNREGA laborers

छत्तीसगढ़ में मनरेगा मजदूरों के हालत ठीक नहीं है. नवगठित गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में मनरेगा मजदूरों को पिछले दो महीने से मजदूरी नहीं मिली है. इसके चलते वे भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं.

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Published : Mar 11, 2021, 9:32 PM IST

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: लॉकडाउन के शुरुआती दौर में कोरोना संक्रमण जब चरम पर था. उस दौरान छत्तीसगढ़ के हजारों, लाखों मजदूर देश के अलग-अलग हिस्से से अपने-अपने गांव पहुंचे. इस दौरान उन्हें यहीं मनरेगा में काम उपलब्ध कराया गया. ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे. छत्तीसगढ़ में मनरेगा मजदूरों के लिए लाइफलाइन बन गई. मनरेगा से गरीब तबके के मजदूरों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध हो सका. लेकिन अब मजदूरों को परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है.

मनरेगा मजदूर को दो महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं

मजदूरी न मिलने से मजदूरों का हाल बेहाल

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में जिले में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का हाल बेहाल है. नवगठित जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के मनरेगा मजदूरों को पिछले 2 माह से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है. मजदूरी न मिलने से मजदूर परेशान हैं. जिसके चलते वे नमक-चावल खाने को मजबूर हैं. मनरेगा फंड में राशि नहीं रहने के कारण मजदूरों काे मजदूरी का भुगतान नहीं हाे पा रहा है. जिस कारण मजदूरों काे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मजदूरों को जीवन यापन करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. मजदूरों ने कहा कि राशन दुकान में भी काफी उधार हो गया है, ऐसे में राशन दुकानदार भी उधार देने से कतराते हैं.

7 दिन में मजदूरी भुगतान करने का नियम

जिले में मनरेगा मजदूरों का 7 करोड़ से ज्यादा मजदूरी बकाया है. पूरे छत्तीसगढ़ की बात करें तो अरबों रुपए की राशि मजदूरों को दी जानी है. वैसे तो मनरेगा कानून में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि 7 दिनों के भीतर मजदूरों का भुगतान किया जाएगा. यदि किसी परिस्थिति में भुगतान नहीं किया जाता है तो 15 दिवस के अंदर भुगतान करना ही होगा. नहीं तो प्रति मजदूर 1500 से 3000 तक मुआवजा देना होगा, लेकिन यहां मुआवजा तो छोड़िए मजदूरी ही नहीं मिली है. होली का त्यौहार सिर पर है और मजदूर अपनी दिहाड़ी के लिए मोहताज हैं.

मनरेगा कर्मियों का भूपेश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

मनरेगा में कई कार्य संचालित

छत्तीसगढ़ के सभी 28 जिलों में मनरेगा का काम चल रहा है. जिसमें भूमि समतलीकरण, तालाब गहरीकरण जैसे कई रोजगार मूलक काम हैं. लेकिन मजदूरों का भुगतान पिछले दो माह से नहीं हुआ है. मजदूरी ना मिलने से मजदूरों का हाल बेहाल हो चुका है. मजदूरों का कहना है कि काम करते-करते 2 माह हो गए. अब तक खाते में मजदूरी नहीं आई. जिससे उन्हें घर चलाना मुश्किल हो रहा है.

  • छत्तीसगढ़ में 11 हजार 665 ग्राम पंचायतें
  • 10,747 पंचायतों में मनरेगा योजना संचालित
  • 18 लाख 16 हजार 958 मजदूर मनरेगा में कार्यरत
  • इन ग्राम पंचायतों में 44,347 मस्टर रोल जारी

मनरेगा में 60/40 के रेशियों से कार्य

दरअसल, मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों पर 60 प्रतिशत श्रम और 40 प्रतिशत सामग्री के रेशियों से कार्य होता है. यानी 60 फीसदी मजदूरी और 40 फीसदी सामग्री. सामग्री में सीमेंट, सरिया, रेत, गिट्टी जैसे मिटेरियल शामिल है.

जशपुर: मनरेगा में फर्जी मस्टर रोल के जरिए फर्जीवाड़ा, ग्रामीणों ने की शिकायत

मटेरियल की खरीदी भी शामिल

शुरुआत में इन मटेरियल की खरीदी एजेंसियों को ही करना होता है. बाद में इसका भुगतान सीधे वेंडर के खाते में एफटीओ के माध्यम से कर दिया जाता है. पेंड्रा जिले की बात करें तो यहां मजदूरी और मटेरियल का 7 करोड़ 46 लाख से ज्यादा बकाया है

भुगतान ना होने से सरपंच परेशान

भुगतान ना होने से सरपंच काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि मनरेगा कार्य को लेकर अधिकारी दबाव बनाते हैं. उनका कहना है कि पहले काम कराओ, मटेरियल खरीदो. भुगतान बाद में कर दिया जाएगा. लेकिन महीनों गुजरने के बाद भी भुगतान नहीं हो रहा है. जिसके चलते वे परेशान हैं. सरपंचों का कहना है कि मटेरियल खरीदने के लिए उन्हें अपने पास से खुद पैसे देने पड़ते हैं या फिर उधारी से लाना पड़ता है.

अधिकारियों का अपना अलग तर्क

जनपद सीईओ भी पूरे मामले से अनजान नहीं हैं. पर मामले में उनके हाथ खाली हैं. उनका कहना है कि सारी स्थिति की जानकारी शासन-प्रशासन तक पहुंचा दी गई है. हमने एफडीओ भी कर दिया है. जैसे ही पैसा आएगा सभी के खाते में पैसा खुद ब खुद जमा हो जाएगा.

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: लॉकडाउन के शुरुआती दौर में कोरोना संक्रमण जब चरम पर था. उस दौरान छत्तीसगढ़ के हजारों, लाखों मजदूर देश के अलग-अलग हिस्से से अपने-अपने गांव पहुंचे. इस दौरान उन्हें यहीं मनरेगा में काम उपलब्ध कराया गया. ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे. छत्तीसगढ़ में मनरेगा मजदूरों के लिए लाइफलाइन बन गई. मनरेगा से गरीब तबके के मजदूरों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध हो सका. लेकिन अब मजदूरों को परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है.

मनरेगा मजदूर को दो महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं

मजदूरी न मिलने से मजदूरों का हाल बेहाल

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में जिले में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का हाल बेहाल है. नवगठित जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के मनरेगा मजदूरों को पिछले 2 माह से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है. मजदूरी न मिलने से मजदूर परेशान हैं. जिसके चलते वे नमक-चावल खाने को मजबूर हैं. मनरेगा फंड में राशि नहीं रहने के कारण मजदूरों काे मजदूरी का भुगतान नहीं हाे पा रहा है. जिस कारण मजदूरों काे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मजदूरों को जीवन यापन करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. मजदूरों ने कहा कि राशन दुकान में भी काफी उधार हो गया है, ऐसे में राशन दुकानदार भी उधार देने से कतराते हैं.

7 दिन में मजदूरी भुगतान करने का नियम

जिले में मनरेगा मजदूरों का 7 करोड़ से ज्यादा मजदूरी बकाया है. पूरे छत्तीसगढ़ की बात करें तो अरबों रुपए की राशि मजदूरों को दी जानी है. वैसे तो मनरेगा कानून में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि 7 दिनों के भीतर मजदूरों का भुगतान किया जाएगा. यदि किसी परिस्थिति में भुगतान नहीं किया जाता है तो 15 दिवस के अंदर भुगतान करना ही होगा. नहीं तो प्रति मजदूर 1500 से 3000 तक मुआवजा देना होगा, लेकिन यहां मुआवजा तो छोड़िए मजदूरी ही नहीं मिली है. होली का त्यौहार सिर पर है और मजदूर अपनी दिहाड़ी के लिए मोहताज हैं.

मनरेगा कर्मियों का भूपेश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

मनरेगा में कई कार्य संचालित

छत्तीसगढ़ के सभी 28 जिलों में मनरेगा का काम चल रहा है. जिसमें भूमि समतलीकरण, तालाब गहरीकरण जैसे कई रोजगार मूलक काम हैं. लेकिन मजदूरों का भुगतान पिछले दो माह से नहीं हुआ है. मजदूरी ना मिलने से मजदूरों का हाल बेहाल हो चुका है. मजदूरों का कहना है कि काम करते-करते 2 माह हो गए. अब तक खाते में मजदूरी नहीं आई. जिससे उन्हें घर चलाना मुश्किल हो रहा है.

  • छत्तीसगढ़ में 11 हजार 665 ग्राम पंचायतें
  • 10,747 पंचायतों में मनरेगा योजना संचालित
  • 18 लाख 16 हजार 958 मजदूर मनरेगा में कार्यरत
  • इन ग्राम पंचायतों में 44,347 मस्टर रोल जारी

मनरेगा में 60/40 के रेशियों से कार्य

दरअसल, मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों पर 60 प्रतिशत श्रम और 40 प्रतिशत सामग्री के रेशियों से कार्य होता है. यानी 60 फीसदी मजदूरी और 40 फीसदी सामग्री. सामग्री में सीमेंट, सरिया, रेत, गिट्टी जैसे मिटेरियल शामिल है.

जशपुर: मनरेगा में फर्जी मस्टर रोल के जरिए फर्जीवाड़ा, ग्रामीणों ने की शिकायत

मटेरियल की खरीदी भी शामिल

शुरुआत में इन मटेरियल की खरीदी एजेंसियों को ही करना होता है. बाद में इसका भुगतान सीधे वेंडर के खाते में एफटीओ के माध्यम से कर दिया जाता है. पेंड्रा जिले की बात करें तो यहां मजदूरी और मटेरियल का 7 करोड़ 46 लाख से ज्यादा बकाया है

भुगतान ना होने से सरपंच परेशान

भुगतान ना होने से सरपंच काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि मनरेगा कार्य को लेकर अधिकारी दबाव बनाते हैं. उनका कहना है कि पहले काम कराओ, मटेरियल खरीदो. भुगतान बाद में कर दिया जाएगा. लेकिन महीनों गुजरने के बाद भी भुगतान नहीं हो रहा है. जिसके चलते वे परेशान हैं. सरपंचों का कहना है कि मटेरियल खरीदने के लिए उन्हें अपने पास से खुद पैसे देने पड़ते हैं या फिर उधारी से लाना पड़ता है.

अधिकारियों का अपना अलग तर्क

जनपद सीईओ भी पूरे मामले से अनजान नहीं हैं. पर मामले में उनके हाथ खाली हैं. उनका कहना है कि सारी स्थिति की जानकारी शासन-प्रशासन तक पहुंचा दी गई है. हमने एफडीओ भी कर दिया है. जैसे ही पैसा आएगा सभी के खाते में पैसा खुद ब खुद जमा हो जाएगा.

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