बिलासपुर : सरकारी अस्पतालों में अक्सर देखा जाता है कि दवाइयां बिना बांटे ही खराब हो जाती है. इसका एक बड़ा कारण दवा खरीदी प्रक्रिया भी है. सीजीएमएससी की दवाई खरीदी की प्रक्रिया इतनी धीरे होती है कि जिस समय अस्पतालों में दवाई पहुंचना चाहिए वो नहीं पहुंचती. 8 से 10 महीना लेट दवाइयां पहुंचती है. जिसके कारण ज्यादातर दवाइयां बांटी नहीं जा सकती और खराब हो जाती है. इनमें मौसमी बीमारी, उल्टी दस्त और बुखार की दवाई शामिल हैं.
लाखों की दवाइयां होती है खराब : सरकारी अस्पतालों में मुफ्त देने वाली दवाओं को नहीं वितरण करने की वजह से लाखों रुपए की दवाएं हर साल खराब होती है. सिम्स मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और मुख्यमंत्री शहरी स्वास्थ्य स्लम योजना के तहत मिलने वाली मुफ्त लाखों रुपए की दवाई खराब हो रही है. इन दवाइयों में उल्टी, दस्त और बुखार और मौसमी बीमारियों के अलावा बच्चों को दिए जाने वाली दवाई एक्सपायरी की डेट तक पहुंच गई है. कुछ के तो कार्टून तक नहीं खोल पाते और एक्सपायर हो जाते हैं.
क्यों नहीं लिखते दवा : मेडिकल स्टोर से मिलने वाले कमीशन और दवाई एजेंसियों के दिए जाने वाले आकर्षक उपहार और कमीशन की लालच में भी सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मुफ्त दवा के नाम नहीं लिखते. मुफ्त में मिलने वाली दवाइयां के नाम लिखने की बजाए उनकी जगह महंगी और मेडिकल स्टोर में मिलने वाली दवाइयों की पर्ची बनाकर मरीजों को दिया जाता है. ऐसे में शासन की योजना का लाभ गरीबों को तो नहीं मिलता है, उल्टे लाखों रुपए का चूना शासन को लग रहा है.
सीजीएमएससी की खरीदी प्रक्रिया से भी होती है दवाइयां एक्सपायर : राज्य सरकार से मिलने वाली मुक्त दवाओं के एक्सपायर होने के मामले में छानबीन करने पर ये पता चला है कि सिर्फ मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और मुख्यमंत्री शहरी स्वास्थ्य स्लम योजना के तहत मिलने वाली दवाइयों की खरीदी सीजीएमएससी करती है. इस प्रक्रिया में सीजीएमएससी कंपनियों से दवाइयां खरीद कर सरकारी अस्पतालों में भिजवा देती है.सरकारी अस्पताल में मुफ्त इन्हें वितरित किया जाता है, लेकिन इस मामले में चौंकाने वाली यह बात सामने आई है कि जिस समय अस्पतालों में दवाइयों की आवश्यकता होती है.उस समय अस्पताल दवाइयों की डिमांड सीजीएमएससी से करता है.
लेकिन सीजीएमएससी की खरीदी प्रक्रिया इतने धीरे होती है. खरीदी करते, टेंडर निकालते और इसकी सप्लाई कर अस्पताल तक पहुंचाने में यह प्रक्रिया लगभग 8 से 10 महीना तक चला जाता है. जिससे दवाइयों का अस्पतालों तक पहुंचते-पहुंचते एक्सपायरी की डेट करीब आ जाती है. कई बार मौसमी बीमारियों की दवाइयां मौसम निकल जाने के बाद अस्पताल तक पहुंचती है. यही वजह है कि यह दवाइयां एक्सपायरी डेट तक पहुंचती है और खराब हो जाती हैं. कई बार अस्पताल प्रबंधन इन्हें वापस भी कर देता है. लेकिन बहुत ही कम ऐसा हो पाता है कि दवाइयां वापस होती हैं. ज्यादातर दवाइयां खराब होती है.
शॉर्ट टर्म एक्सपायर मेडिसिन की सप्लाई बड़ा कारण : दवाइयों के एक्सपायर होने और खराब होने के मामले में सिम्स मेडिकल कॉलेज की एमएस से जानकारी लेने पर यह पता चलता है कि कई बार उनके पास दवाइयों शॉर्ट एक्सपायरी वाले लॉट आते हैं. जो 6 महीना या 8 महीना में ही एक्सपायर हो जाते हैं. उन्हें सीजीएमएससी को वापस कर दिया जाता है. लेकिन इस मामले में जानकारी के अनुसार कई अस्पताल ऐसे है जहां दवाइयों की आवश्यकता होने की वजह से उसे वापस नहीं किया जाता और थोड़े समय में ही एक्सपायर हो जाते हैं.
सिम्स मेडिकल कॉलेज के एमएस डॉ नीरज शिंदे ने अपना बचाव करते हुए कहा कि ''उनके पास जो शार्ट एक्सपायरी की दवाइयां आती है. उन्हें वह वापस कर देते हैं. उन्होंने कहा कि जब खरीदी की जाती है तो पोर्टल में दवाइयों के एक्सपायरी डेट नहीं होती. दवाइयां आने के बाद ही उसके एक्सपायरी डेट पता चल पाती है. इससे भी कई बार दिक्कत होती है और कई कंपनियां दवाइयां वापस नहीं लेती.इसकी वजह से भी दवाइयां खराब होती है.''
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लाखों की दवाइयां होती हैं खराब : दवाईयां खराब होने के मामले में आकड़ो की अगर बात करें तो 12 से 15 लाख रुपए की दवाइयां जिले में एक्सपायर हो चुकी है.लेकिन इस मामले में जिम्मेदारी अधिकारी अपना बचाव करते हैं .वे दूसरे अस्पतालों और दूसरे की जिम्मेदारी बताते हुए अपने यहा दवाइयां खराब नहीं होने की बात कहते हैं. आंकड़ों की बात करें तो हर साल स्थिति यही होती है और जिले में लाखों रुपए की दवाइयां खराब होती है, जिस पर शासन का ध्यान नहीं जाता और सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है.