बिलासपुर: बस्तर जिले की झीरम घाटी में 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के इतिहास में नक्सलियों ने एक बड़े सामूहिक नरसंहार को अंजाम दिया. देश के दूसरे सबसे बड़े नक्सली हमले की उस खौफनाक वारदात को आज 8 साल बीत गए हैं, लेकिन उसके जख्म आज भी एकदम ताजा हैं. इससे पहले सबसे बड़ा हमला नक्सलियों ने ताड़मेटला में किया था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद 25 मई 2013 का वो काला दिन आया, जो था तो अन्य सामान्य दिनों की ही तरह.. लेकिन शाम होते-होते जब टीवी पर खबरें आनी शुरू हुईं, तो लोगों के दिल दहल गए, कलेजा मुंह को आ गया. छत्तीसगढ़ ने अपने बड़े कांग्रेसी नेताओं के साथ-साथ 32 सपूतों को खो दिया था.
कांग्रेस के दिग्गजों की नक्सलियों ने की थी हत्या
झीरम घाटी हमले में नक्सलियों ने कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित कई बड़े नेताओं को मौत के घाट उतार दिया था.
नक्सली हिंसा से वैसे तो कई राज्य जूझ रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में तीन दशकों से पसरे लाल आतंक का अब तक कोई अंत नहीं हो पाया है. लाल आतंक की हिंसा में राजनीतिक दलों से लेकर सुरक्षा जवान हर दिन मौत की नींद सोते जा रहे हैं. 'लाल आतंक' की ऐसी हिंसा जिसने छत्तीसगढ़ ही नहीं देश को हिलाकर रख दिया था, वो घटना है झीरम घाटी की, जहां 25 मई 2013 के दिन नक्सलियों ने ऐसा खूनी खेल खेला था, जिसमें छत्तीसगढ़ की धरती खून से लाल हो गई थी. इस मामले की जांच आज भी चल रही है और NIA की जांच को लेकर कांग्रेस और बीजेपी बस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का खेल खेल रहे हैं.
कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर हुआ था हमला
25 मई 2013 को दिग्गज कांग्रेस नेता परिवर्तन यात्रा के काफिले को लेकर सुकमा से लौट रहे थे. नक्सली घात लगाकर बैठे थे. जैसे ही कांग्रेस का काफिला दरभा के झीरम घाटी में पहुंचा, उसी दौरान नक्सलियों ने नरसंहार को अंजाम दिया. इस घटना के दौरान कुछ लोग नक्सलियों की गोली लगने से भी घायल हुए थे. जो लोग बच गए, वे आज भी उस भयावह घटना को याद कर सिहर उठते हैं. नक्सलियों की गोली से घायल हुए कांग्रेसी नेता विवेक बाजपेयी ने उस दिन के खौफनाक मंजर को ईटीवी भारत के साथ साझा किया...
प्रत्यक्षदर्शी विवेक बाजपेयी की जुबानी उस दिन की दास्तान
इस हमले से बच पाना नामुमकिन सा था, लेकिन जो लोग इस घटना से बचकर वापस आए हैं, वे उसकी सबसे बड़ी वजह 'झीरम रथ' को मानते हैं, जिसने उन लोगों की जान बचाई. विवेक बाजपेयी ने झीरम रथ को आज भी अपने पास सहेजकर रखा है. विवेक ने अपनी आंखों के सामने इस हमले को होते हुए देखा.
सवाल- झीरम नक्सली हमले की जांच को लेकर क्या कहेंगे?
जवाब- सरकार को परिवर्तित हुए ढाई साल हो गए. कांग्रेस के आने से अपेक्षा बढ़ी. पुरानी सरकार तो खुद इस घटना में संलिप्त थी. उस सरकार से हमें कोई अपेक्षा नहीं थी. भूपेश सरकार ने जब जांच के लिए एसआईटी बनाई थी, तो NIA ने ऑब्जेक्शन लिया कि अभी हमारी जांच जारी है. जबकि इसी NIA ने पहले कहा था कि जांच पूरी हो गई है. हर आदमी जानना चाहता है कि आखिर इस घटना के पीछे किसका हाथ है. हमारी लड़ाई हर जगह चल रही है. लेकिन सिस्टम में ऐसा लग नहीं रहा है कि जल्दी कुछ होने वाला है. सरकार के पास एक ऑप्शन जरूर है एसआईटी बनाने का, जो उन नक्सलियों को गिरफ्तार करे, जिनका नाम NIA की चार्जशीट में है. जो अन्य अपराधों में भी लिप्त रहे हैं.
सवाल- झीरम रथ भी है आपके पास. उसे देखकर लोगों को उस घटना की याद आ जाती है. उसके बारे में बताएं?
जवाब- विवेक बाजपेयी ने उस घटना के साथ-साथ झीरम रथ के बारे में भी बताया और कहा कि वो रथ एक ऑर्डिनरी इनोवा गाड़ी है. उन्होंने वो गाड़ी दिखाई और कहा कि इसी ने झीरम हमले में हमारे कुछ साथियों को जीवित रखा है. उन्होंने कहा कि इस गाड़ी ने ना सिर्फ मुझे बल्कि हमारे कुछ साथी और फूलो देवी नेताम, डॉक्टर शिव को भी बचाया है. चारों तरफ से हो रहे नक्सली हमले के दौरान कुछ देर तक महेंद्र कर्मा जी भी इस गाड़ी की आड़ में अपनी जान बचाकर छिपे हुए थे और कुछ समय तक जीवित भी इसी गाड़ी की वजह से थे.
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जिस गाड़ी ने जान बचाई, उसका नाम रखा 'झीरम रथ'
नक्सलियों के द्वारा जब महेंद्र कर्मा को सरेंडर करने के लिए कहा गया, तब वे इस गाड़ी से बाहर आए. कार से बाहर आते ही नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी. विवेक बाजपेयी का कहना है कि इस गाड़ी का उपयोग बहुत कम होता है. ज्यादातर यह गाड़ी खड़ी रहती है. यह गाड़ी एक स्मृति रूप में है, जो मुझे उस घटना की याद दिलाती है. जब भी यह गाड़ी नजर के सामने दिखती है, तो इसे देखकर लगता है कि जीवन का कुछ काम अधूरा सा है और उसे पूरा करना जरूरी है. यह कार हमेशा मुझे याद दिलाती है कि आप की लड़ाई अभी बाकी है.
'झीरम रथ में 17 गोलियों के निशान'
विवेक बाजपेयी ने कहा कि मेरे लिए यह संपत्ति की तरह है, जिसे मुझे संभालकर रखना है चाहे गाड़ी चले या ना चले. इस झीरम रथ में 17 गोलियों के निशान हैं, जिससे इसमें बड़े-बड़े छेद हो गए हैं. इसके निशान साफ गाड़ियों में देखे जा सकते हैं. वैसे तो उस हमले में सैकड़ों गोलियां लगी थीं, कुछ गाड़ियों के शीशे को तो कुछ गाड़ी के टायर को लगी थी, जिससे गाड़ी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी. उन्होंने कहा कि इसे मैंने बनवाया है, ताकि इसे संभालकर रख सकूं. विवेक ने कहा कि झीरम हमले के दौरान गाड़ियों में लगी गोलियों के हर निशान से मुझे याद आता है कि यह गोली मेरे ड्राइवर को लगी थी और यह गोली मेरे लिए चली थी, जो मुझे लग सकती थी. वे सब गोलियां गाड़ी ने अपने ऊपर ले ली थी, हम तक गोलियों को पहुंचने नहीं दिया था, जिसकी वजह से हम आज जीवित हैं. इस गाड़ी का ऋण मुझ पर है. ये गाड़ी मेरे लिए जीवित वस्तु तो नहीं है, पर इससे मेरा बहुत लगाव है जिसके साथ मुझे रहना है.
सवाल- 8 साल पहले की घटना को बताएं.
जवाब- प्रत्यक्षतः ये नक्सली हमले की घटना थी, लेकिन इस 8 साल के दौरान सरकार ने जो भी पक्ष न्यायिक आयोग के सामने भी रखा, उससे पता चला कि ये सिर्फ नक्सली हमला नहीं था, बल्कि एक एंबुश था. देश में पहली बार किसी पॉलिटिकल पार्टी को इस तरह से टार्गेट किया गया था. अगर इसमें न्याय नहीं मिला, तो ये लोकतंत्र के लिए एक खतरे वाली बात होगी. ये हमारे लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए भी खतरे वाली बात है.
सवाल- हमले को लेकर कुछ बताएं.
जवाब- 25 मई 2013 को शाम 4 साढ़े 4 बजे हम एंबुश में घिरे थे. तब तक परिवर्तन यात्रा के तहत हम करीब 7 हजार किलोमीटर गाड़ियों में चल चुके थे. इस घटना के बाद पता चला कि वो कौन सी सड़क थी. कौन सी घाटी थी. वहां से बहुत खराब यादें जुड़ गई हैं. उस दिन निहत्थों को मारा गया, पानी की तरह गोलियां बरसाई गईं. कुछ खुशकिस्मत थे, जो बच गए, लेकिन ट्रॉमा में वे आज भी हैं.
भले ही सरकार और न्यायपालिका न्याय नहीं दिलवा पाए, अपराधियों को सजा नहीं दिलवा पाए, लेकिन ईश्वर के घर पर न्याय जरूर मिलता है. इस घटना में कई ऐसे लोग थे, जिनकी मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया. कुछ लोगों के लिए ये गिनती हो सकती है, लेकिन जिसका गया उसके परिवार से पूछो. उनकी तो पूरी दुनिया खत्म हो गई.
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आज तक झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच जारी
झीरम में हुए नक्सली हमले के पीछे साजिश की बातें भी बड़े जोर-शोर हुईं. आज इस घटना को घटे 8 साल बीत गए हैं, लेकिन अब तक उस घटना से जुड़े बड़े नक्सली लीडरों की न तो गिरफ्तारी हो सकी है और न ही जांच एजेसियों की कोई रिपेार्ट सामने आई है. 25 मई 2013 को हुए घटनाक्रम को लेकर कुछ समय तक देश में काफी उथल पुथल मची. राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार ने जहां इस मामले के लिए न्यायिक जांच आयोग का गठन किया, तो वहीं तत्कालीन केंद्र में रही यूपीए सरकार ने इस घटनाक्रम की जांच एनआईए को सौंपी थी. NIA की जांच अब भी जारी है. कई चश्मदीदों ने खुलकर कहा कि झीरम कांड पूरी तरह से राजनीतिक साजिश थी. इसके बावजूद अब तक सिर्फ जांच ही चल रही हैं, जबकि प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार है.
झीरमघाटी सिर्फ एक नक्सली वारदात या राजनीतिक साजिश ?
झीरम कांड की घटना से लेकर आज तक ये सवाल आम लोग भी उठाते रहे हैं कि इतने बड़े हत्याकांड के पीछे वाकई नक्सली थे या फिर कुछ और साजिश थी. इन सबके बीच राजनीतिक बयानबाजी का दौर भी शुरू हुआ, लेकिन कुछ सामने नहीं आया. इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राज्य सरकार ने सीबीआई जांच कराने की घोषणा भी की थी, लेकिन केन्द्र तक पहुंचते ही इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. कांग्रेस दावा कर रही है कि ये पूरा घटनाक्रम एक राजनीतिक साजिश थी. घटना के 8 साल बीत जाने के बाद भी अब तक कांग्रेस को न्याय नहीं मिल पाया है. ऐसे में कुछ की उम्मीदें बंधी हुई थी, तो कुछ की उम्मीदें टूट चुकी हैं. अब उन्हें नहीं लगता है कि कांग्रेस को न्याय मिल पाएगा.
वहीं प्रत्यक्षदर्शी डॉ शिवनारायण द्विवेदी का कहना है कि घटना को 8 साल होने को है. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, उसके बावजूद अब तक झीरम नक्सल हमले की जांच पूरी नहीं हो पाई है. द्विवेदी ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार को ढाई साल हो चुके हैं. सिर्फ ढाई साल ही बचे हैं. लेकिन अब तक झीरम मामले में कोई प्रगति नहीं दिख रही है. कांग्रेस सरकार में ये जांच पूरी नहीं हो पाई तो फिर कभी नहीं हो पाएगी.
झीरम का जख्म : 8 साल बाद भी अनसुलझे हैं सवाल
'झीरम हमले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और मंत्रियों का हाथ'
डॉ शिवनारायण द्विवेदी ने कहा कि विपक्ष में रहते हुए जो कांग्रेस इस नक्सली हमले को लेकर सवाल करती थी. आज सत्ता में आने के बाद लगभग ढाई साल बीत चुके हैं , अब तक इस मामले में कांग्रेस सरकार न्याय नहीं दिला सकी है. यदि अब भी कांग्रेस न्याय नहीं दिला सकी तो आने वाले समय में कब न्याय मिलेगा, क्योंकि ढाई साल निकल चुके हैं और ढाई साल कांग्रेस सरकार को शेष बचे हैं. द्विवेदी ने बताया कि सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन 8 साल पहले जिन कांग्रेसी नेताओं की हत्या हुई है, उनमें आज नंदकुमार पटेल के बेटे मंत्री हैं, योगेंद्र शर्मा की पत्नी विधायक हैं, देवती कर्मा विधायक हैं. यह सभी लोग सत्ता में हैं, लेकिन झीरम मामले को लेकर इन लोगों ने आवाज उठाना ही बंद कर दिया.
विपक्षी बीजेपी भी लगातार लगाती रही है आरोप
कुछ महीने पहले पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कांग्रेस पर झीरम नक्सली हमले को लेकर कई संगीन आरोप लगाए थे. उन्होंने ETV भारत से बातचीत में कहा कि 'झीरम घटना कांग्रेस के वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा है, जिसे उन्हें स्वीकारना चाहिए.' केदार कश्यप ने बिना नाम लिए कवासी लखमा पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि 'झीरम घटना के समय तत्कालीन विधायक जो वर्तमान में मंत्री भी हैं, वे भी मौजूद थे, उनसे भी पूछताछ की जानी चाहिए.'
कांग्रेस पेश करे साक्ष्य
केदार कश्यप ने कहा था कि 'कांग्रेस झीरम मामले को लेकर भाजपा सरकार और डॉ रमन सिंह पर आरोप लगा रही है, जो कहीं ना कहीं द्वेषपूर्ण भावना से प्रेरित है. कश्यप ने कहा कि घटना के समय केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी. उन्होंने ही इस पूरे मामले को एनआईए जांच के लिए भेजा था और आज 2 साल से राज्य में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन इस दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया.' केदार कश्यप ने झीरम नक्सली हमले में कांग्रेस के लोगों के शामिल होने का भी आरोप लगाया था.