बिलासपुर : देशभर में लगातार ट्रेन दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही है. कभी यात्री गाड़ियां बेपटरी हो रही हैं. तो कभी यात्री ट्रेनों की टक्कर हो रही है. रेलवे बोर्ड सालभर रेलवे सेफ्टी और विकास कार्य के नाम पर ट्रेनों को कैंसल करती है. लेकिन फिर भी ट्रेन हादसे और ट्रेनों का पटरियों से उतारना कम नहीं हो रहा है. पिछले एक साल में डिरेल की कई घटनाएं हो चुकी हैं.लेकिन ओडिशा के बालसोर में हुआ हादसा रेलवे पर सवाल उठाने के लिए काफी है.
ओव्हर टाइम कर रहे लोको पायलट : देश में बढ़ती कोयले की डिमांड और उसकी आपूर्ति के साथ ही रेलवे माल लदान को अधिक महत्व देने लगा है. क्योंकि रेलवे सबसे ज्यादा आय इसी से अर्जित करती हैं. इस आय के लालच में रेल मंत्रालय अपने कर्मचारियों पर अत्याचार भी कर रही है. लगातार रेलवे ट्रेनों को चलाने के लिए रेल स्टाफ सहित लोको पायलट पर दबाव बनाती है. उन्हें ड्यूटी का समय खत्म होने के बाद भी घंटों ट्रेनें चलानी पड़ती है. बिना नींद और बिना आराम के लोको पायलट 16-18 घंटा काम कर रहे हैं.
10 से 14 घंटे लगातार चला रहे ट्रेन : लोको पायलट चाहे मालगाड़ी का हो या यात्री गाड़ी का उससे 12 घंटे से भी अधिक ट्रेनें चलवाई जा रहा है. इससे इंजन ड्राइवर को आराम नहीं मिलता. यही कारण है कि नींद के झोंके में देश में लगातार ट्रेन दुर्घटनाएं हो रही हैं. इस मामले में पूर्व लोको पायलट और भारतीय रेलवे लोको एसोसिएशन के सदस्य एके सिंह ने बताया कि ''लोको पायलट को अधिकारियों का इतना प्रेशर होता है कि उन्हें मजबूरी में ड्यूटी ऑवर से ज्यादा काम करना पड़ता है. बिना नींद लिए लोको को चलाते हैं . रेल दुर्घटनाओं का यही सबसे बड़ा कारण होता है. क्योंकि रेल दुर्घटनाएं इसलिए होती है कि लोको पायलट लोको चलाते समय सो जाता है.''
लोको पायलट मुकेश कुमार ने बताया कि ''कोयला आपूर्ति को समय पर पूरा करने यात्री ट्रेनों को घंटों लेट किया जाता है. कई बार कोयले गाड़ी की वजह से कई घंटे यात्री गाड़ी लेट चलती है जिससे लोको पायलट रात भर जागकर जिम्मेदारी पूरा करता है. उसके आराम और उसके नींद की चिंता कंट्रोलर नहीं करता है.यही कारण है कि देश में लगातार ट्रेन दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं. जो लोको पायलट पूरी ईमानदारी और निष्ठा से रेल इंजन चलाता है सबसे पहले उसे ही घटना का जिम्मेदार ठहराया जाता है. जिस दिन लोको पायलट को ड्यूटी टाइम खत्म होने के बाद इंजन चलवाना बंद कर दिया जाएगा, उस दिन से ही आमने सामने टक्कर होने वाले ट्रेन दुर्घटनाएं रुक जाएंगी.''
लोको पायलट नहीं सोया, हो गया हादसा :दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर रेल मंडल के सिंहपुर में रेल दुर्घटना हुआ था. जिसमें लोको पायलट से लगातार 14 घंटा रात में लोको चलवाया गया था.उसने पूरी रात जागकर इंजन चलाया, जबकि वह बार-बार कंट्रोलर को बता रहा था कि उसे नींद आ रही है. लेकिन उसकी बात नही सुनी गई.सुबह के समय उसे नींद आ गई.नतीजा आप सभी के सामने है. हाल ही में हुए दक्षिण पूर्व रेलवे के खड़कपुर रेल मंडल में हुए रेल दुर्घटना में सैकड़ों लोगों की जान जाना और देश की संपत्ति के करोड़ों रुपए के नुकसान होने का भी यही हो सकता है, क्योंकि लोको पायलट को 16-18 घंटा लोको चलाने के लिए अधिकारी मजबूर करते हैं. उनके पास ड्यूटी करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं होता. लोको पायलट को अपने परिवार के लिए नौकरी करना भी मजबूरी होता है.