ETV Bharat / state

जब तक जातिसूचक अपशब्द या अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो, मामला एट्रोसिटी का नहीं : हाई कोर्ट

एट्रोसिटी के मामले में हाइकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पक्षकारों को राहत दी है. हाइकोर्ट ने कहा कि जब तक जातिसूचक अपशब्द या अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो मामला एट्रोसिटी का नहीं हो सकता.

Bilaspur High Court
बिलासपुर हाइकोर्ट
author img

By

Published : Aug 31, 2021, 10:58 PM IST

बिलासपुर : एट्रोसिटी के मामले में हाइकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पक्षकारो को राहत दी है. हाइकोर्ट ने कहा कि जब तक जातिसूचक अपशब्द या अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो मामला एट्रोसिटी का नहीं हो सकता. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का आरोप सिर्फ इस आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस जाति से संबंधित है. जब तक देहाती नालिसी या FIR में विवाद के दौरान जातिसूचक गाली व अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो, तब एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं जोड़कर प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता. यह आदेश छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में जारी किया है.

एप्रुवल फॉर ऑर्डर माना गया फैसला

इस फैसले को एप्रुवल फॉर ऑर्डर माना गया है. हाईकोर्ट का यह अहम फैसला एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरणों में नजीर के रूप में काम आएगा. दरअसल पूरा मामला राजनांगांव जिले के डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम रूद्रगांव का है. यहां रहने वाले मालिकराम गोंड की निजी जमीन है, जिसे उन्होंने सामुदायिक भवन बनाने के लिए दान में दे दी है. इस जमीन के कब्जा व मालिकाना हक को लेकर मोहल्ले के ही गौतरबाई गोंड व परिवार के सदस्यों से आपसी विवाद चल रहा था. इसे लेकर गांव में बैठक भी हुई थी.

हत्या की धमकी देते मारपीट व बलवा का कराया था मामला दर्ज

इस बैठक में गौतरबाई व परिवार से कोई नहीं पहुंचा. इस बीच 9 अक्टूबर 2020 को मालिकराम गोंड अपनी जमीन पर सामुदायिक भवन बनवाने के लिए मजदूरों को लेकर गए थे. इस दौरान उनके बीच विवाद हो गया. तब गांव के ही हुकुमचंद साहू सहित सात अन्य ने बीच-बचाव कर विवाद को शांत कराया. इस दौरान गौतरबाई व परिवार के सदस्यों ने बीच-बचाव करने वालों के साथ ही मारपीट कर दी. फिर दोनों पक्षों में बवाल हो गया. इस पर गौतरबाई गोंड ने हुकुमचंद सहित सात अन्य के खिलाफ जान से मारने की धमकी देते हुए मारपीट व बलवा का मामला दर्ज कराया था. पुलिस ने भी प्राथमिकी रिपोर्ट में धारा 147, 294, 323, 506 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया. फिर गौतरबाई व परिवार के सदस्यों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस मामले में एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3(1-द, ध) के तहत कार्रवाई करते हुए कोर्ट में चालान पेश कर दिया.

हाई कोर्ट में दायर हुई थी पुनरीक्षण याचिका

राजनांदगांव के विशेष कोर्ट एट्रोसिटी सहित बलवा व मारपीट के मामले में आरोप तय कर दिया. इस पर हुकुमचंद व अन्य ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी थी. इसमें आपराधिक प्रकरण के साथ एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को भी चुनौती दी गई. हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र हाई कोर्ट के आदेश के साथ ही उत्तराखंड के हितेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया गया है. इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि एट्रोसिटी एक्ट का अपराध सिर्फ आधार पर तय नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस वर्ग से आता है. जब तक जातिसूचक गाली देने व अपमानित करने का मामला सामने नहीं आता.

जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में हुई सुनवाई

हाई कोर्ट के जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. उन्होंने भी माना है कि यह जमीन के टुकड़े व उसके मालिकाना हक को लेकर विवाद है. आदिवासी वर्ग के दो पक्षों में विवाद के दौरान हस्तक्षेप किया गया है. ऐसे में आरोपित पक्ष पर प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करने के बाद एट्रोसिटी एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज करना गलत है. कोर्ट ने पुनरीक्षण को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आरोपित पक्ष को एट्रोसिटी के आरोप से मुक्त करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने मारपीट, बलवा सहित अन्य मामलों में आरोप तय करने का आदेश दिया है.

बिलासपुर : एट्रोसिटी के मामले में हाइकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पक्षकारो को राहत दी है. हाइकोर्ट ने कहा कि जब तक जातिसूचक अपशब्द या अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो मामला एट्रोसिटी का नहीं हो सकता. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का आरोप सिर्फ इस आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस जाति से संबंधित है. जब तक देहाती नालिसी या FIR में विवाद के दौरान जातिसूचक गाली व अपमानित करने की विशिष्ट जानकारी न हो, तब एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं जोड़कर प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता. यह आदेश छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में जारी किया है.

एप्रुवल फॉर ऑर्डर माना गया फैसला

इस फैसले को एप्रुवल फॉर ऑर्डर माना गया है. हाईकोर्ट का यह अहम फैसला एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरणों में नजीर के रूप में काम आएगा. दरअसल पूरा मामला राजनांगांव जिले के डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम रूद्रगांव का है. यहां रहने वाले मालिकराम गोंड की निजी जमीन है, जिसे उन्होंने सामुदायिक भवन बनाने के लिए दान में दे दी है. इस जमीन के कब्जा व मालिकाना हक को लेकर मोहल्ले के ही गौतरबाई गोंड व परिवार के सदस्यों से आपसी विवाद चल रहा था. इसे लेकर गांव में बैठक भी हुई थी.

हत्या की धमकी देते मारपीट व बलवा का कराया था मामला दर्ज

इस बैठक में गौतरबाई व परिवार से कोई नहीं पहुंचा. इस बीच 9 अक्टूबर 2020 को मालिकराम गोंड अपनी जमीन पर सामुदायिक भवन बनवाने के लिए मजदूरों को लेकर गए थे. इस दौरान उनके बीच विवाद हो गया. तब गांव के ही हुकुमचंद साहू सहित सात अन्य ने बीच-बचाव कर विवाद को शांत कराया. इस दौरान गौतरबाई व परिवार के सदस्यों ने बीच-बचाव करने वालों के साथ ही मारपीट कर दी. फिर दोनों पक्षों में बवाल हो गया. इस पर गौतरबाई गोंड ने हुकुमचंद सहित सात अन्य के खिलाफ जान से मारने की धमकी देते हुए मारपीट व बलवा का मामला दर्ज कराया था. पुलिस ने भी प्राथमिकी रिपोर्ट में धारा 147, 294, 323, 506 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया. फिर गौतरबाई व परिवार के सदस्यों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस मामले में एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3(1-द, ध) के तहत कार्रवाई करते हुए कोर्ट में चालान पेश कर दिया.

हाई कोर्ट में दायर हुई थी पुनरीक्षण याचिका

राजनांदगांव के विशेष कोर्ट एट्रोसिटी सहित बलवा व मारपीट के मामले में आरोप तय कर दिया. इस पर हुकुमचंद व अन्य ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी थी. इसमें आपराधिक प्रकरण के साथ एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को भी चुनौती दी गई. हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र हाई कोर्ट के आदेश के साथ ही उत्तराखंड के हितेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया गया है. इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि एट्रोसिटी एक्ट का अपराध सिर्फ आधार पर तय नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस वर्ग से आता है. जब तक जातिसूचक गाली देने व अपमानित करने का मामला सामने नहीं आता.

जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में हुई सुनवाई

हाई कोर्ट के जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. उन्होंने भी माना है कि यह जमीन के टुकड़े व उसके मालिकाना हक को लेकर विवाद है. आदिवासी वर्ग के दो पक्षों में विवाद के दौरान हस्तक्षेप किया गया है. ऐसे में आरोपित पक्ष पर प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करने के बाद एट्रोसिटी एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज करना गलत है. कोर्ट ने पुनरीक्षण को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आरोपित पक्ष को एट्रोसिटी के आरोप से मुक्त करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने मारपीट, बलवा सहित अन्य मामलों में आरोप तय करने का आदेश दिया है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.