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SPECIAL: कृषि उपकरणों के प्रति आस्था और लोकउत्सव का पर्व है 'हरेली'

छत्तीसगढ़ में हरेली की धूम मची हुई है और बिलासपुर में भी हरेली लोकपर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. हमने जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों का जायजा लिया तो ग्रामीण सुबह से ही हरेली में मदमस्त नजर आए. युवाओं और बच्चों की टोली नारियल फेंकने की बाजी लगाते नजर आए. घर-घर किसान कृषि उपकरणों की विधिवत पूजा करते नजर आए.

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कृषि उपकरणों के प्रति आस्था और लोकउत्सव का पर्व है 'हरेली'
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Published : Jul 20, 2020, 7:57 AM IST

Updated : Jul 20, 2020, 12:34 PM IST

बिलासपुर: एक किसान का उसके औजारों या उपकरणों से चोली-दामन का रिश्ता होता है. दोनों का अस्तित्व परस्पर एक-दूसरे से है. बिना औजारों के एक किसान अपने कृषि कार्य को अच्छी तरह नहीं कर सकता. किसान अपने उपकरणों को भगवान मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं. किसानों और कृषि कार्यों के बीच जो सबसे सशक्त माध्यम है, वो है कृषि उपकरण है और इन्हीं उपकरणों के प्रति सहज आस्था और उल्लास का लोकपर्व है हरेली.

छत्तीसगढ़ में हरेली की धूम मची हुई है और बिलासपुर में भी इस लोकपर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. हमने जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों का जायजा लिया, तो ग्रामीण सुबह से ही हरेली में मदमस्त नजर आए. युवाओं और बच्चों की टोली नारियल फेंकने की बाजी लगाते नजर आए. घर-घर किसान कृषि उपकरणों की विधिवत पूजा करते नजर आए.

आज हरेली का त्योहार

हरेली के अवसर पर घर-घर गुड़ का चीला बनाने का रिवाज

हरेली को छत्तीसगढ़ के प्रथम पर्व के रूप में भी जाना जाता है. आज के दिन किसान नागर, गैंती, कुदाल, फावड़ा समेत अन्य उपकरणों को कृषि कार्यों से शांत रखते हैं. फिर इसकी साफ-सफाई कर एक निश्चित स्थान पर रखकर उपकरणों या औजारों की पूजा करते हैं. इस अवसर पर घर-घर गुड़ का चीला बनाने का भी चलन है. आज के दिन किसान अपने कुलदेवता की पूजा भी करते हैं.

गेड़ी पर सवार होना लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र

आज के दिन तमाम पशुओं को नमक और आटे के मिश्रण को भी खिलाया जाता है. आज के दिन यादव समाज के लोगों को स्वेच्छा से अन्न दान भी किया जाता है. परंपरा के मुताबिक, आज नारियल फेंक प्रतियोगिता के माध्यम से युवा गली-गली में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं. यह सिलसिला दिनभर चलता है. इसके अलावा युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का आनंद भी आज भरपूर लेते हैं. 20-25 फीट ऊंचे गेड़ी पर सवार होना लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन से ही जानकारों से तंत्र विद्या भी सीखी जाती है.

आधुनिकता की चकाचौंध ने परंपरा को छोड़ा पीछे

हरेली के दिन लुहारों की पूछपरख भी बढ़ जाती है. परंपरा के मुताबिक हर घर में लुहार दरवाजे पर नीम का पत्ती लगाते हैं और मुख्य दरवाजे में कील ठोंककर घर के सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं. आज ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वर्षों पहले जिस उत्साह के साथ हरेली मनाई जाती थी, आज उस उत्साह में जरूर कमी आई है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र से लगातार हो रहे पलायन और आधुनिकता की चकाचौंध ने पारम्परिक लोकपर्व हरेली पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है.

बिलासपुर: एक किसान का उसके औजारों या उपकरणों से चोली-दामन का रिश्ता होता है. दोनों का अस्तित्व परस्पर एक-दूसरे से है. बिना औजारों के एक किसान अपने कृषि कार्य को अच्छी तरह नहीं कर सकता. किसान अपने उपकरणों को भगवान मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं. किसानों और कृषि कार्यों के बीच जो सबसे सशक्त माध्यम है, वो है कृषि उपकरण है और इन्हीं उपकरणों के प्रति सहज आस्था और उल्लास का लोकपर्व है हरेली.

छत्तीसगढ़ में हरेली की धूम मची हुई है और बिलासपुर में भी इस लोकपर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. हमने जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों का जायजा लिया, तो ग्रामीण सुबह से ही हरेली में मदमस्त नजर आए. युवाओं और बच्चों की टोली नारियल फेंकने की बाजी लगाते नजर आए. घर-घर किसान कृषि उपकरणों की विधिवत पूजा करते नजर आए.

आज हरेली का त्योहार

हरेली के अवसर पर घर-घर गुड़ का चीला बनाने का रिवाज

हरेली को छत्तीसगढ़ के प्रथम पर्व के रूप में भी जाना जाता है. आज के दिन किसान नागर, गैंती, कुदाल, फावड़ा समेत अन्य उपकरणों को कृषि कार्यों से शांत रखते हैं. फिर इसकी साफ-सफाई कर एक निश्चित स्थान पर रखकर उपकरणों या औजारों की पूजा करते हैं. इस अवसर पर घर-घर गुड़ का चीला बनाने का भी चलन है. आज के दिन किसान अपने कुलदेवता की पूजा भी करते हैं.

गेड़ी पर सवार होना लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र

आज के दिन तमाम पशुओं को नमक और आटे के मिश्रण को भी खिलाया जाता है. आज के दिन यादव समाज के लोगों को स्वेच्छा से अन्न दान भी किया जाता है. परंपरा के मुताबिक, आज नारियल फेंक प्रतियोगिता के माध्यम से युवा गली-गली में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं. यह सिलसिला दिनभर चलता है. इसके अलावा युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का आनंद भी आज भरपूर लेते हैं. 20-25 फीट ऊंचे गेड़ी पर सवार होना लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन से ही जानकारों से तंत्र विद्या भी सीखी जाती है.

आधुनिकता की चकाचौंध ने परंपरा को छोड़ा पीछे

हरेली के दिन लुहारों की पूछपरख भी बढ़ जाती है. परंपरा के मुताबिक हर घर में लुहार दरवाजे पर नीम का पत्ती लगाते हैं और मुख्य दरवाजे में कील ठोंककर घर के सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं. आज ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वर्षों पहले जिस उत्साह के साथ हरेली मनाई जाती थी, आज उस उत्साह में जरूर कमी आई है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र से लगातार हो रहे पलायन और आधुनिकता की चकाचौंध ने पारम्परिक लोकपर्व हरेली पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है.

Last Updated : Jul 20, 2020, 12:34 PM IST
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