बिलासपुर: हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला दिया है कि कोई भी फैमिली कोर्ट द्वारा भरण-पोषण और रिकवरी मामले में एक महीने से अधिक खासकर सश्रम कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है.
बता दें कि निचली अदालत ने जशपुर जिले में मुश्ताक खान की पत्नी को 2000 रुपए और उनके बेटे को 1500 रुपए का भरण-पोषण भत्ता प्रतिमाह देने का आदेश दिया था. इस फैसले के बाद भी यह रकम मुश्ताक ने नहीं दी, जिसके बाद मुश्ताक को सिविल जेल भेज दिया गया.
जेल से निकलने के बाद भी मुश्ताक ने मेंटेनेंस का बिल भी नहीं दिया, जिससे वह बिल बढ़कर 1.37 लाख रुपए हो गया. इसके बाद उनकी पत्नी की ओर से दोबारा आवेदन लगाया गया, जिसके बाद मामला फैमिली कोर्ट जा पहुंचा. मामले में सुनवाई के दौरान मुश्ताक ने कहा कि, 'वो अपनी पत्नी को मेंटेनेंस भत्ते की राशि नहीं देंगे, जिसके बाद फैमिली कोर्ट ने उसे एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई. फैमिली कोर्ट के इस फैसले को मुश्ताक ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी, जिसपर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया है.