बिलासपुर/कोटा: धर्म नगरी रतनपुर में स्थित सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया के प्रति पूरे अंचल में अगाध श्रद्धा है. सिद्ध शक्तिपीठ में विराजी मां महामाया को अंचल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है. यही कारण है कि मां की सेवा में सभी अपने सामर्थ्य अनुसार हमेशा तत्पर रहते हैं. नवरात्र के अवसर पर भी दानदाता देवी मां को चांदी का मुकुट, कर्ण, फूल आदि भेंट करते हैं और दिवाली पर किसी श्रद्धालु ने देवी मां को करीब डेढ़ किलो वजनी चांदी का चंद्रहार अर्पित किया गया है.
हर साल नवरात्र की दशमी तिथि पर देवी का राजषि श्रृंगार किया जाता है. जिसमें इसी तरह के विविध आभूषण से देवी का श्रृंगार होता है.
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डेड़ महीने पहले भी सिद्ध शक्तिपीठ मां महामाया मंदिर के गर्भगृह में रखी दानपेटी में गुप्तदान के रूप में 5 लाख 51 हजार रुपए नगद मिले थे. इसकी जानकारी मंदिर ट्रस्ट को दानपेटी खोलने के बाद पता चली थी.
51 शक्तिपीठों में से एक मां महामाया
माना जाता है कि रतनपुर महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सती के शरीर का दाहिना स्कंध गिरा था और इस वजह से इसे शक्तिपीठ में शामिल किया गया. हर साल नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर माता के दर्शन को आते हैं. ऐसी मान्यता है कि राजा रत्नदेव ने 1050 ईस्वी में महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया था. रतनपुर को सैकड़ों वर्ष पूर्व मराठियों ने अपनी उपराजधानी के रूप में स्थापित किया था. रतनपुर को उसके विशेष स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है.