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बीजेपी के साथ JCCJ के आने से बदला मरवाही का समीकरण, किस करवट बैठेगा सियासत का ऊंट?

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Published : Nov 2, 2020, 12:44 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 4:22 PM IST

मरवाही विधानसभा में 3 नवंबर को मतदान होना है. चुनाव प्रचार बंद हो गए हैं. अब मतदाता वोट डालकर अपना प्रतिनिधि चुनने को तैयार है. इस सबके बीच अभी भी ये कहना मुश्किल है कि जनता बीजेपी और कांग्रेस में से किसी चुनती है. एक तरफ बीजेपी के समर्थन के लिए जेसीसीजे है, तो दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस. मरवाही के महासमर का पूरा समीकरण ETV भारत आपके सामने लेकर आया है.

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मरवाही का महासमर

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: उपचुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद से ही मरवाही चर्चा का विषय बना हुआ है. घोषणा होने के बाद से अब तक हर पल सियासी रंग बदलते नजर आ रहे हैं. अच्छे से अच्छे राजनीतिक विशेषज्ञ आज तक कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. 3 नवंबर को मरवाही के लिए मतदान होंगे. इसके एक दिन पहले तक ये सीट हॉट सीट बनी हुई है. ETV भारत की यह रिपोर्ट आपको हरपल बदलते मरवाही के सियासी मूड को बताएगा और जानकारों के माध्यम से हम एक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश भी करेंगे.

मरवाही का महासमर

पढ़ें- मरवाही का महासमर: प्रत्याशी घर-घर जाकर करेंगे वोट की अपील, JCCJ विधायकों के समर्थन से बदला समीकरण

मरवाही उपचुनाव के ऐलान होने के बाद से ही तमाम राजनीतिक दल इस सीट पर फतह हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. प्रदेश के पहले सीएम अजीत जोगी के निधन के बाद से यह सीट खाली है. इस सीट पर हर दल कब्जा करने की फिराक में है. पार्टियों के खींचतान के बीच मरवाही का सियासी संग्राम चरम पर पहुंच गया है. अजीत जोगी के गुजरने के बाद हर आमोखास के जुबान पर एक बात सामने आ रही थी कि जिस किले को लगातार जोगी परिवार ने फतह किया है उस किले पर एक बार फिर अजीत जोगी का सहानुभूति काम करेगा और प्रदेश की नवोदित पार्टी जेसीसीजे का मरवाही पर दबदबा बना रहेगा, इस सीट के लिए अमित जोगी या जोगी परिवार के किसी अन्य सदस्य को मैदान में देख रहे थे. जिससे अजीत जोगी के प्रति सहानुभूति पूरी तरह काम आए और दूसरी ओर सत्ताधारी कांग्रेस से इनकी सीधी लड़ाई की बात कही जा रही थी.

अमित और ऋचा के नामांकन रद्द होने के बाद बदला समीकरण

मरवाही की राजनीति पूरी तरह से तब यू टर्न लेती नजर आई जब अमित जोगी और ऋचा जोगी का नामांकन रद्द हुआ और जेसीसीजे की मरवाही सीट पर लड़ने की उम्मीद भी खत्म हो गई. कल तक जो जोगी परिवार मरवाही के लिए सबसे अनुकूल और जेसीसीजे सबसे उपयुक्त माना जा रहा था अब अचानक से हाशिये पर आ गया. फिर यह निष्कर्ष सामने आया कि हो ना हो अब सबसे बड़ी ताकत सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ही है और कांग्रेस मरवाही को आसानी से फतह कर लेगी. जानकार बताते हैं कि सहानुभूति फैक्टर तब काम करता जब जोगी परिवार का कोई सदस्य चुनावी मैदान में होता. दूसरी ओर कांग्रेस अपने विकासकार्यों को भी जनता के बीच पहुंचा रहा है. अब जब मैदान में विकल्प ही नहीं है तो सत्ता की ताकत रंग लाएगी और मरवाही को फतह करते हुए ही कांग्रेस को उसका 70वां विधायक भी मिल जाएगा.

बीजेपी की दावेदारी हुई मजबूत

एक सफल फिल्म की तरह मरवाही की सियासत फिर से बदलती नजर आई और अब सियासी सिनेमा के वो किरदार अचानक से सुर्खियों में आ गए जिनकी भूमिका को कमजोर आंका जा रहा था. अचानक से जब जेसीसीजे ने बीजेपी प्रत्याशी गंभीर सिंह को समर्थन देने का ऐलान किया तो एकबार फिर सियासी पंडितों ने अपने विश्वेषण को थोड़ा सा ट्वीस्ट किया. पिछले विधानसभा चुनाव की ही अगर बात करें तो बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर थी और कांग्रेस तीसरे नंबर पर. अब सवाल यह उठता है कि मरवाही में लगातार और पिछले चुनाव में भी पहली ताकत के रूप में उभरे जेसीसीजे के वोटर इस बार किधर शिफ्ट करेंगे, तब जब जेसीसीजे इस बार मैदान में है ही नहीं.

कांग्रेस लगातार कर रही जनसभा

अब जब खुलकर जेसीसीजे के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने न्याय की बात कहते हुए भाजपा प्रत्याशी को समर्थन करने और कांग्रेस को सबक सिखाने की बात कही है तो मामला फिर से कांग्रेस के लिए फंसता नजर आ रहा है. यही वजह है कि अब बीजेपी को भी उम्मीद दिखने लगी है और पूर्व सीएम से लेकर तमाम दिग्गज भी मरवाही में लगातार सक्रिय नजर आए. दूसरी ओर सत्ताधारी कांग्रेस की अतिसक्रियता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मरवाही में लगातार डेरा डाले दिखे. उन्होंने अपने हालिया बी टीम वाले बयान में एक नया शिगूफा छोड़ा है.

मरवाही सीट पर बीजेपी या कांग्रेस के दो प्रत्याशियों में से एक के ही सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा. अब तक के सियासी उठापटक से यह निष्कर्ष भी निकलते आ रहा है कि जेसीसीजे और जोगी परिवार के समर्थित वोटर ही डिसाइडिंग साबित होंगे. यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि चुनाव महज अलग-अलग दलों के बीच का संघर्ष नहीं है, बल्कि मरवाही के बुद्धिजीवी मतदाताओं के राजनीतिक समझ को भी उजागर करेगा.

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: उपचुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद से ही मरवाही चर्चा का विषय बना हुआ है. घोषणा होने के बाद से अब तक हर पल सियासी रंग बदलते नजर आ रहे हैं. अच्छे से अच्छे राजनीतिक विशेषज्ञ आज तक कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं. 3 नवंबर को मरवाही के लिए मतदान होंगे. इसके एक दिन पहले तक ये सीट हॉट सीट बनी हुई है. ETV भारत की यह रिपोर्ट आपको हरपल बदलते मरवाही के सियासी मूड को बताएगा और जानकारों के माध्यम से हम एक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश भी करेंगे.

मरवाही का महासमर

पढ़ें- मरवाही का महासमर: प्रत्याशी घर-घर जाकर करेंगे वोट की अपील, JCCJ विधायकों के समर्थन से बदला समीकरण

मरवाही उपचुनाव के ऐलान होने के बाद से ही तमाम राजनीतिक दल इस सीट पर फतह हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. प्रदेश के पहले सीएम अजीत जोगी के निधन के बाद से यह सीट खाली है. इस सीट पर हर दल कब्जा करने की फिराक में है. पार्टियों के खींचतान के बीच मरवाही का सियासी संग्राम चरम पर पहुंच गया है. अजीत जोगी के गुजरने के बाद हर आमोखास के जुबान पर एक बात सामने आ रही थी कि जिस किले को लगातार जोगी परिवार ने फतह किया है उस किले पर एक बार फिर अजीत जोगी का सहानुभूति काम करेगा और प्रदेश की नवोदित पार्टी जेसीसीजे का मरवाही पर दबदबा बना रहेगा, इस सीट के लिए अमित जोगी या जोगी परिवार के किसी अन्य सदस्य को मैदान में देख रहे थे. जिससे अजीत जोगी के प्रति सहानुभूति पूरी तरह काम आए और दूसरी ओर सत्ताधारी कांग्रेस से इनकी सीधी लड़ाई की बात कही जा रही थी.

अमित और ऋचा के नामांकन रद्द होने के बाद बदला समीकरण

मरवाही की राजनीति पूरी तरह से तब यू टर्न लेती नजर आई जब अमित जोगी और ऋचा जोगी का नामांकन रद्द हुआ और जेसीसीजे की मरवाही सीट पर लड़ने की उम्मीद भी खत्म हो गई. कल तक जो जोगी परिवार मरवाही के लिए सबसे अनुकूल और जेसीसीजे सबसे उपयुक्त माना जा रहा था अब अचानक से हाशिये पर आ गया. फिर यह निष्कर्ष सामने आया कि हो ना हो अब सबसे बड़ी ताकत सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ही है और कांग्रेस मरवाही को आसानी से फतह कर लेगी. जानकार बताते हैं कि सहानुभूति फैक्टर तब काम करता जब जोगी परिवार का कोई सदस्य चुनावी मैदान में होता. दूसरी ओर कांग्रेस अपने विकासकार्यों को भी जनता के बीच पहुंचा रहा है. अब जब मैदान में विकल्प ही नहीं है तो सत्ता की ताकत रंग लाएगी और मरवाही को फतह करते हुए ही कांग्रेस को उसका 70वां विधायक भी मिल जाएगा.

बीजेपी की दावेदारी हुई मजबूत

एक सफल फिल्म की तरह मरवाही की सियासत फिर से बदलती नजर आई और अब सियासी सिनेमा के वो किरदार अचानक से सुर्खियों में आ गए जिनकी भूमिका को कमजोर आंका जा रहा था. अचानक से जब जेसीसीजे ने बीजेपी प्रत्याशी गंभीर सिंह को समर्थन देने का ऐलान किया तो एकबार फिर सियासी पंडितों ने अपने विश्वेषण को थोड़ा सा ट्वीस्ट किया. पिछले विधानसभा चुनाव की ही अगर बात करें तो बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर थी और कांग्रेस तीसरे नंबर पर. अब सवाल यह उठता है कि मरवाही में लगातार और पिछले चुनाव में भी पहली ताकत के रूप में उभरे जेसीसीजे के वोटर इस बार किधर शिफ्ट करेंगे, तब जब जेसीसीजे इस बार मैदान में है ही नहीं.

कांग्रेस लगातार कर रही जनसभा

अब जब खुलकर जेसीसीजे के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने न्याय की बात कहते हुए भाजपा प्रत्याशी को समर्थन करने और कांग्रेस को सबक सिखाने की बात कही है तो मामला फिर से कांग्रेस के लिए फंसता नजर आ रहा है. यही वजह है कि अब बीजेपी को भी उम्मीद दिखने लगी है और पूर्व सीएम से लेकर तमाम दिग्गज भी मरवाही में लगातार सक्रिय नजर आए. दूसरी ओर सत्ताधारी कांग्रेस की अतिसक्रियता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मरवाही में लगातार डेरा डाले दिखे. उन्होंने अपने हालिया बी टीम वाले बयान में एक नया शिगूफा छोड़ा है.

मरवाही सीट पर बीजेपी या कांग्रेस के दो प्रत्याशियों में से एक के ही सिर पर जीत का सेहरा बंधेगा. अब तक के सियासी उठापटक से यह निष्कर्ष भी निकलते आ रहा है कि जेसीसीजे और जोगी परिवार के समर्थित वोटर ही डिसाइडिंग साबित होंगे. यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि चुनाव महज अलग-अलग दलों के बीच का संघर्ष नहीं है, बल्कि मरवाही के बुद्धिजीवी मतदाताओं के राजनीतिक समझ को भी उजागर करेगा.

Last Updated : Nov 2, 2020, 4:22 PM IST
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