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बिलासपुर: तालाब पर निजी कब्जे को लेकर दायर जनहित याचिका हुई निराकृत

मुंगेली जिले में आने वाले लोरमी तहसील के मनकी ग्राम के पास तालाब पर निजी लोगों के कब्जे के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैसला जारी करने के बाद निराकृत कर दिया है.

Bilaspur highcourt
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
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Published : Sep 18, 2020, 2:19 PM IST

बिलासपुर : गांव के तालाब पर निजी लोगों के कब्जे के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैसला जारी करने के बाद निराकृत कर दिया है. बता दें कि मुंगेली जिले में आने वाले लोरमी तहसील के मनकी ग्राम के पास तालाब को अपने पूर्वजों की संपत्ति बताते हुए निजी लोगों ने कब्जा कर लिया है. लोरमी की सिविल कोर्ट से इन लोगों ने अपने पक्ष में फैसला भी ले लिया. लेकिन जब यह बात गांव वालों को पता लगी तब मानिक लाल डेहरिया और अन्य गांववासियों ने निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की.

पढ़ें- रायपुर: टिकट दलालों पर रेलवे की कार्रवाई, 9 गिरफ्तार

याचिका में बताया गया कि निचली अदालत से फैसला लेते समय इन गांव वालों को पक्षकार नहीं बनाया गया था. इसके साथ ही यह तालाब गांव वाले की जीवन यापन और निस्तारण के लिए बेहद आवश्यक है. याचिका में बताया गया कि साल 1921 में बने कानून के अनुसार तालाबों के निजीकरण पर रोक लगी हुई है. याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला जारी करते हुए कहा क्योंकि मामले में लोरमी की सिविल कोर्ट ने अपना फैसला जारी किया था. इसलिए अब इस मामले में जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती.

हाईकोर्ट ने याचिका को निराकृत किया

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं को छूट प्रदान की जाती है कि वह मामले में खुद को पक्षकार बनाते हुए दोबारा याचिका सिविल कोर्ट में दायर कर सकते हैं. अपना फैसला जारी करने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को निराकृत कर दिया.

बिलासपुर : गांव के तालाब पर निजी लोगों के कब्जे के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैसला जारी करने के बाद निराकृत कर दिया है. बता दें कि मुंगेली जिले में आने वाले लोरमी तहसील के मनकी ग्राम के पास तालाब को अपने पूर्वजों की संपत्ति बताते हुए निजी लोगों ने कब्जा कर लिया है. लोरमी की सिविल कोर्ट से इन लोगों ने अपने पक्ष में फैसला भी ले लिया. लेकिन जब यह बात गांव वालों को पता लगी तब मानिक लाल डेहरिया और अन्य गांववासियों ने निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की.

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याचिका में बताया गया कि निचली अदालत से फैसला लेते समय इन गांव वालों को पक्षकार नहीं बनाया गया था. इसके साथ ही यह तालाब गांव वाले की जीवन यापन और निस्तारण के लिए बेहद आवश्यक है. याचिका में बताया गया कि साल 1921 में बने कानून के अनुसार तालाबों के निजीकरण पर रोक लगी हुई है. याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला जारी करते हुए कहा क्योंकि मामले में लोरमी की सिविल कोर्ट ने अपना फैसला जारी किया था. इसलिए अब इस मामले में जनहित याचिका दायर नहीं हो सकती.

हाईकोर्ट ने याचिका को निराकृत किया

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं को छूट प्रदान की जाती है कि वह मामले में खुद को पक्षकार बनाते हुए दोबारा याचिका सिविल कोर्ट में दायर कर सकते हैं. अपना फैसला जारी करने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को निराकृत कर दिया.

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