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शैक्षणिक संस्थाओं में 58 फीसदी आरक्षण असंवैधानिक: हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला, कोर्ट ने कहा-50 फीसदी के अंदर होना चाहिए रिजर्वेशन

chhattisgarh high court verdict शैक्षणिक संस्थाओं में 58 फीसदी आरक्षण को हाईकोर्ट ने असंवैधानिक माना है. बिलासपुर हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि रिजर्वेशन 50 फीसदी के अंदर ही होना चाहिए.

शैक्षणिक संस्थाओं में 58 फीसदी आरक्षण असंवैधानिक
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Published : Sep 19, 2022, 12:49 PM IST

Updated : Sep 19, 2022, 1:23 PM IST

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (chhattisgarh high court verdict ) ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में 58 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया (58 percent reservation in educational institutions) है.चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि ''किसी भी स्थिति में आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए.हाईकोर्ट में राज्य शासन के साल 2012 में बनाए गए आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने करीब दो माह पहले फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन सोमवार को निर्णय आया है.

क्यों कोर्ट में गया मामला : राज्य शासन ने वर्ष 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत चार प्रतिशत घटाते हुए 16 से 12 प्रतिशत कर दिया था. वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाते हुए 32 प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा गया. अजजा वर्ग के आरक्षण प्रतिशत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी और अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में चार प्रतिशत की कटौती को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी.

कितनी याचिका हुईं थी दाखिल : इसके साथ ही कोर्ट में अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर कर शासन के आरक्षण नियमों को अवैधानिक बताया गया. याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता मतीन सिद्धिकी, विनय पांडेय और अधिवक्ता श्याम टेकचंदानी की ओर से कहा गया कि ''शासन का फैसला शीर्ष अदालत के निर्देशों और कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.''

ये भी पढ़ें -एनसीटीई परीक्षा को लेकर केंद्र और राज्य को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का नोटिस

बिना सर्वे के शासन ने अनुसूचित जाति का घटा दिया आरक्षण : गुरु घासीदास साहित्य समिति ने अनुसूचित जाति का प्रतिशत घटाने का विरोध किया था. समिति का कहना था कि ''राज्य शासन ने सर्वेक्षण किए बिना ही आरक्षण का प्रतिशत घटा दिया है.इससे अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं को आगे चलकर नुकसान उठाना पड़ेगा. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 7 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था, जिस पर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है.

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (chhattisgarh high court verdict ) ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में 58 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया (58 percent reservation in educational institutions) है.चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि ''किसी भी स्थिति में आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए.हाईकोर्ट में राज्य शासन के साल 2012 में बनाए गए आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने करीब दो माह पहले फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन सोमवार को निर्णय आया है.

क्यों कोर्ट में गया मामला : राज्य शासन ने वर्ष 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत चार प्रतिशत घटाते हुए 16 से 12 प्रतिशत कर दिया था. वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाते हुए 32 प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा गया. अजजा वर्ग के आरक्षण प्रतिशत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी और अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में चार प्रतिशत की कटौती को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी.

कितनी याचिका हुईं थी दाखिल : इसके साथ ही कोर्ट में अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर कर शासन के आरक्षण नियमों को अवैधानिक बताया गया. याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता मतीन सिद्धिकी, विनय पांडेय और अधिवक्ता श्याम टेकचंदानी की ओर से कहा गया कि ''शासन का फैसला शीर्ष अदालत के निर्देशों और कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.''

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बिना सर्वे के शासन ने अनुसूचित जाति का घटा दिया आरक्षण : गुरु घासीदास साहित्य समिति ने अनुसूचित जाति का प्रतिशत घटाने का विरोध किया था. समिति का कहना था कि ''राज्य शासन ने सर्वेक्षण किए बिना ही आरक्षण का प्रतिशत घटा दिया है.इससे अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं को आगे चलकर नुकसान उठाना पड़ेगा. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 7 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था, जिस पर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है.

Last Updated : Sep 19, 2022, 1:23 PM IST
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