बिलासपुर: Body donation increased in Bilaspur cims देहदान को आज के दौर में महादान माना जा रहा है. एक तो इससे कई लोगों की जिंदगी बचती है. दूसरा इस तरह के दान से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को मानव शरीर का प्रैक्टिकल अध्ययन करने में मदद मिलता है. जिससे वह डॉक्टरी की पढ़ाई बेहतर ढंग से कर पाते हैं. बिलासपुर के सिम्स में देहदान को लेकर लोगों का रुझान बढ़ा है. यहां न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि दूसरे राज्यों से लोग देहदान करने के लिए पहुंच रहे हैं. Deadbody protected from embalming fluid
देहदान क्या है: कोई भी शख्स देहदान कर सकता है. वह जीवित रहते देहदान का फॉर्म भर सकता है. जिसमें उसके द्धारा यह घोषणा की जाती है कि मरने के बाद मेरे शरीर को इस मेडिकल कॉलेज को दे दिया जाए. बिलासपुर के विशेषज्ञ डॉक्टर अनुज कुमार ने बताया कि "देहदान की प्रक्रिया बहुत ही आसान है. इसके लिए मेडिकल कॉलेज की ओर से एक फॉर्म दिया जाता है. इस फॉर्म को भरकर मेडिकल कॉलेज में जमा करना होता है. व्यक्ति अपने जीते जी अपना देहदान का फॉर्म भर सकता है और उसके मरने के बाद उसका शरीर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की तरफ से ले लिया जाता है. देहदान के लिए भरे जाने वाले फॉर्म पर देहदान करने वाले का नाम, पता, उम्र रहता है और उसका सिग्नेचर रहता है. इसके अलावा दो गवाह के सिग्नेचर लिए जाते हैं. जो व्यक्ति के मृत्यु के बाद यह साबित करते हैं कि उनकी जानकारी में मृत व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में ही अपना देह दान कर दिया था. उनकी गवाही पर देहदान हो जाता है. अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो मृत्यु के बाद उसके शव को उसके परिजन दान कर सकते हैं. परिवार वाले देहदान करना चाहे तो इसकी भी व्यवस्था है".
देहदान के बाद शव को सुरक्षित कैसे रखा जाता है: डॉक्टर अनुज कुमार के मुताबिक" मौत के बाद मानव शरीर कुछ घंटों बाद डिकम्पोज होने लगता है. इसलिए मेडिकल की पढ़ाई के लिए मिलने वाले डेडबॉडी को सुरक्षित रखने के लिए इसमें केमिकल लेप लगाया जाता है. इस लेप को Embalming fluid लेप (embalming fluid composition) के नाम से जाना जाता है. इस लेप को कई केमिकल्स और डिसइंफेक्टेंट से बनाया जाता है. मौत के बाद किसी मृतदेह को काफी लंबे समय तक रखना पड़ता है. इस स्थिति में बॉडी को सड़ने से रोकने के लिए शव पर इस लेप को लगाया जाता है और इंजेक्ट भी कर दिया जाता है. इसे खास तरीके से बनाया जाता है. यह लेप शरीर को डिकंपोज होने से बचाता है."preserving dead body after Body donation
किस केमिकल से बनता है लेप: एम्बामिंग फल्यूड यानी कि एम्बामिंग लेप को बनाने के लिए formaldehyde, glutaraldehyde, methanol और कई तरह के सॉल्वेंट का इस्तेमाल किया जाता है. मेंथाल का उपयोग इसे बनाने में सबसे ज्यादा किया जाता है. इस घोल को तैयार कर लेने के बाद इसे अच्छे से पूरे शरीर पर लगा दिया जाता है.
कैसे काम करता एम्बामिंग लेप: मृत शरीर अपने प्रकृति के मुताबिक डिकम्पोज होता है. इसलिए मृत देह पर लेप लगाया जाता है और इसके शरीर पर लगने के तुरंत बाद स्किन में मौजूद प्रोटीन को यह लेप तोड़ता है. जिससे यह लेपर शरीर में बैक्टीरिया को खाना बनाने से रोकता है. लेप को तैयार करने में डिसइंफेक्टेंट का इस्तेमाल भी किया जाता है जो त्वचा में मौजूद बैक्टीरिया को मार देता है. इससे बॉडी को लंबे समय तक खराब होने से बचाया जा सकता है.
देहदान के प्रति रुझान बढ़ने से सिम्स में पढ़ाई के लिए पर्याप्त डेड बॉडी: सिम्स मेडिकल कॉलेज के डीन डॉक्टर केके सहारे ने बताया कि "डेडबॉडी सिम्स मेडिकल कॉलेज में सरप्लस है और अब बाहर के लोग भी यहां देहदान कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश और झारखंड के लोग भी देहदान करने सिम्स मेडिकल कॉलेज आ रहे है. कोरबा, अंबिकापुर जैसे मेडिकल कॉलेजों में उनके यहां से डेड बॉडी भिजवाई जा रही है, ताकि वहां के छात्रों को भी इसका लाभ मिल सके.
देहदान से मेडिकल की पढ़ाई में मिल रही मदद: बिलासपुर में देहदान की संख्या में इजाफा हुआ है. यही वजह है कि सिम्स मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई के लिए पर्याप्त संख्या में शव हैं. सिम्स मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की 180 सीटें हैं. यहां 180 सीटों के लिए 18 डेड बॉडी है. छात्रों को 10 की संख्या में 10 ग्रुप में बांटा गया है. ताकि वह प्रैक्टिकल, सर्जरी और ऑर्गन की पढ़ाई कर सके.