बिलासपुर : शादी के बाद पति पत्नी अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं.लेकिन कभी कभी इस नए जीवन का काला सच भी सामने आता है. कई जगहों पर महिलाओं को शादी के बाद मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. बिलासपुर हाईकोर्ट ने पति पत्नी के तनाव भरे रिश्ते को लेकर हाल ही में फैसला सुनाया है. जिसमें फैमिली कोर्ट रायपुर के फैसले को बदला गया है.
फैमिली कोर्ट रायपुर ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13(1)(1–ए) के तहत प्राप्त तलाक की डिग्री को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया .सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि तलाक की कोई भी डिग्री तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक तलाक चाहने वाला व्यक्ति दलीलों और सबूतों के आधार पर क्रूरता साबित नहीं कर देता. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि पत्नी को बंधुआ मजदूर जैसे रहने के लिए कोई मजबूर नहीं कर सकता है.
क्या है मामला : रायपुर में रहने वाले दंपत्ति की शादी 5 जून 2015 को हुई थी, इसके बाद उन्हें वैवाहिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. पति ने दावा किया कि पत्नी उसके साथ क्रूरता पूर्ण व्यवहार करती थी और अपने माता-पिता से अलग रहने पर जोर देती थी. पत्नी मैरिज एनिवर्सरी के दिन भी साथ नहीं आई.
पत्नी ने आरोपों से किया इनकार : इधर पत्नी ने पति पर दहेज मांगने का आरोप लगाने के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया. मामले में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई. 13 जुलाई 2023 को दिए गए अपने फैसले में जस्टिस गौतम भादुड़ी ने बेंच की ओर से लिखा था कि पति, पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आरोपों को साबित करने में विफल रहा. कुछ घटनाओं के लिए कोई अच्छा स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. यह तथ्य की पति के खिलाफ दहेज से संबंधित एक आपराधिक मामला लंबित है. उचित संदेह पैदा करता है. इसलिए हाईकोर्ट ने रायपुर के फैमिली कोर्ट का फैसला बदलते हुए तलाक के डिग्री को निरस्त कर दिया.
पति के बयानों में था विरोधाभास : कोर्ट ने पत्नी की ससुराल में रहने की इच्छा और पति के पिता के धमतरी स्थित आवास के संबंध में पति के बयानों में विरोधाभास पाया. इसके अलावा जजों ने कहा कि जीवन को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में रहने से इनकार करना क्रूरता नहीं है.इस मामले में पति ने दुर्व्यवहार की स्थिति खुद पैदा की है. हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि तलाक देने का फैमिली कोर्ट का फैसला टिकाऊ नहीं था.इसलिए इसे रद्द कर दिया गया. इसके बदले कोर्ट ने पति को रुपए देने के आदेश दिए. उनके मासिक वेतन और उनकी वर्तमान वित्तीय स्थिति को देखते हुए पत्नी को भरण-पोषण के रूप में प्रतिमाह 10,000 रुपए देने का आदेश कोर्ट ने दिया है.