बीजापुर: पेड़ों के बीच चांदनी रात में चांदी की तरह चमकदार पेड़ दिखे तो सिहरन सी दौड़ जाएगी. यह बीजापुर का औषधीय गुणों से भरपूर 'कुल्लू पेड़'. इस पेड़ का वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन है. इस पेड़ को गोंडी में पांडरुमराम कहा जाता है. कोयाइटपाल निवासी लेकम मंगू बताते हैं की पांडरूमराम की गोंद और बीज दोनों औषधीय गुणों से भरपूर है. जिसके कारण इस पेड़ को कोई नहीं काटता है. इसकी लकड़ी जलावन या इमारती लकड़ी के तौर पर प्रयोग में लाई जाती है. सिर्फ गोंद और बीज के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
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इस तरह इसका नाम पड़ा लेडी लेग
गांव के जानकार लेकम मंगू ने बताया कि यह पेड़ अन्य पेड़ों की तरह काफी अधिक चिकना और चमकीला होता है. अंग्रेजों को इसे कुल्लू पेड़ कहना नहीं आता था. काफी अधिक चिकना होने के कारण अंग्रेजी मेम के टांगों से करते हुए इसे लेडी लेग का नाम दिया था. यह दूधिया चांद में चमकदार दिखता है. इसलिए गोस्ट ट्री भी इसे कहा गया है. गंगालूर निवासी पवन हल्लुर ने बताया कि स्थानीय मराठी में कोग्लाय के नाम से इसे जाना जाता है. इसका गोंद प्रसव के बाद मां को खिलाया जाता है. इसके बीज और गोंद दोनों औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं.
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बीजापुर वन मंडल में 300 से ज्यादा पेड़ मौजूद
बीजापुर वन मंडल के डीएफओ अशोक पटेल ने कहा कि बीजापुर में कुल्लू के पेड़ छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक हैं. करीब तीन सौ से ज्यादा पेड़ बीजापुर वन मंडल क्षेत्र (
Bijapur Forest Division Area) में मौजूद हैं. कुल्लू के गोंद पर सरकार ने समर्थन मूल्य भी जारी किया हुआ है. इस पेड़ की कटाई स्थानीय लोग नहीं करते हैं. जिसके कारण आज भी यह संरक्षित है. टिश्यू कल्चर से इस पेड़ की संख्या बढ़ाने का प्रयास छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानों में किया गया है. परिणाम उतने अच्छे नही मिले. पटेल बताया कि बीजापुर के जंगलों में यह सर्वाधिक रूप से पाया जाता है.