बेमेतरा : किसी भी त्योहार को मनाए जाने के पीछे एक कथा प्रचलित होती है. हर त्योहार की एक कहानी है जो हम बचपने से अपने बड़ों से सुनते आए हैं. बेमेतरा में भी वर्षो पुरानी एक परंपरा है जिसमें आदिवासी समाज के लोग डंडा नृत्य करते हैं. सबसे पहले समाज के लोग होली के दिन गांव के देवालयों में नृत्य करते हैं, इसके बाद घर-घर जाकर डंडा नृत्य किया जाता है. सभी ग्रामीण नृत्य करने वालों को शगुन के रुप में उपहार भेंट करते हैं. डंडा नाच वैसा ही होता है जैसे दीपावली के समय राउत नाचा होता है.
क्या है डंडा नाच ?
डंडा नृत्य आदिवासी संस्कृति का अहम हिस्सा है. नृत्य और संगीत के जरिए आदिवासी अपने जीवन की कहानियां और अपनी खुशियां व्यक्त करते हैं. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदायों डंडा नृत्य करते हैं, जिसमें डांडिया की तर्ज पर वे डांस करते हैं और बीच-बीच में कोयल की तरह आवाज निकालते हैं. इसके पीछे का कारण यह है कि पुराने जमाने में अभाव की वजह से लोगों के पास वाद्य यंत्र नहीं होते थे, तो डंडा के सहारे ही डांस किया जाता था. लेकिन अब डंडा नाच में भी मांदर, ढोल-नगाड़े का उपयोग होने लगा है. होली के पर्व पर आदिवासी समाज घर-घर जाकर यह नृत्य करते हैं.
![Danda dance tradition continues in Holi for years in bemetara](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-bmt-01-holi-utsav-stick-dance-bmt-rtu-cg10007_29032021153904_2903f_1617012544_1028.jpg)
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डंडा नृत्य की परंपरा
क्षेत्र के ग्राम धनगांव, बरबसपुर, झालम में पिछले कई वर्षो से होली पर्व पर डंडा नृत्य की परंपरा कायम है. आदिवासी समाज के लोग होली के सप्ताह भर पहले से रात्रि में डंडा नृत्य करते हैं. होली के दिन देवालयो मंदिर में पूजा-अर्चना कर गांव भृमण कर डंडा नृत्य किया जाता है.