बस्तर: बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर तैनात सीआरपीएफ की जाबांज महिला कमांडो (Bastar Women commandos) लाल आतंक से लोहा ले रहीं हैं. बस्तर में तैनात सीआरपीएफ के सामने जब स्थानीय भाषा और भौगोलिक जानकारियों को लेकर समस्या आने लगी और नक्सलियों के दबाव में ग्रामीणों ने जवानों पर झूठे आरोप लगाए. तब पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तर के युवाओं को मौका देने के उद्देश्य से बस्तर बटालियन बनाने का फैसला लिया. इस फैसले के तहत इनमें एक तिहाई महिलाओं की भी भर्ती की गई. आज सीआरपीएफ की यह महिला कमांडो की टीम बस्तर के बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में ड्यूटी में तैनात हैं.
'कई चुनौतियों को पार कर हासिल किया मुकाम'
ईटीवी भारत ने महिला दिवस के मौके पर जब महिला कमांडो से बातचीत की तो उनका उत्साह देखने लायक था. बातचीत के दौरान महिलाओं ने बताया कि, कितनी चुनौती का सामना कर वो इस मुकाम तक पहुंची हैं. महिला कमांडो आज खुद पर गर्व महसूस करती हैं. ETV भारत के माध्यम से महिला कमांडों ने देश की महिलाओं को संदेश दिया कि अगर उनकी आवाज दबाई जाती है तो उन्हें अपनी आवाज भी बुलंद करनी चाहिए.
भाषा बनी दिक्कत लेकिन फिर भी नहीं मानी हार
बटालियन के रूप में सीआरपीएफ से जुड़ीं बस्तर की ये महिलाएं कितनी सफल साबित हो रही हैं, इसके जवाब में उनके अधिकारी ने बताया कि, जब बस्तर बटालियन की परिकल्पना की गई तो इसका उद्देश्य ही था कि उनके जवानों और बस्तर के ग्रामीणों के बीच दूरियों को कम किया जा सके. सीआरपीएफ के अधिकारी के अनुसार सीआरपीएफ और बस्तर के ग्रामीणों के बीच भाषा और बोली की अज्ञानता होने की वजह से संवाद स्थापित करने में कठिनाई होती थी. अब बस्तर बटालियन के गठन के बाद हालात बदलते नजर आ रहे हैं.
पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं महिलाएं
बस्तर के युवा ही नहीं युवतियों में भी गजब की शारीरिक क्षमता होती है. ये महिलाएं लगातार पुरुष जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. बस्तर की सभी चुनौतियों से निपटने में यह सक्षम हैं. यही वजह है कि आज ये देश की सभी महिलाओं चाहे वे किसी भी फील्ड में काम करती हों, उनके लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं.