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SPECIAL: 'न शौचालय, न पानी, न सड़क', बस्तर का ये गांव आज भी है बुनियादी सुविधाओं से महरूम

बस्तर के पाडेरपानी पारा गांव में 20 परिवार रहते हैं. आजादी के 7 दशक बाद भी ये गांव वैसा का वैसा ही है. लगातार मांग के बावजूद यहां के लोगों को अब तक न तो पीने का साफ पानी मिल सका है और ना तो चलने के लिए सड़क.

Situation in Paderpani Para village of Bastar
बस्तर के पाडेरपानी पारा गांव का हाल
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Published : May 25, 2020, 8:17 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

बस्तर: जगदलपुर शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुसपाल पंचायत के पाडेरपानी पारा के ग्रामीण पिछले कई सालों से विकास की राह तक रहे हैं. आजादी के 7 दशक बाद भी पाडेरपानी पारा गांव में कुछ नहीं बदला. कहते हैं विकास की राह सड़क से होकर गुज़रती है. किसी गांव की सड़क उस गांव के विकास का पैमाना होती है, लेकिन बस्तर के इस गांव में सड़क कभी पहुंची ही नहीं. गांव में लोगों और उनके मिट्टी के घरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे हुक्मरानों ने इस गांव को अपने विकास के नक्शे से ही गायब कर दिया है. इस गांव में परेशानियों का अंबार है.

बस्तर के पाडेरपानी पारा गांव का हाल

एक भी शौचालय नहीं

गांव के लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं. स्वच्छ भारत मिशन के तहत यहां शौचालय बनना शुरू तो हुआ, लेकिन पूरा नहीं हो सका. शौचालय 3 साल से अधूरे हैं. उसकी टंकी दोबारा मिट्टी से भर चुकी है. प्रशासन ने इस अधूरे शौचालय के पैसे नहीं दिए हैं. ऐसे में शौचालय के कामगार इनसे पैसे मांग रहे हैं. शौचालय पूरा बना ही नहीं है. ऊपर से इन पर कर्ज अलग चढ़ गया है.

पीने का पानी नहीं

पाडेरपानी गांव के 20 परिवार सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से कुएं या बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी का दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. झिरिया का पानी पीने से कुछ ग्रामीण बीमार पड़ चुके हैं. वहीं कुछ गांववालों की डायरिया, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से मौत भी हो चुकी है.

खेती से जीवन, रोजगार भी नहीं

इस गांव में सभी लोग खेती-किसानी पर निर्भर हैं. बमुश्किल गुज़ारा हो पाता है. कुछ युवकों का रोज़गार के लिए पंजीयन भी हुआ, लेकिन कभी काम नहीं मिला. यहां के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कई सालों से गांव के किसी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिल सका है. खेती भी वे खुद के खा पाने जितना ही कर पाते हैं. ऐसे में कोई रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पा रही है.

8 किलोमीटर तक सड़क नहीं

बता दें कि गांव से 8 किलोमीटर तक कोई सड़क ही नहीं है. जंगल का कच्चा रास्ता ही एकमात्र सहारा है. पानी लेने जाने से लेकर हर जरूरी काम के लिए उन्हें जंगल से होकर गुजरना होता है. सड़क की मांग कई सालों से हो रही है, लेकिन यह मांग अब तक महज एक मांग है.

बरसात में हाल बुरा

बरसात के दिनों में गांव का आम जनजीवन दुनिया से कट जाता है. चारों ओर पानी ही पानी होता है. ऐसे कई दिन तक गांव वाले घरों में कैद रहते हैं. कई बार ये मिट्टी के घर ढह जाते हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाती है. क्षेत्र के विधायक चंदन कश्यप ने जल्द ही इस गांव के लिए नल की व्यवस्था करने की बात कही है, लेकिन उन्होंने सड़क के लिए वन विभाग की अनुमति के इंतजार की बात भी कही है. न पानी, न रोज़गार, न पक्के मकान, न सड़क, साथ है तो सिर्फ गरीबी और बेबसी.. फिर भी उम्मीद करते हैं कि एक दिन विकास भटककर ही सही यहां पहुंचेगा ज़रूर.

बस्तर: जगदलपुर शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुसपाल पंचायत के पाडेरपानी पारा के ग्रामीण पिछले कई सालों से विकास की राह तक रहे हैं. आजादी के 7 दशक बाद भी पाडेरपानी पारा गांव में कुछ नहीं बदला. कहते हैं विकास की राह सड़क से होकर गुज़रती है. किसी गांव की सड़क उस गांव के विकास का पैमाना होती है, लेकिन बस्तर के इस गांव में सड़क कभी पहुंची ही नहीं. गांव में लोगों और उनके मिट्टी के घरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे हुक्मरानों ने इस गांव को अपने विकास के नक्शे से ही गायब कर दिया है. इस गांव में परेशानियों का अंबार है.

बस्तर के पाडेरपानी पारा गांव का हाल

एक भी शौचालय नहीं

गांव के लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं. स्वच्छ भारत मिशन के तहत यहां शौचालय बनना शुरू तो हुआ, लेकिन पूरा नहीं हो सका. शौचालय 3 साल से अधूरे हैं. उसकी टंकी दोबारा मिट्टी से भर चुकी है. प्रशासन ने इस अधूरे शौचालय के पैसे नहीं दिए हैं. ऐसे में शौचालय के कामगार इनसे पैसे मांग रहे हैं. शौचालय पूरा बना ही नहीं है. ऊपर से इन पर कर्ज अलग चढ़ गया है.

पीने का पानी नहीं

पाडेरपानी गांव के 20 परिवार सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से कुएं या बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी का दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. झिरिया का पानी पीने से कुछ ग्रामीण बीमार पड़ चुके हैं. वहीं कुछ गांववालों की डायरिया, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से मौत भी हो चुकी है.

खेती से जीवन, रोजगार भी नहीं

इस गांव में सभी लोग खेती-किसानी पर निर्भर हैं. बमुश्किल गुज़ारा हो पाता है. कुछ युवकों का रोज़गार के लिए पंजीयन भी हुआ, लेकिन कभी काम नहीं मिला. यहां के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कई सालों से गांव के किसी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिल सका है. खेती भी वे खुद के खा पाने जितना ही कर पाते हैं. ऐसे में कोई रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पा रही है.

8 किलोमीटर तक सड़क नहीं

बता दें कि गांव से 8 किलोमीटर तक कोई सड़क ही नहीं है. जंगल का कच्चा रास्ता ही एकमात्र सहारा है. पानी लेने जाने से लेकर हर जरूरी काम के लिए उन्हें जंगल से होकर गुजरना होता है. सड़क की मांग कई सालों से हो रही है, लेकिन यह मांग अब तक महज एक मांग है.

बरसात में हाल बुरा

बरसात के दिनों में गांव का आम जनजीवन दुनिया से कट जाता है. चारों ओर पानी ही पानी होता है. ऐसे कई दिन तक गांव वाले घरों में कैद रहते हैं. कई बार ये मिट्टी के घर ढह जाते हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाती है. क्षेत्र के विधायक चंदन कश्यप ने जल्द ही इस गांव के लिए नल की व्यवस्था करने की बात कही है, लेकिन उन्होंने सड़क के लिए वन विभाग की अनुमति के इंतजार की बात भी कही है. न पानी, न रोज़गार, न पक्के मकान, न सड़क, साथ है तो सिर्फ गरीबी और बेबसी.. फिर भी उम्मीद करते हैं कि एक दिन विकास भटककर ही सही यहां पहुंचेगा ज़रूर.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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