जगदलपुर : मांदर की थाप के बीच सिर पर गौर सींग वाला मुकुट बस्तर की पहचान बताता है. गौर मुकुट को बनाने में 50 हजार रुपए का खर्च आता है. इसे बनाने के लिए वन्य प्राणी गौर का सींग, बांस के जंगलों में रहने वाले दर्जनों भृंगराज पक्षी के पंख, राष्ट्रीय पक्षी मयूर के गर्दन की खाल और कई देशी मुर्गों की पूंछ की जरूरत पड़ती है. लिहाजा मौजूदा समय में पारंपरिक गौर मुकुट कम देखने को मिलते हैं.लेकिन नकली गौर मुकुट बाजारों में उपलब्ध हैं.
सींग की जगह लकड़ी का इस्तेमाल : वन्य प्राणियों से जुड़े नियमों की वजह से अब जंगलों में गौर के सींग कम ही मिलते हैं.वहीं यदि किसी ने गौर मुकुट बनवाया भी तो उस पर वनविभाग कार्रवाई कर सकता है.लिहाजा अब आदिवासी गौर मुकुट में सींग की जगह लकड़ी, मुर्गे की पूंछ और बाजार में बिकने वाले साजो समान से ही इसे तैयार करवाते हैं.जो देखने में बिल्कुल असली मुकुट की तरह दिखता है.वहीं इसे बनाने के लिए भृंगराज पक्षी के पूंछ के गुच्छों का इस्तेमाल होता है. जो बाजारों में पचास रुपए प्रति नग के दाम पर उपलब्ध होते हैं.गौर सींग और भृंगराज के पूंछ को जोड़ने वाला हिस्सा भिमाड़ी कहलाता है.
कौन पहनता है गौर मुकुट : ऐसा नहीं है कि हर कोई इसे पहन सकता है. यदि आप बस्तर में है तो यहां पुरुष प्रधान समाज की व्यवस्था है. लिहाजा में पुरुष वर्ग ही गौर मुकुट पहन सकता है.महिलाओं के लिए सीपी वाले मुकुट या माला पहनने का रिवाज है.
क्यों है गौर मुकुट बस्तर में जरुरी : बस्तर में गौर मुकुट स्वाभिमान और समृद्धि का प्रतीक हैं. धुरवा, मुरिया और दंडामी माड़िया जनजाति के लोग ही गौर मुकुट का इस्तेमाल करते हैं. इसे झांपी या बांस की पेटी में सहेज कर रखा जाता है.फिर इसे नई पीढ़ी को सौंपा जाता है.
क्या है गौर : गौर मुकुट जिस जानवर के नाम से प्रसिद्ध है दरअसल वो छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु है. इस दुर्लभ प्रजाति को बायसन को वन भैंसा भी समझा जाता है. गौर की सबसे बड़ी आबादी भारत में बस्तर इलाके में है. लेकिन यहां भी अब इनकी तादात कम है. प्रदेश में सिर्फ दो प्रजातियां गौर बायसन और वन भैंसा ही मिलती हैं.