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SPECIAL: बस्तर की इस बेटी ने किसानों के लिए वो किया, जो 27 साल में न हुआ

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Published : Jun 17, 2019, 4:30 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

बस्तर में इस धान की किस्म का ईजाद एक बड़ी घटना है. लगभग पूरी तरह से बारिश पर निर्भर बस्तर के किसान और खेती के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है. कम पानी वाली मरहान भूमि पर भी ''बस्तर धान-1'' आसानी से रोपा जा सकेगा और एक हेक्टेयर में ही किसान 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे.

बस्तर धान-1

जगदलपुर: बस्तर के बेटे आसमां छू रहे हैं तो बेटियां हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं. घर, बाहर हर जगह हाथ बंटाने वाली बेटी ने कुछ ऐसा ईजाद किया है कि खेतों में धान की फसल लहलहा उठेगी. 6 साल के रिसर्च के बाद बस्तर की वैज्ञानिक बेटी डॉक्टर सोनाली कर ने चार वैज्ञानिकों के साथ मिलकर धान की नई किस्म ''बस्तर धान-1'' का निर्माण कर दिखाया है.

बस्तर की इस बेटी ने किसानों के लिए वो किया, जो 27 साल में न हुआ

बस्तर में इस धान की किस्म का ईजाद एक बड़ी घटना है. लगभग पूरी तरह से बारिश पर निर्भर बस्तर के किसान और खेती के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है. कम पानी वाली मरहान भूमि पर भी ''बस्तर धान-1'' आसानी से रोपा जा सकेगा और एक हेक्टेयर में ही किसान 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे.

बस्तर और सरगुजा के किसानों को सबसे ज्यादा फायदा होगा-

  • कृषि वैज्ञानिक डॉ. सोनाली कर ने बताया कि अब तक बस्तर में धान की जो भी प्रजाति विकसित हुई है वह इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है, लेकिन ''बस्तर धान-1'' की यह किस्म 1992 से संचालित अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना द्वारा विकसित धान की पहली किस्म है.
  • 27 सालों से किए जा रहे धान अनुसंधान के प्रयास को साकार रूप देकर इस किस्म को विकसित किया गया है. धान की इस किस्म की खेती का किसानों को फायदा मिलेगा.
  • अब तक बस्तर के किसान मरहान भूमि में धान की खेती कर एक हेक्टेयर 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन करते थे.
  • बस्तर धान-1 का उपयोग कर किसान प्रति हेक्टेयर 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे.
  • कृषि विज्ञानिक सोनाली कर ने बताया कि इस धान से-105 से 110 दिन में फसल तैयार हो जाएगी. बस्तर धान-1 जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी खेती किसानो को सीधी बुआई में अधिक फायदेमंद साबित होगी.
  • सोनाली ने बताया कि सामान्य रूप से मरहान भूमि में धान की फसल 130-140 दिनों में तैयार होती है. लेकिन यह नई किस्म की धान 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाएगी.
  • सबसे अधिक फायदा मरहान में खेती करने वाले बस्तर व सरगुजा जिले के किसानों को मिलेगा.
  • लगातार एक दशक तक सोनाली ने इस प्रोजक्ट पर कई प्रयोग किये. डॉ सोनाली की इस सफलता से कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक बेहद खुश हैं. उनका मानना है की धान की इस नयी प्रजाति के ईजाद से न केवल किसानों को फायदा मिलेगा बल्कि बस्तर में रिसर्च के नए आयाम स्थापित होंगे.
  • शासकीय कृषि विज्ञानं केंद्र जगदलपुर के संचालक, वरिष्ठ वैज्ञानिक मनीष नाग के मुताबिक डॉ सोनाली कर शुरू से ही मेहनती और किसानों की हितैषी रही हैं. धान की प्रजाति ''बस्तर धान -1'' का ईजाद बस्तर के लिए गौरव की बात है.
  • उन्होंने बताया कि जल्द ही इस धान को बीज उत्पादन के माध्यम से विकसित किया जायेगा और 2 वर्षों में इस धान का बीज किसानों को मार्केट से उपलब्ध हो सकेगा.

जगदलपुर: बस्तर के बेटे आसमां छू रहे हैं तो बेटियां हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं. घर, बाहर हर जगह हाथ बंटाने वाली बेटी ने कुछ ऐसा ईजाद किया है कि खेतों में धान की फसल लहलहा उठेगी. 6 साल के रिसर्च के बाद बस्तर की वैज्ञानिक बेटी डॉक्टर सोनाली कर ने चार वैज्ञानिकों के साथ मिलकर धान की नई किस्म ''बस्तर धान-1'' का निर्माण कर दिखाया है.

बस्तर की इस बेटी ने किसानों के लिए वो किया, जो 27 साल में न हुआ

बस्तर में इस धान की किस्म का ईजाद एक बड़ी घटना है. लगभग पूरी तरह से बारिश पर निर्भर बस्तर के किसान और खेती के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है. कम पानी वाली मरहान भूमि पर भी ''बस्तर धान-1'' आसानी से रोपा जा सकेगा और एक हेक्टेयर में ही किसान 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे.

बस्तर और सरगुजा के किसानों को सबसे ज्यादा फायदा होगा-

  • कृषि वैज्ञानिक डॉ. सोनाली कर ने बताया कि अब तक बस्तर में धान की जो भी प्रजाति विकसित हुई है वह इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है, लेकिन ''बस्तर धान-1'' की यह किस्म 1992 से संचालित अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना द्वारा विकसित धान की पहली किस्म है.
  • 27 सालों से किए जा रहे धान अनुसंधान के प्रयास को साकार रूप देकर इस किस्म को विकसित किया गया है. धान की इस किस्म की खेती का किसानों को फायदा मिलेगा.
  • अब तक बस्तर के किसान मरहान भूमि में धान की खेती कर एक हेक्टेयर 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन करते थे.
  • बस्तर धान-1 का उपयोग कर किसान प्रति हेक्टेयर 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे.
  • कृषि विज्ञानिक सोनाली कर ने बताया कि इस धान से-105 से 110 दिन में फसल तैयार हो जाएगी. बस्तर धान-1 जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी खेती किसानो को सीधी बुआई में अधिक फायदेमंद साबित होगी.
  • सोनाली ने बताया कि सामान्य रूप से मरहान भूमि में धान की फसल 130-140 दिनों में तैयार होती है. लेकिन यह नई किस्म की धान 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाएगी.
  • सबसे अधिक फायदा मरहान में खेती करने वाले बस्तर व सरगुजा जिले के किसानों को मिलेगा.
  • लगातार एक दशक तक सोनाली ने इस प्रोजक्ट पर कई प्रयोग किये. डॉ सोनाली की इस सफलता से कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक बेहद खुश हैं. उनका मानना है की धान की इस नयी प्रजाति के ईजाद से न केवल किसानों को फायदा मिलेगा बल्कि बस्तर में रिसर्च के नए आयाम स्थापित होंगे.
  • शासकीय कृषि विज्ञानं केंद्र जगदलपुर के संचालक, वरिष्ठ वैज्ञानिक मनीष नाग के मुताबिक डॉ सोनाली कर शुरू से ही मेहनती और किसानों की हितैषी रही हैं. धान की प्रजाति ''बस्तर धान -1'' का ईजाद बस्तर के लिए गौरव की बात है.
  • उन्होंने बताया कि जल्द ही इस धान को बीज उत्पादन के माध्यम से विकसित किया जायेगा और 2 वर्षों में इस धान का बीज किसानों को मार्केट से उपलब्ध हो सकेगा.
Intro:जगदलपुर। 6 साल के रिसर्च के बाद बस्तर की वैज्ञानिक बेटी ने चार वैज्ञानिकों के साथ मिलकर धान की नई किस्म ''बस्तर धान-1'' का निर्माण कर दिखाया है। बस्तर में इस धान की किस्म का ईजाद एक बड़ी क्रन्तिकारी घटना है। लगभग पूरी तरह से बारिश पर निर्भर बस्तर के किसान और खेती के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है। कम पानी वाली मरहान भूमि पर भी ''बस्तर धान-1'' आसानी से रोपा जा सकेगा और एक हेक्टेयर में ही किसान 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे।



Body:कृषि वैज्ञानिक डॉ. सोनाली कर ने बताया कि अब तक बस्तर में धान की जो भी प्रजाति विकसित हुई है वह इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है, लेकिन ''बस्तर धान-1'' की यह किस्म 1992 से संचालित अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना द्वारा विकसित धान की पहली किस्म है।- 27 सालों से किए जा रहे धान अनुसंधान के प्रयास को साकार रूप देकर इस किस्म को विकसित किया गया है। धान की इस किस्म की खेती का किसानों को फायदा मिलेगा। अब तक बस्तर के किसान मरहान भूमि में धान की खेती कर एक हेक्टेयर 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन करते थे। बस्तर धान-1 का उपयोग कर किसान प्रति हेक्टेयर 35- 40 क्विंटल तक उत्पादन कर सकेंगे।
Conclusion:कृषि विज्ञानिक सोनाली कर ने बताया कि इस धान से-105 से 110 दिन में फसल तैयार हो जायेगी। बस्तर धान-1 जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी खेती किसानो को सीधी बुआई में अधिक फायदेमंद साबित होगी। सोनाली ने बताया कि सामान्य रूप से मरहान भूमि में धान की फसल 130-140 दिनों में तैयार होती है। लेकिन यह नई किस्म की धान 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाएगी. और सबसे अधिक फायदा मरहान में खेती करने वाले बस्तर व सरगुजा जिले के किसानों को मिलेगा।

बाईट2- डॉ. सोनाली कर, कृषि वैज्ञानिक

लगातार एक दशक तक सोनाली ने इस प्रोजक्ट पर कई प्रयोग किये,.डॉ सोनाली की इस सफलता से कृषि विज्ञानं केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक बेहद खुश हैं. । उनका मानना है की धान की इस नयी प्रजाति के ईजाद से न केवल किसानो को फायदा मिलेगा बल्कि बस्तर में रिसर्च के नये आयाम स्थापित होंगे। कम संसाधनों में प्रयोग कर बड़ी सफलता हांसिल करना अपने आप में बड़ा कठिन कार्य है। शासकीय कृषि विज्ञानं केंद्र जगदलपुर के संचालक, वरिष्ठ वैज्ञानिक मनीष नाग के मुताबिक डॉ सोनाली कर शुरू से ही मेहनती और किसानों की हितैषी रही हैं। धान की प्रजाति ''बस्तर धान -1'' का ईजाद बस्तर के लिए गौरव की बात है। और निश्तित ही तौर पर इस धान से किसानो को फायदा मिलेगा। और जल्द ही इस धान को बीज उत्पादन के माध्यम से विकसित किया जायेगा और 2 वर्षो मे इस धान का बीज किसानो को मार्केट से उपलब्ध हो सकेगा।
बाईट- मनीष नाग, संचालक कृषि विज्ञान केन्द्र
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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