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बस्तर में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन, राज्योत्सव पर गोंडी-भतरी और हल्बी में "बादल" ने दिया मंच - jagdalpur news

बस्तर में विलुप्त होती आदिवासी कला और संस्कृति को बचाए रखने को लेकर बस्तर में छत्तीसगढ़ राज्योत्सव अनूठे तरीके से मनाया गया. इस बार यहां स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. यह आयोजन जिलेभर के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा.

Kavi Sammelan held in local dialect in Bastar on Rajyotsav
राज्योत्सव पर बस्तर में स्थानीय बोली में हुआ कवि सम्मेलन
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Published : Nov 1, 2021, 7:44 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर : बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर (Bastar Academy of Dance Art and Literature) "बादल" संस्था में 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ राज्य गठन दिवस (Chhattisgarh State Formation Day) के मौके पर राज्योत्सव का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बस्तर के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस क्रम में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन (Kavi Sammelan in local language) का आयोजन हुआ. यह पहला मौका है जब "बादल" संस्था में स्थानीय बोली पर आधारित कवि सम्मेलन को मंच प्रदान किया गया. दरअसल बस्तर में बोली जाने वाली तीन बोली गोंडी, भतरी, हल्बी की काफी विशेषताएं हैं. इसी बोली पर बस्तर के आदिवासी लेखकों द्वारा कवि सम्मेलन भी किये जाते हैं. आज के इस कार्यक्रम में कवि सम्मेलन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था. इसमें बस्तर जिले के ग्रामीण अंचल से 7 प्रतिष्ठित कवि पहुंचे थे.

राज्योत्सव पर बस्तर में स्थानीय बोली में हुआ कवि सम्मेलन
आदिवासी कला-संस्कृति को बचाने "बादल" की स्थापना

दरअसल बस्तर में आदिवासी परंपरा, कला और संस्कृति को बचाए रखने के लिए "बादल" संस्था की स्थापना की गई है. इस संस्था में विलुप्त होती बस्तर के नृत्य, नाट्य, कला और संस्कृति को फिर से जीवंत करने का काम किया जा रहा है. जहां एक बार फिर से आदिवासी कलाकार व आदिवासी कारीगरों और मूर्तिकारों द्वारा बेहतरीन प्रदर्शन किया जा रहा है. प्रशासन द्वारा इन्हें मंच भी प्रदान किया गया है. आज राज्योत्सव के मौके पर बादल संस्था में प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए. इस कार्यक्रम में बस्तर के आदिवासी कलाकारों द्वारा बस्तर के पारंपरिक नृत्य पर प्रस्तुति दी गई. इस आयोजन की खास बात यह रही कि कार्यक्रम में जिलेभर से आदिवासी कलाकार पहुंचे थे. इनमें बच्चों के साथ ही युवा और वृद्ध भी अपनी प्रस्तुति देने बादल संस्था पहुंचे थे.

स्थानीय बोली में हुआ कवि सम्मेलन का आयोजन

इस कवि सम्मेलन का आयोजन स्थानीय बोली में किया गया, जो आकर्षण का केंद्र रहा. बस्तर के प्रचलित लेखक और कवियों ने कवि सम्मेलन का आयोजन किया. इस दौरान गोंडी, भतरी और हल्बी बोली में कवियों ने प्रस्तुति दी. जिले भर से 7 कवि यहां पहुंचे थे. बस्तर के लेखक, साहित्यकार व कवि लखेश्वर खुदराम ने बताया कि वे पिछले कई सालों से बस्तर पर लोक गीत के साथ-साथ कई किताबें लिख चुके हैं. उन्होंने कहा कि बस्तर के कवियों में इसको लेकर खुशी है कि बादल संस्था के माध्यम से उन्हें मंच मिला है. उन्हें अपनी प्रस्तुति देने का मौका भी मिल रहा है.

मंच नहीं मिलने से विलुप्त हो रही आदिवासी कला

उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासियों में कला साहित्य के क्षेत्र में काफी प्रतिभा छिपी हुई है. इसे निखारने की जरूरत है. ऐसे में मंच नहीं मिलने के चलते लगभग यह कला विलुप्त होने के कगार पर थी. लेकिन आज बस्तर के 7 कवियों को स्थानीय बोली में सम्मेलन करने का मौका दिया जा रहा है. इसको लेकर कवियों में काफी खुशी है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस तरह के आयोजन निरंतर किये जाने चाहिए, ताकि बस्तर के आदिवासी कलाकारों, लेखकों और साहित्यकारों की जो प्रतिभा है वह देश-दुनिया के सामने आ सके. जिससे बस्तर के साथ-साथ यहां के कवियों का भी नाम रोशन हो सके.


राज्योत्सव पर बादल संस्था में लगे स्टॉल

इधर, बस्तर जिले के कलेक्टर रजत बंसल ने कहा कि राज्योत्सव के मौके पर विभिन्न शासकीय विभागों द्वारा अपनी योजनाओं को लेकर बादल संस्था में स्टॉल भी लगाए गए हैं. साथ ही यहां के स्कूली बच्चों के साथ-साथ आदिवासी कलाकारों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है, जब कार्यक्रम में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इस सम्मेलन के लिए बस्तर जिले के 7 प्रतिष्ठित कवि संस्था पहुंचे हुए हैं. आने वाले दिनों में ऐसे और भी आयोजन किये जाएंगे, ताकि बस्तर के आदिवासी कलाकारों की प्रतिभा निखरकर सामने आ सके और बस्तर की पहचान बनी रहे.

जगदलपुर : बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर (Bastar Academy of Dance Art and Literature) "बादल" संस्था में 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ राज्य गठन दिवस (Chhattisgarh State Formation Day) के मौके पर राज्योत्सव का आयोजन किया गया. इस अवसर पर बस्तर के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस क्रम में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन (Kavi Sammelan in local language) का आयोजन हुआ. यह पहला मौका है जब "बादल" संस्था में स्थानीय बोली पर आधारित कवि सम्मेलन को मंच प्रदान किया गया. दरअसल बस्तर में बोली जाने वाली तीन बोली गोंडी, भतरी, हल्बी की काफी विशेषताएं हैं. इसी बोली पर बस्तर के आदिवासी लेखकों द्वारा कवि सम्मेलन भी किये जाते हैं. आज के इस कार्यक्रम में कवि सम्मेलन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था. इसमें बस्तर जिले के ग्रामीण अंचल से 7 प्रतिष्ठित कवि पहुंचे थे.

राज्योत्सव पर बस्तर में स्थानीय बोली में हुआ कवि सम्मेलन
आदिवासी कला-संस्कृति को बचाने "बादल" की स्थापना

दरअसल बस्तर में आदिवासी परंपरा, कला और संस्कृति को बचाए रखने के लिए "बादल" संस्था की स्थापना की गई है. इस संस्था में विलुप्त होती बस्तर के नृत्य, नाट्य, कला और संस्कृति को फिर से जीवंत करने का काम किया जा रहा है. जहां एक बार फिर से आदिवासी कलाकार व आदिवासी कारीगरों और मूर्तिकारों द्वारा बेहतरीन प्रदर्शन किया जा रहा है. प्रशासन द्वारा इन्हें मंच भी प्रदान किया गया है. आज राज्योत्सव के मौके पर बादल संस्था में प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए. इस कार्यक्रम में बस्तर के आदिवासी कलाकारों द्वारा बस्तर के पारंपरिक नृत्य पर प्रस्तुति दी गई. इस आयोजन की खास बात यह रही कि कार्यक्रम में जिलेभर से आदिवासी कलाकार पहुंचे थे. इनमें बच्चों के साथ ही युवा और वृद्ध भी अपनी प्रस्तुति देने बादल संस्था पहुंचे थे.

स्थानीय बोली में हुआ कवि सम्मेलन का आयोजन

इस कवि सम्मेलन का आयोजन स्थानीय बोली में किया गया, जो आकर्षण का केंद्र रहा. बस्तर के प्रचलित लेखक और कवियों ने कवि सम्मेलन का आयोजन किया. इस दौरान गोंडी, भतरी और हल्बी बोली में कवियों ने प्रस्तुति दी. जिले भर से 7 कवि यहां पहुंचे थे. बस्तर के लेखक, साहित्यकार व कवि लखेश्वर खुदराम ने बताया कि वे पिछले कई सालों से बस्तर पर लोक गीत के साथ-साथ कई किताबें लिख चुके हैं. उन्होंने कहा कि बस्तर के कवियों में इसको लेकर खुशी है कि बादल संस्था के माध्यम से उन्हें मंच मिला है. उन्हें अपनी प्रस्तुति देने का मौका भी मिल रहा है.

मंच नहीं मिलने से विलुप्त हो रही आदिवासी कला

उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासियों में कला साहित्य के क्षेत्र में काफी प्रतिभा छिपी हुई है. इसे निखारने की जरूरत है. ऐसे में मंच नहीं मिलने के चलते लगभग यह कला विलुप्त होने के कगार पर थी. लेकिन आज बस्तर के 7 कवियों को स्थानीय बोली में सम्मेलन करने का मौका दिया जा रहा है. इसको लेकर कवियों में काफी खुशी है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस तरह के आयोजन निरंतर किये जाने चाहिए, ताकि बस्तर के आदिवासी कलाकारों, लेखकों और साहित्यकारों की जो प्रतिभा है वह देश-दुनिया के सामने आ सके. जिससे बस्तर के साथ-साथ यहां के कवियों का भी नाम रोशन हो सके.


राज्योत्सव पर बादल संस्था में लगे स्टॉल

इधर, बस्तर जिले के कलेक्टर रजत बंसल ने कहा कि राज्योत्सव के मौके पर विभिन्न शासकीय विभागों द्वारा अपनी योजनाओं को लेकर बादल संस्था में स्टॉल भी लगाए गए हैं. साथ ही यहां के स्कूली बच्चों के साथ-साथ आदिवासी कलाकारों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है, जब कार्यक्रम में स्थानीय बोली में कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इस सम्मेलन के लिए बस्तर जिले के 7 प्रतिष्ठित कवि संस्था पहुंचे हुए हैं. आने वाले दिनों में ऐसे और भी आयोजन किये जाएंगे, ताकि बस्तर के आदिवासी कलाकारों की प्रतिभा निखरकर सामने आ सके और बस्तर की पहचान बनी रहे.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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