बलौदाबाजार: एक मई 2016 यह वह तारीख थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को उज्ज्वला योजना का तोहफा दिया था. इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले हर परिवार को दो सौ रुपये में एलपीजी गैस किट बांटी गई थी. हमने पड़ताल कर यह पता लगाने की कोशिश की कि, जिले में योजना का क्या हाल है.
लोगों को नहीं मिल रहा फायदा
पीएम ने जब गैस कनेक्शन बांटा था उस दौरान गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को यह उम्मीद जगी थी कि, धुआं से आजादी मिलेगी. लकड़ी और कोयला इकट्ठा करने का टेंशन छू मंतर हो जाएगा. दुखों के दिन लद जाएंगे. अब अच्छे दिन आएंगे. योजना को लागू हुए तीन साल का वक्त हो चुका था, लिहाजा हमने सोचा कि क्यों न पड़ताल कर इस हकीकत का पता लगाया जाए कि आखिर योजना का कितना लाभ असल में लोगों को मिल रहा है.
लोगों के बीच पहुंची ईटीवी भारत की टीम
हमने छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में लोगों के बीच पहुंचकर उज्ज्वला योजना की पड़ताल शुरू की. हमारी टीम इसके लिए लोगों के घर पहुंची... इस दौरान हमारी आंखों के सामने जो भी दिखा, पहली नजर में उस पर भरोसा ही नहीं हुआ. हमने देखा कि यह योजना अंधकार में समा चुकी है. एलपीजी सिलेंडर कोने में पड़ा रीफलिंग का इंतजार कर रहा था और लाभार्थी महिला चूल्हा फूंककर लकड़ी और कंडे की आंच में खाना पका रही थी.
लोगों ने रीफिल नहीं कराया एलपीजी सिलेंडर
अब आप सोच रहे होंगे कि भला सिलेंडर होने के बाद भी ये चूल्हे पर खाना क्यों पका रहे हैं. जिले में योजना के तहत एक लाख 31 हजार 722 परिवारों को एलपीजी कनेक्शन बांटे गए थे, लेकिन इनमें से कुछ ही परिवार ऐसे होंगे, जिन्होंने दूसरी या फिर तीसरी बार सिलेंडर रीफिल कराया होगा.
सिस्टम ने नहीं दिया ध्यान
योजना लॉन्च तो कर दी गई, लेकिन शायद सरकार से लेकर सिस्टम किसी का इस ओर ध्यान नहीं दिया कि जो दिन में बमुश्किल दो सौ से तीन सौ रुपये कमा पाता है, वो भला करीब साढ़े सात सौ रुपये देकर सिलेंडर कैसे भरवाएगा. अगर किसी ने भी इस ओर ध्यान दिया होता, तो शायद इन महिलाओं के साथ-साथ कोने में पड़ा एलपीजी सिलेंडर अपने अच्छे दिन का इंतजार नहीं कर रहा होता.