कांकेर : वैसे तो नेशनल लोक अदालत में तरह-तरह के मामले आते रहते हैं, लेकिन इस बार लोक अदालत में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने न्यायाधीश को इतना भावुक कर दिया कि उन्होंने अपनी जेब से पैसे खर्च कर इस मामले का निपटारा ही कर दिया. सलाम है ऐसे न्यायाधीश को. यदि उच्च पदों पर बैठे लोग जिम्मेदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करें, तो देश से गरीबी कहीं हद तक कम मिट सकती है और गरीबों को सहारा भी मिल सकता है.
बता दें कि जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्ग दम्पति को बैंक से 20 हजार रुपये का लोन नहीं चुका पाने के कारण नोटिस मिला था, लेकिन उसके बाद भी बुजुर्ग दम्पत्ति ने लोन नहीं चुका पाया, तो मामला नेशनल लोक अदालत में जा पहुंचा. अदालत में बुजुर्ग दंपति की हालत देख और उसकी व्यथा सुन न्यायाधीश हेमंत सराफ ने खुद ही अपनी जेब से लोन की शेष राशि चुकता कर दंपति को कर्ज से मुक्त कर दिया.
बैंक ने नोटिस भेजा था
नक्सल प्रभावित आमाबेड़ा के ग्राम कोलरिया निवासी धन्नुराम दुग्गा (80 वर्ष) अपनी पत्नी नथलदेई दुग्गा (70 वर्ष) के साथ बैंक के नोटिस पर जिला न्यायालय में आयोजित नेशनल लोक अदालत में पहुंचे थे. उन्होंने गांव में अपने छोटे से मकान के निर्माण के लिए बैंक से 20 हजार रुपये का कर्ज लिया था, जिसमें छह हजार रुपये की राशि बकाया थी. 6 हजार रुपये का भुगतान न करने पर बैंक द्वारा उन्हें नोटिस भेजा गया था और मामला नेशनल लोक अदालत पहुंच गया.
कार्य करने में सक्षम नहीं
13 जुलाई को जब धन्नूराम व नथलदेई कोर्ट में जिला एवं सत्र न्यायाधीश हेमंत सराफ की खंडपीठ के समक्ष उपस्थित हुए, तो उन्होंने न्यायाधीश को बताया कि अधिक आयु होने के कारण अब वे किसी भी प्रकार का कार्य करने में सक्षम नहीं हैं. उनके पास आय का कोई और जरिया भी नहीं है और न ही उनकी कोई संतान है, जो बैंक की उधारी भुगतान कर सके. नथलदेई ने बताया कि उसे वृद्धावस्था पेंशन मिलती है और राशन से 35 किलो चावल, जिससे उनका गुजारा होता है. धन्नूराम को वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती है.
दंपति की व्यथा सुन भावुक हुए
जिला एवं सत्र न्यायाधीश हेमंत सराफ वृद्ध दंपति की व्यथा सुन भावुक हो गए. उन्होंने बैंक के अधिकारी को आपसी समझौते से खत्म करने के लिए बुलाया, जिस पर बैंक अधिकारी ने बताया कि बैंक के नियम अनुसार कम से आधी राशि भी जमा किये जाने पर ही मामले को राइट ऑफ किया जा सकता है, लेकिन दंपति के पास बैंक को देने के लिए तीन हजार रुपये भी नहीं थे, जिसे देखते हुए न्यायाधीश हेमंत सराफ ने स्वयं ही तीन हजार रुपये बैंक को देकर आपसी समझौते के आधार पर मामले को खत्म करने का निर्देश दिया, जिसके बाद वृद्ध दंपति के पास घर वापस जाने के लिए पैसे नहीं होने पर न्यायाधीश ने उनके घर वापस जाने के लिए भी उन्हें एक हजार रुपए. दंपति ने अपनी कांपती आवाज से जज साहब का शुक्रिया अदाकर अपने गांव लौट गए.
दंपति का नहीं है कोई सहारा
मात्र 6 हजार रुपये के लिए पहली बार न्यायालय की शक्ल देखने वाला बुजुर्ग दम्पति का कोई सहारा नहीं है, जिससे उनका जीवन बड़ी ही मुश्किल से कट रहा है. बुजुर्ग महिला को वृद्धा पेंशन मिलती है जबकि उनके पति को वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलती है. उन्होंने कई बार आवेदन दिया, लेकिन उनकी पेंशन चालू नहीं हो सकी है.