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कृषि बिल को लेकर कांग्रेसियों का वर्चुअल विरोध, ऑनलाइन आकर जनता को दे रहे संदेश

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Published : Sep 26, 2020, 3:08 PM IST

बालोद में कांग्रेस नेता जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता सभी वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से जो बिल लाए गए हैं, वह पूरी तरह किसान विरोधी है.

Virtual protest against agricultural bill in balod
बिल के खिलाफ प्रदर्शन

बालोद : केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि बिल को लेकर देश में विरोध का स्वर देखने को मिल रहा है. बालोद के कांग्रेस नेता जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता सभी वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. संसदीय सचिव कुंवर सिंह निषाद, विधायक संगीता सिन्हा, मंत्री अनिला भेंड़िया और पूर्व विधायक भैया राम सेना, ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चंद्रेश शेरवानी शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बंटी शर्मा सहित कई नेता जनप्रतिनिधि वर्चुअल रैली के माध्यम से इसका विरोध कर रहे हैं.

वर्चुअल रैली के माध्यम से कांग्रेस नेताओं ने एक स्वर में कहा कि यह पहली ऐसी सरकार है, जो किसानों की मदद के लिए इस तरह का बिल ला रही है, जो बिल्कुल ही किसानों के हित में नहीं है. मोदी सरकार की स्थिति बिल को विपक्ष में किसान विरोधी है. विधायक संगीता सिन्हा ने आरोप लगाया है कि यह कानून किसानों के बजाय पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया गया है. मंडियां खत्म होते ही अनाज सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों करोड़ों मजदूर, मुनीम, ट्रांसपोर्ट विक्रेता आदि की रोजी रोटी और आजीविका खत्म हो जाएगी, इससे राज्यों की आय भी खत्म होगी.

किसान विरोधी है बिल
किसान कांग्रेस कमेटी के जिला अध्यक्ष चंद्रेश शेरवानी ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से जो बिल लाए गए हैं वो पूरी तरह किसान विरोधी है. इस बिल के माध्यम से कृषक स्वयं अपने खेतों में मजदूर बनकर रह जाएगा. इसके साथ ही मंडी प्रथा को खत्म करने की कोशिश केंद्र सरकार की ओर से की जा रही है. मंडियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश को सालाना आय अर्जित होती है. एक किसान अपने पास की मंडियों में अपने अनाज को भेजता है, उन किसानों को दिल्ली, मुंबई, गुड़गांव, पानीपत जैसे मंडियों से कोई मतलब नहीं है, उसे अपने नजदीक की मंडी में अनाज बेचना है तो ऐसे बिल का कोई मतलब नहीं है. सरकार किसानों के हितों को ध्यान में रखकर फैसला ले इस बिल को वापस लें.

पढ़ें : SPECIAL : आसान भाषा में जानिए केंद्र सरकार के कृषि संशोधनों पर किसानों की क्या है चिंता


राज्यों से बातचीत तक नहीं

कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बताया कि कृषि बिल को लेकर कांग्रेस आरपार की लड़ाई लड़ सकती है. अभी वर्चुअल ढंग से किसानों के बीच अपनी बात को रख रहे हैं. 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक खाद्य सुरक्षा बिल बनाया था, जिसके तहत व्यापारियों को एक सीमा में खाद्यान्न एकत्रित करने की छूट दी गई थी. लेकिन इस बंदिश को सरकार खत्म करने के मूड में हैं. यदि कोई व्यापारी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न की जमाखोरी करेगा तो फिर वही स्थिति पैदा होगी जैसे बीते दिनों कोरोना संक्रमण काल में पैदा हुई थी. नमक और प्याज, आलू की कमी यह सब एक प्रोजेक्टेड जमाखोरी है. इसी तरह की चीजों को सरकार बढ़ावा देना चाह रही है. कांग्रेस का एक आरोप यह भी है कि किसी के विषय पर राज्य सरकारों की राय लेना महत्वपूर्ण है. इतने बड़े बदलाव के पहले राज्यों से बातचीत तक नहीं की गई है.

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन

पहले व्यापारी फसलों को किसानों से कम दाम पर खरीदकर उसका भंडारण किया करते थे. इसी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 बनाया गया था. जिसके तहत व्यापारियों को कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी. अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 के तहत आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है. इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा काल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा कभी भी स्टॉक की सीमा निर्धारित नहीं की जा सकेगी. इस पर भी किसानों आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि जब किसी वस्तू के भंड़ारण में प्रवधान नहीं होगा, निर्धारण नहीं होगा, तो सप्लाई और डिमांड के वक्त व्यापारी इसकी आपूर्ति रोक देंगे. ऐसे में किसानों के साथ आम लोगों को भी परेशानी होगी.

किसानों ने खोला मोर्चा

किसानों के साथ ही राज्य सरकारों ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. CM भूपेश बघेल ने कानून को केंद्र और राज्य के संबंधों पर हमला बताया था. साथ ही कानून का पूरजोर विरोध करने की बात कही है. वहीं प्रदेश के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसे विपक्ष की राजनीति बताया है. लगातार किसानों का विरोध बढ़ रहा है. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य सरकारें भी विरोध कर रहीं हैं. ऐसे में देखना ये होगा कि केंद्र सरकार इससे कैसे निपटती है. क्या किसानों को खुश कर पाने में कामयाब होती है.

बालोद : केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि बिल को लेकर देश में विरोध का स्वर देखने को मिल रहा है. बालोद के कांग्रेस नेता जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता सभी वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. संसदीय सचिव कुंवर सिंह निषाद, विधायक संगीता सिन्हा, मंत्री अनिला भेंड़िया और पूर्व विधायक भैया राम सेना, ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चंद्रेश शेरवानी शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बंटी शर्मा सहित कई नेता जनप्रतिनिधि वर्चुअल रैली के माध्यम से इसका विरोध कर रहे हैं.

वर्चुअल रैली के माध्यम से कांग्रेस नेताओं ने एक स्वर में कहा कि यह पहली ऐसी सरकार है, जो किसानों की मदद के लिए इस तरह का बिल ला रही है, जो बिल्कुल ही किसानों के हित में नहीं है. मोदी सरकार की स्थिति बिल को विपक्ष में किसान विरोधी है. विधायक संगीता सिन्हा ने आरोप लगाया है कि यह कानून किसानों के बजाय पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया गया है. मंडियां खत्म होते ही अनाज सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों करोड़ों मजदूर, मुनीम, ट्रांसपोर्ट विक्रेता आदि की रोजी रोटी और आजीविका खत्म हो जाएगी, इससे राज्यों की आय भी खत्म होगी.

किसान विरोधी है बिल
किसान कांग्रेस कमेटी के जिला अध्यक्ष चंद्रेश शेरवानी ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से जो बिल लाए गए हैं वो पूरी तरह किसान विरोधी है. इस बिल के माध्यम से कृषक स्वयं अपने खेतों में मजदूर बनकर रह जाएगा. इसके साथ ही मंडी प्रथा को खत्म करने की कोशिश केंद्र सरकार की ओर से की जा रही है. मंडियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश को सालाना आय अर्जित होती है. एक किसान अपने पास की मंडियों में अपने अनाज को भेजता है, उन किसानों को दिल्ली, मुंबई, गुड़गांव, पानीपत जैसे मंडियों से कोई मतलब नहीं है, उसे अपने नजदीक की मंडी में अनाज बेचना है तो ऐसे बिल का कोई मतलब नहीं है. सरकार किसानों के हितों को ध्यान में रखकर फैसला ले इस बिल को वापस लें.

पढ़ें : SPECIAL : आसान भाषा में जानिए केंद्र सरकार के कृषि संशोधनों पर किसानों की क्या है चिंता


राज्यों से बातचीत तक नहीं

कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बताया कि कृषि बिल को लेकर कांग्रेस आरपार की लड़ाई लड़ सकती है. अभी वर्चुअल ढंग से किसानों के बीच अपनी बात को रख रहे हैं. 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक खाद्य सुरक्षा बिल बनाया था, जिसके तहत व्यापारियों को एक सीमा में खाद्यान्न एकत्रित करने की छूट दी गई थी. लेकिन इस बंदिश को सरकार खत्म करने के मूड में हैं. यदि कोई व्यापारी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न की जमाखोरी करेगा तो फिर वही स्थिति पैदा होगी जैसे बीते दिनों कोरोना संक्रमण काल में पैदा हुई थी. नमक और प्याज, आलू की कमी यह सब एक प्रोजेक्टेड जमाखोरी है. इसी तरह की चीजों को सरकार बढ़ावा देना चाह रही है. कांग्रेस का एक आरोप यह भी है कि किसी के विषय पर राज्य सरकारों की राय लेना महत्वपूर्ण है. इतने बड़े बदलाव के पहले राज्यों से बातचीत तक नहीं की गई है.

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन

पहले व्यापारी फसलों को किसानों से कम दाम पर खरीदकर उसका भंडारण किया करते थे. इसी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 बनाया गया था. जिसके तहत व्यापारियों को कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी. अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 के तहत आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है. इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा काल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा कभी भी स्टॉक की सीमा निर्धारित नहीं की जा सकेगी. इस पर भी किसानों आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि जब किसी वस्तू के भंड़ारण में प्रवधान नहीं होगा, निर्धारण नहीं होगा, तो सप्लाई और डिमांड के वक्त व्यापारी इसकी आपूर्ति रोक देंगे. ऐसे में किसानों के साथ आम लोगों को भी परेशानी होगी.

किसानों ने खोला मोर्चा

किसानों के साथ ही राज्य सरकारों ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. CM भूपेश बघेल ने कानून को केंद्र और राज्य के संबंधों पर हमला बताया था. साथ ही कानून का पूरजोर विरोध करने की बात कही है. वहीं प्रदेश के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने इसे विपक्ष की राजनीति बताया है. लगातार किसानों का विरोध बढ़ रहा है. छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य सरकारें भी विरोध कर रहीं हैं. ऐसे में देखना ये होगा कि केंद्र सरकार इससे कैसे निपटती है. क्या किसानों को खुश कर पाने में कामयाब होती है.

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