बालोद: जिले की पहचान उसकी ऐतिहासिक धरोहर या विरासत से होती है. वैसे ही बालोद जिला भी अपनी विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए प्रसिद्ध माना जाता है. जिले में वैदिक काल से लेकर ब्रिटिश जमाने के निर्मित कई पुल-पुलिया, मंदिर, स्मारक, किला और धार्मिक स्थल मौजूद है. जहां मुगलकाल से लेकर राजपूत काल, ब्रिटिश काल और आजादी तक के हर एक ऐतिहासिक कड़ियों का प्रमाण है. इनमें से एक हैं बहादुर कलारीन की माची, जो बालोद से पुरूर मार्ग पर लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सोरर चिरचारी गांव में स्थित है. वास्तव में यह प्रस्तर स्तम्भों पर आधारित मंडप है.
प्रचलित गाथा के मुताबिक एक हैहयवंशी राजा शिकार खेलने के लिए यहां पर आए थे. जहां वे बहादुर कलारिन नामक युवती से मिले और उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर उसके साथ गंधर्व विवाह कर लिया. इसके बाद वह गर्भवती हो गई और उसने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम कछान्या रख दिया. युवा होने पर उसने अपनी मां से अपने पिता का नाम पूछा और मां के द्वारा नाम बताए जाने पर वह सभी राजाओं से नफरत करने लगा. इसके बाद उसने एक सैन्यदल गठित किया और उसने समीपस्थ अन्य राजाओं को हराकर उनकी कन्याओं को बंदी बनाकर अपने घर ले आया.
यह है मान्यता
गाथा के मुताबिक कछान्या ने बंदिनी राजकुमारियों को अन्न कूटने और पीसने के काम में लगा दिया. इसके बाद बहादुर कलारिन ने अपने बेटे को उनमें से किसी एक कन्या से शादी करके अन्य सभी राजकुमारियों को छोड़ देने को कहा, लेकिन उसने अपनी मां की बात नहीं मानी, जिसके बाद बहादुर कलारिन ने खाने में जहर मिलाकर अपने बेटे को मार डाला और खुद कुंए में कूदकर अपनी जान दे दी.
नारी सम्मान के लिए की थी बेटे की हत्या
नारी सम्मान और त्याग के इस वक्त की याद में इस मंदिरावशेष मंडप को बहादुर कलारिन की माची कहा जाता है. मां बहादुर कलारिन सिन्हा समाज की आराध्य देवी है. छत्तीसगढ़ में बहादुर कलारिन की गाथा-शौर्य और साहस का पाठ पढ़ाती है. आज विभिन्न मंचों के माध्यम से इस वीरांगना के साहस और त्याग की अभिव्यक्ति भी जनमानस में होने लगी है.
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यह गाथा बालोद जिले के गुरूर से दूर पश्चिम में स्थित सोरर गांव की है, जिसका प्राचीन नाम सरहगढ़ था. इसका एक नाम बुजुर्गों के मुताबिक सोरढ़ भी है. यहां मिले शिलालेख, प्राचीन मंदिर और अन्य अवशेष बरबस कलचुरी शासन की याद ताजा करते हैं. उपलब्ध अवशेषों से पता चलता है कि बहादुर कलारिन की स्मृतियां सोरर सरहरगढ़ के साथ जुड़ी हुई हैं.