बालोद: बालोद में इस बार बागी प्रत्याशी बीजेपी और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ सकते हैं. कांग्नेस पार्टी से बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरी मीना साहू अपने प्रचार के दौरान खुद को कभी साहू समाज का नेता बता रहीं हैं तो कभी खुद को सर्व समाज का हितैषी होने का दावा कर रही हैं. संजारी बालोद का वोटर अब इस पसोपेश में पड़ गया है कि वो मीना साहू को साहू समाज से समझे या फिर सर्व समाज का प्रत्याशी, क्योंकि साहू समाज का वोट कई धड़ों में बंटेगा तो जाति की एकजुटता खत्म हो जाएगी
बागी बिगाड़ेंगे संजारी बालोद में खेल: संजारी बालोद विधानसभा सीट पर इस इस बार कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से नहीं बल्कि निर्दलीय महिला प्रत्याशी से भी होने जा रही है. इस इस सीट से कांग्रेस की बागी महिला प्रत्याशी मीना साहू बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी चुनौती साबित होने जा रही हैं. अपने चुनावी बैनरों और पोस्टरों में कभी वो खुद को साहू समाज का प्रत्याशी बता रही हैं, तो कभी खुद को सर्व समाज का हितैषी.संजारी बालोद विधानसभा सीट साहू बहुल सीट मानी जाती है. लिहाजा कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरी मीना साहू सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचा सकती हैं. तो वहीं बीजेपी के जो साहू वोटर हैं उनका भी झुकाव मीना साहू की ओर हो सकता है. ऐसे में न सिर्फ कांग्रेस बल्कि बीजेपी की लुटिया भी चुनावी मैदान में मीना साहू डुबा सकती हैं.
मीना साहू की ताल, बीजेपी कांग्रेस बेहाल: बालोद से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सियासी मैदान में ताल ठोक रहीं मीना साहू पहले कांग्रेस पार्टी से ही जुड़ी थीं. कांग्रेस पार्टी ने उनको दो बार जिला पंचायत का सदस्य बनाया और सभापति के पद तक भी पहुंचाया. मीना साहू को पार्टी से उम्मीद थी कि पार्टी उनको इस बार संजारी बालोद से टिकट देगी. लेकिन पार्टी ने मीना साहू को उम्मीदवार नहीं बनाया जिसके बाद मीना साहू बागी हो गईं और निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया. संजारी बालोद सीट पर साहू समाज के लोगों का दबदबा है लिहाजा बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नाकों में मीना साहू ने मैदान में ताल ठोकर दम कर दिया है. तो वहीं साहू समाज भी इस बार किसे वोट करे इसको लेकर परेशान है. एक तरफ जहां मीना साहू खुद को साहू समाज का पैरोकार बता रही हैं तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस भी खुद को साहू समाज से जोड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है.
मैदान से नहीं हटेंगी मीना: जिले के वरिष्ठ पत्रकार रमन टुवानी भी ये मानते हैं मीना साहू के बागी होकर मैदान में उतरने से सियासी समीकरण तो बदलेगा ही साथ ही जाति की राजनीति करने वालों को भी इस बार जनता वोटों के जरिए जवाद देगी. इधर कांग्रेस की ओर से मीना साहू को मनाने की काफी कोशिश की गई, लेकिन कांग्रेस कामयाब नहीं हो पाई. मीना साहू के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भी मैदान में डटे हैं. जिसका सीधा नुकसान कांग्रेस को फिलहाल होता दिख रहा है. वहीं कांग्रेस अब मीना साहू को पार्टी से बगावत करने पर नोटिस देने की तैयारी में है.
साहू समाज किसके साथ: ऐसा नहीं है कि अकेले साहू समाज से मीना साहू ही मैदान में है. कई और साहू समाज के प्रत्याशी इस बार मैदान में हैं जैसे कमलकांत साहू, चोवेंद्र साहू, भगवती साहू जो चुनावी मैदान में खड़े हैं. सियासी जानकारों का कहना है कि साहू समाज से कई प्रत्याशियों के मैदान में उतरने से मुकाबला तो रोचक जरुर हो गया, लेकिन साहू समाज का वोट हो सकता है इस बार अलग अलग धड़ों में बंट जाए, साहू समाज का वोटर वोट देेने के दौरान भ्रमित हो जाए.
सियासत के मैदान में न तो कोई स्थायी दोस्त है और न कोई दुश्मन. कांग्रेस पार्टी से राजनीति की शुरुआत करने वाली मीना साहू आज कांग्रेस के खिलाफ जिस तरह से खड़ी हुईं है. उससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. कांग्रेस को बीजेपी से तो चुनौती मिल ही रही थी अब मीना साहू ने इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय कर कांग्रेस को जरूर मुश्किल में डाल दिया है