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छत्तीसगढ़ के बालोद में 3 गांवों में सदियों से नहीं जलाई जाती होलिका, कारण जानकर रह जाएंगे हैरान

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Published : Mar 17, 2022, 5:11 PM IST

Updated : Mar 17, 2022, 5:50 PM IST

बालोद जिले के तीन गांव, झलमल-सोहपुर और चंदनबिरही में सदियों से होलिका दहन नहीं की जाती है. इसके पीछे की अनोखी कहानी जानने के लिए पढ़िये पूरी खबर...

Holika is not lit
नहीं जलायी जाती होलिका

बालोद : होली से पहले होलिका दहन की परंपरा पूरे देश में सदियों से प्रचलित है. लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के 3 गांव में दशकों से होलिका नहीं जलाई जाती. हां, त्योहार के दिन ग्रामीण सूखी होली खेलकर एक-दूसरे को बधाई जरूर देते हैं.

तीन गांवों में होलिका नहीं जलाने के पीछे की यह है कहानी...

बालोद जिला मुख्यालय से सटे ग्राम झलमला का छत्तीसगढ़ में एक अलग ही महत्व है. यहां मां गंगा निवास करती हैं. गांव में वर्षों से होलिका नहीं जलाई जाती. इसके पीछे ग्रामीणों का तर्क है कि अगर होलिका दहन की जाती है तो गांव में कुछ-न-कुछ अनहोनी हो जाती है. काफी नुकसान झेलना पड़ता है. इसलिए दशकों से यहां होलिका नहीं जलाई जाती.

बाललोद में 3 गांवों में सदियों से नहीं जलाई जाती होलिका

होलिका जलाते बरसने लगते थे आग के गोले...गुरूर विकासखंड के सोहपुर गांव में भी बीते 150 सालों से होलिका दहन नहीं किया गया है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि सालों पहले जब भी होलिका दहन किया जाता था तो गांव में आग के गोले बरसने लगते थे. किसी-न-किसी के घर आगजनी की घटना होती थी. ऐसे में गांव के बुजुर्गों ने गांव में होलिका दहन की परंपरा समाप्त करने का फैसला लिया. तब से लेकर आज तक सोहपुर में होलिका नहीं जलाई गई.

हैजे के कारण मरने लगे थे बच्चे...गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम चंदनबिरही में भी 9 दशकों से होलिका नहीं जली है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में हैजा के कारण यहां होलिका नहीं जलाई जाती. सालों पहले हैजे के कारण गांव में बच्चे मर रहे थे. ग्रामीणों के मुताबिक बात साल 1925 से पहले की है. यहां की महिलाओं को गर्भवती होने पर बाहर भेजने लगे. जब वे वापस आती थीं तो फिर से बच्चे मरने लगते थे. तब चंदनबिरही के जमींदार और राजा निहाल सिंह ने गांव में होली खेलना और होलिका जलाना बंद करा दिया. इसके बाद सबकुछ ठीक हो गया, तभी से यह परंपरा यहां निभाई जा रही है.

यह भी पढ़ें: होलिका दहन में जलाया जाता है क्रोध, लोभ, पाप... असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है होली

ज्योतिषाचार्य के कहने पर स्थापित हुई भगवान हनुमान की प्रतिमा...

सोहपुर के बुजुर्ग पटेल तुका राम सोरी कहते हैं कि आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले गांव में होलिका जलाते ही गांव में आग लग जाती थी. इससे गांव के लोग परेशान थे. जब गांववाले इस परेशानी को लेकर ज्योतिषाचार्य से मिले तो उन्होंने गांव में भगवान हनुमान की मूर्ति स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने का निर्देश दिया. तभी से गांव में होलिका नहीं जलाई जाती.

झलमला में 110 सालों से चली आ रही परंपरा

बालोद जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग ग्राम झलमला गंगा मैया स्थल के कारण पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है. यहां के ग्रामीण पालक ठाकुर का कहना है कि यहां होलिका दहन नहीं होता. हां, त्योहार के दूसरे दिन लोग सूखी होली खेलते हैं. यह परंपरा 110 वर्षों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है. उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि होलिका दहन करने से गांव में कुछ बुरा हो जाएगा.

बालोद : होली से पहले होलिका दहन की परंपरा पूरे देश में सदियों से प्रचलित है. लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के 3 गांव में दशकों से होलिका नहीं जलाई जाती. हां, त्योहार के दिन ग्रामीण सूखी होली खेलकर एक-दूसरे को बधाई जरूर देते हैं.

तीन गांवों में होलिका नहीं जलाने के पीछे की यह है कहानी...

बालोद जिला मुख्यालय से सटे ग्राम झलमला का छत्तीसगढ़ में एक अलग ही महत्व है. यहां मां गंगा निवास करती हैं. गांव में वर्षों से होलिका नहीं जलाई जाती. इसके पीछे ग्रामीणों का तर्क है कि अगर होलिका दहन की जाती है तो गांव में कुछ-न-कुछ अनहोनी हो जाती है. काफी नुकसान झेलना पड़ता है. इसलिए दशकों से यहां होलिका नहीं जलाई जाती.

बाललोद में 3 गांवों में सदियों से नहीं जलाई जाती होलिका

होलिका जलाते बरसने लगते थे आग के गोले...गुरूर विकासखंड के सोहपुर गांव में भी बीते 150 सालों से होलिका दहन नहीं किया गया है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि सालों पहले जब भी होलिका दहन किया जाता था तो गांव में आग के गोले बरसने लगते थे. किसी-न-किसी के घर आगजनी की घटना होती थी. ऐसे में गांव के बुजुर्गों ने गांव में होलिका दहन की परंपरा समाप्त करने का फैसला लिया. तब से लेकर आज तक सोहपुर में होलिका नहीं जलाई गई.

हैजे के कारण मरने लगे थे बच्चे...गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम चंदनबिरही में भी 9 दशकों से होलिका नहीं जली है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में हैजा के कारण यहां होलिका नहीं जलाई जाती. सालों पहले हैजे के कारण गांव में बच्चे मर रहे थे. ग्रामीणों के मुताबिक बात साल 1925 से पहले की है. यहां की महिलाओं को गर्भवती होने पर बाहर भेजने लगे. जब वे वापस आती थीं तो फिर से बच्चे मरने लगते थे. तब चंदनबिरही के जमींदार और राजा निहाल सिंह ने गांव में होली खेलना और होलिका जलाना बंद करा दिया. इसके बाद सबकुछ ठीक हो गया, तभी से यह परंपरा यहां निभाई जा रही है.

यह भी पढ़ें: होलिका दहन में जलाया जाता है क्रोध, लोभ, पाप... असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है होली

ज्योतिषाचार्य के कहने पर स्थापित हुई भगवान हनुमान की प्रतिमा...

सोहपुर के बुजुर्ग पटेल तुका राम सोरी कहते हैं कि आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले गांव में होलिका जलाते ही गांव में आग लग जाती थी. इससे गांव के लोग परेशान थे. जब गांववाले इस परेशानी को लेकर ज्योतिषाचार्य से मिले तो उन्होंने गांव में भगवान हनुमान की मूर्ति स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने का निर्देश दिया. तभी से गांव में होलिका नहीं जलाई जाती.

झलमला में 110 सालों से चली आ रही परंपरा

बालोद जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग ग्राम झलमला गंगा मैया स्थल के कारण पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है. यहां के ग्रामीण पालक ठाकुर का कहना है कि यहां होलिका दहन नहीं होता. हां, त्योहार के दूसरे दिन लोग सूखी होली खेलते हैं. यह परंपरा 110 वर्षों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है. उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि होलिका दहन करने से गांव में कुछ बुरा हो जाएगा.

Last Updated : Mar 17, 2022, 5:50 PM IST
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