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आजादी के इन नायकों को भूली सरकार, नारागांव में दब कर रह गई अंग्रेजों के खिलाफ नारा लगाने वालों की पहचान

देश की आजादी में बालोद जिले के ग्राम नारागांव से 4 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए थे. जो कि आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए थे. कहते हैं कि इस गांव का ग्राम नारागांव इसलिए पड़ा क्योंकि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नारा लगाने में माहिर थे. इनका नाम पीताम्बर मंडावी, सुकालू राम करियाम, सरजुराम मंडावी, बिसाहू राम गावड़े था. ये रायपुर में रहकर पंडित शर्मा के साथ भी कई आंदोलनो में शामिल हुए.

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Published : Aug 23, 2019, 11:07 PM IST

आजादी के इन नायकों को भूली सरकार

बालोद: जिन्होंने भारत को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. सत्याग्रह किए, आंदोलनों का हिस्सा बने और अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहूति दे दी, जिन्हें देश और समाज कभी नहीं भूल सकता ऐसे वीर सपूतों को सरकार ने बिसरा दिया है. उनका परिवार आज भी उचित मान-सम्मान को तरस रहा है. सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है.

आजादी के इन नायकों को भूली सरकार

जिले के जिन चार आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण गांव का नाम नारागांव पड़ा, उनके परिवार अब शासन की उपेक्षा का शिकार हैं. स्वतंत्रता दिवस पर भी शासन-प्रशासन ने उन्हें याद नहीं किया गया.

शासन-प्रशासन की ओर से नहीं की गई है कोई पहल

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकालू राम करियाम के पुत्र लेख सिंह ठाकुर ने बताया कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने के लिए हम सब के द्वारा छोटे-छोटे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन से अब तक किसी तरह की कोई पहल नहीं की गई है. यहां साल में एक बार शहीद दिवस भी मनाया जाता है जहां हमारे पूर्वजों को याद किया जाता है.

पेंशन नहीं दिया गया

लेख कहते हैं कि हमारे पूर्वज वन सत्याग्रह, जल सत्याग्रह सहित विभिन्न आंदोलनों में शामिल हुए. बड़ा दुख होता है कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियां भी प्रशासन की नजर में नहीं आती है. आज तक हमें न पेंशन दिया गया न ही कोई विशेष सम्मान मिला है.

15 अगस्त या 26 जनवरी को सरकार कार्यक्रमों में आने का न्योता देगी

लेख निराश होकर कहते हैं कि हमें उम्मीद रहती है कि 15 अगस्त या 26 जनवरी को सरकार हमें कार्यक्रमों में आने का न्योता देगी, लेकिन ऐसा नहीं होता. 2015 में एक बार बुलाया गया था जिसके बाद से हमें अब तक नहीं बुलाया गया है.

आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए

देश की आजादी में बालोद जिले के ग्राम नारागांव से 4 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए थे. जो कि आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए थे. कहते हैं कि इस गांव का ग्राम नारागांव इसलिए पड़ा क्योंकि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नारा लगाने में माहिर थे. इनका नाम पीताम्बर मंडावी, सुकालू राम करियाम, सरजुराम मंडावी, बिसाहू राम गावड़े था. ये रायपुर में रहकर पंडित शर्मा के साथ भी कई आंदोलनो में शामिल हुए.

सुंदरीकरण व स्वतंत्रता आंदोलन प्रतीक का निर्माण कार्य प्रस्तावित है

1930 से अब तक सेनानियों व उनके परिवार की किसी ने सुध नहीं ली. इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की स्मृति को बनाए रखने के लिए उनकी समाधि स्थल का सुंदरीकरण व स्वतंत्रता आंदोलन प्रतीक का निर्माण कार्य प्रस्तावित है. इसके लिए सरकार ने सहमति दी है. इस ओर न ही पंचायत ने ध्यान दिया है न ही सरकार का कोई ध्यान है.

बालोद: जिन्होंने भारत को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. सत्याग्रह किए, आंदोलनों का हिस्सा बने और अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहूति दे दी, जिन्हें देश और समाज कभी नहीं भूल सकता ऐसे वीर सपूतों को सरकार ने बिसरा दिया है. उनका परिवार आज भी उचित मान-सम्मान को तरस रहा है. सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है.

आजादी के इन नायकों को भूली सरकार

जिले के जिन चार आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण गांव का नाम नारागांव पड़ा, उनके परिवार अब शासन की उपेक्षा का शिकार हैं. स्वतंत्रता दिवस पर भी शासन-प्रशासन ने उन्हें याद नहीं किया गया.

शासन-प्रशासन की ओर से नहीं की गई है कोई पहल

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकालू राम करियाम के पुत्र लेख सिंह ठाकुर ने बताया कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने के लिए हम सब के द्वारा छोटे-छोटे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन से अब तक किसी तरह की कोई पहल नहीं की गई है. यहां साल में एक बार शहीद दिवस भी मनाया जाता है जहां हमारे पूर्वजों को याद किया जाता है.

पेंशन नहीं दिया गया

लेख कहते हैं कि हमारे पूर्वज वन सत्याग्रह, जल सत्याग्रह सहित विभिन्न आंदोलनों में शामिल हुए. बड़ा दुख होता है कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियां भी प्रशासन की नजर में नहीं आती है. आज तक हमें न पेंशन दिया गया न ही कोई विशेष सम्मान मिला है.

15 अगस्त या 26 जनवरी को सरकार कार्यक्रमों में आने का न्योता देगी

लेख निराश होकर कहते हैं कि हमें उम्मीद रहती है कि 15 अगस्त या 26 जनवरी को सरकार हमें कार्यक्रमों में आने का न्योता देगी, लेकिन ऐसा नहीं होता. 2015 में एक बार बुलाया गया था जिसके बाद से हमें अब तक नहीं बुलाया गया है.

आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए

देश की आजादी में बालोद जिले के ग्राम नारागांव से 4 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए थे. जो कि आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए थे. कहते हैं कि इस गांव का ग्राम नारागांव इसलिए पड़ा क्योंकि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नारा लगाने में माहिर थे. इनका नाम पीताम्बर मंडावी, सुकालू राम करियाम, सरजुराम मंडावी, बिसाहू राम गावड़े था. ये रायपुर में रहकर पंडित शर्मा के साथ भी कई आंदोलनो में शामिल हुए.

सुंदरीकरण व स्वतंत्रता आंदोलन प्रतीक का निर्माण कार्य प्रस्तावित है

1930 से अब तक सेनानियों व उनके परिवार की किसी ने सुध नहीं ली. इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की स्मृति को बनाए रखने के लिए उनकी समाधि स्थल का सुंदरीकरण व स्वतंत्रता आंदोलन प्रतीक का निर्माण कार्य प्रस्तावित है. इसके लिए सरकार ने सहमति दी है. इस ओर न ही पंचायत ने ध्यान दिया है न ही सरकार का कोई ध्यान है.

Intro:बालोद।

बालोद जिले के जिन चार आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण गांव का नाम की गौरव ग्राम पड़ा नारागांव पड़ा वहां के उनके परिवार अब शासन की उपेक्षा का शिकार है उनके परिवारों को उम्मीद थी कि इस स्वतंत्रता दिवस को कम से कम प्रशासन उन्हें याद करेगी परंतु परिवार ने बताया कि वर्ष 2015 में एक बार उन्हें स्टेडियम में सम्मान के लिए बुलाया गया था उसके बाद से ना उन्हें प्रशासन याद करती है और ना ही उनके पूर्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रही है।


Body:वीओ - स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र लेख सिंह ठाकुर ने बताया कि इनके स्मृतियों को सहेजने के लिए हम सब के द्वारा छोटे-छोटे प्रयास किए जा रहे हैं परंतु शासन प्रशासन से अब तक किसी तरह की कोई पहल नहीं की गई है यहां पर एक बार शहीद दिवस भी मनाया जाता है जहां हमारे पूर्वजों को याद किया जाता है हमारे पूर्वज वन सत्याग्रह जल सत्याग्रह सहित विभिन्न आंदोलनों में शामिल हुए आज हमें काफी दुख होता है कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियां भी प्रशासन की नजर में नहीं आती है साथ ही नहीं उनके नाम से आज तक किसी तरह की कोई पेंशन या फिर कोई बड़ा सम्मान नहीं मिला है जिससे हमें गर्व हो कि हमारे पूर्वजों ने हमारे देश के लिए इतना किया जिसका परिणाम आज हमें मिल रहा है।

वीओ - परिजन लेखसिंह ठाकुर ने बताया कि उम्मीद रहती है कि 15 अगस्त या 26 जनवरी को बुलाएंगे परंतु बड़े दुख की बात है कि इस बार भी हमें याद नहीं किया गया वर्ष 2015 में एक बार बुलाया गया था जिसके बाद से हमें अब तक नहीं बुलाया गया है।

देश की आजादी में बालोद जिले के ग्राम नारागाव से 4 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए थे जो कि आजादी के पूर्व विभिन्न सत्याग्रहों में शामिल हुए थे कहते हैं कि इस गांव का ग्राम नारागांव इसलिए पड़ा क्योंकि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नारा लगाने में माहिर थे इनका नाम पीताम्बर मंडावी, सुकालू राम करियाम, सरजुराम मंडावी, बिसाहू राम गावड़े था ये रायपुर में रहकर पंडित शर्मा के साथ भी कई आँदोलनो में शामिल हुए और अंग्रेजो की यातनाये भी सही जेल भी गए।




Conclusion:इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सराहना आज भी उनके गांव वाले करते हैं 1930 से अब तक सेनानियों व उनके परिवार की ही तुम्हें किसी ने सुध नहीं ली जबकि चार आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की स्मृति को बनाए रखने के लिए उनकी समाधि स्थल का परकोटा सुंदरीकरण व स्वतंत्रता आंदोलन प्रतीक का निर्माण कार्य प्रस्तावित है इसके लिए शासन ने सहमति दी है बावजूद इसके अब तक नहीं पंचायत में ध्यान दिया है और ना ही शासन प्रशासन ने
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