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जिला हॉस्पिटल में डॉक्टर्स की कमी, मरीज निजी अस्पताल में जाने को मजबूर - रेडियोलॉजिस्ट

बालोद जिला चिकित्सालय डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहा है. इस कारण मरीजों को निजी अस्पताल का सहारा लेना पड़ रहा है.

बालोद जिला चिकित्सालय
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Published : Jul 12, 2019, 6:01 PM IST

बालोद : इन दिनों जिला चिकित्सालय में मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. हॉस्पिटल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत तो हैं, लेकिन अब तक नियुक्ति नहीं हुई है. साथ ही यहां रेडियोलॉजिस्ट भी नहीं है. इसके कारण लोगों को निजी चिकित्सालयों की ओर रुख करना पड़ रहा है.

बालोद जिला चिकित्सालय में विगत कई दिनों से सोनोग्राफी रुम बंद है. इसका एकमात्र कारण यह है कि यहां पर सोनोग्राफी करने वाले रेडियोलॉजिस्ट रिटायर्ड हो गए हैं. इसके कारण नए डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है, जिसके कारण यहां के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. न चाहते हुए भी लोगों को मजबूरन में निजी चिकित्सालयों की ओर रूख करना पड़ रहा है.

बिल्डिंग तो है, लेकिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं
बता दें कि इस हॉस्पिटल में बिल्डिंग तो है, लेकिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं. यहां जरूरत के मुताबिक जिला चिकित्सालय के लिए 18 डॉक्टर स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर ही पोस्टेड हैं. इस हॉस्पिटल में रेडियोलॉजिस्ट यानी मनोरोग और हड्डी की बीमारी से परेशान मरीज को अन्य हॉस्पिटलों में रिफर किया जाता है.

18 स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत
सिविल सर्जन डॉक्टर श्रीमाली ने बताया कि यहां पर 18 स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 6 डॉक्टर ही यहां पोस्टेड हैं. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों की स्थिति क्या होगी. बड़ी समस्या होने पर जिले की जनता को दुर्ग-भिलाई, रायपुर जैसे महानगरों का सहारा लेना पड़ रहा है.

बालोद : इन दिनों जिला चिकित्सालय में मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. हॉस्पिटल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत तो हैं, लेकिन अब तक नियुक्ति नहीं हुई है. साथ ही यहां रेडियोलॉजिस्ट भी नहीं है. इसके कारण लोगों को निजी चिकित्सालयों की ओर रुख करना पड़ रहा है.

बालोद जिला चिकित्सालय में विगत कई दिनों से सोनोग्राफी रुम बंद है. इसका एकमात्र कारण यह है कि यहां पर सोनोग्राफी करने वाले रेडियोलॉजिस्ट रिटायर्ड हो गए हैं. इसके कारण नए डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है, जिसके कारण यहां के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. न चाहते हुए भी लोगों को मजबूरन में निजी चिकित्सालयों की ओर रूख करना पड़ रहा है.

बिल्डिंग तो है, लेकिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं
बता दें कि इस हॉस्पिटल में बिल्डिंग तो है, लेकिन स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं. यहां जरूरत के मुताबिक जिला चिकित्सालय के लिए 18 डॉक्टर स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 6 डॉक्टर ही पोस्टेड हैं. इस हॉस्पिटल में रेडियोलॉजिस्ट यानी मनोरोग और हड्डी की बीमारी से परेशान मरीज को अन्य हॉस्पिटलों में रिफर किया जाता है.

18 स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत
सिविल सर्जन डॉक्टर श्रीमाली ने बताया कि यहां पर 18 स्पेशलिस्ट डॉक्टर स्वीकृत हैं, लेकिन केवल 6 डॉक्टर ही यहां पोस्टेड हैं. इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों की स्थिति क्या होगी. बड़ी समस्या होने पर जिले की जनता को दुर्ग-भिलाई, रायपुर जैसे महानगरों का सहारा लेना पड़ रहा है.

Intro:बालोद। बालोद जिले के जिला चिकित्सालय में इन दिनों मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद स्वीकृत तो है परंतु डॉक्टर नियुक्त नहीं और तो और रेडियोलॉजिस्ट भी नहीं है जिसके कारण लोगों को निजी चिकित्सालयों की ओर रुख करना पड़ रहा है।


Body:बालोद जिला चिकित्सालय में विगत कई दिनों से सोनोग्राफी तक्ष बंद है इसका एकमात्र कारण यह है कि यहां पर सोनोग्राफी करने वाले रेडियोलॉजिस्ट रिटायर्ड हो गए हैं जिसके चलते और नए डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है जिसके कारण यहां मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है लोगों को निजी चिकित्सालयों की और सोनोग्राफी के लिए रुख करना पड़ रहा है और तो और अस्पताल में बिल्डिंग तो है परंतु स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं। 15 स्वीकृत और 12 डॉक्टर जिला चिकित्सालय के लिए 15 डॉक्टरों का पद स्वीकृत है परंतु 12 डॉक्टर पोस्टेड हैं जिसके कारण डॉक्टरों की कमी तो है यहां पर रेडियोलॉजिस्ट मनोरोग इसके अलावा हड्डी आधारित किसी तरह का कोई इलाज नहीं किया जाता है डॉक्टर की कमी के कारण यह अस्पताल रिफर सेंटर बना हुआ है। स्पेशलिस्ट नही महानगरों का सहारा डॉक्टर सिविल सर्जन श्रीमाली ने बताया कि यहां पर अट्ठारह स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की स्वीकृति है परंतु केवल 6 डॉक्टर यहां पोस्टेड हैं इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीजों की स्थिति क्या होगी अभी तक किसी बड़ी समस्या होने पर जिले की जनता को दुर्ग भिलाई रायपुर जैसे महानगरों का सहारा लेना पड़ता है


Conclusion:चिकित्सालय भवन तो है परंतु ना डॉक्टर हैं नहीं संसाधन लोगों को मजबूरी बस निजी चिकित्सालयों का सहारा लेना पड़ता है समस्या तो तब होती है जब एक गरीब व्यक्ति को निजी अस्पताल के चक्कर में समस्या होती है और उसे आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है
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