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बड़े कमाल की है ये खेती, दवाई भी बनाती है और कमाई भी कराती है

धान, गेहूं और दूसरे पारंपरिक फसलों को किसान उगाते ही हैं लेकिन ग्राम हीरापुर के किसानों ने कृषि का एक अलग नमूना निकाला है. विगत 20 सालों से यहां के किसान कमल कंद जिसे छत्तीसगढ़ में ढेंस के नाम से जाना जाता है, उसकी खेती कर रहे हैं.

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Published : Jul 17, 2019, 10:06 PM IST

कमल कंद की खेती करने में ज्यादा लागत की जरूरत नहीं

बालोदः जिले के हीरापुर के तालाब सहित कई खेतों में किसान कमल कंद की खेती कर रहे हैं. कमल कंद को क्षेत्रिय बोली में कमल ककड़ी या ढेंस भी कहा जाता है. जिले के कृषि विभाग के पास इसके उत्पादन के रकबे का कोई वास्तविक आंकड़ा नहीं है. यह खेती किसी आंकड़े पर स्थाई नहीं है, क्योंकि ज्यादातर ये ग्रामीण क्षेत्र में नदियों के किनारे, तलाबों और पोखरों में उगाई जाती है.

50 हजार तक की होती है आमदनी, फूल से जड़ तक होती है उपयोगी


बालोद से लेकर रायपुर तक मांग
कमल कंद की फसल काफी प्राकृतिक और खूबियों से भरी होती है. यह रेशेदार सब्जी है. इसकी खेती कम होने की वजह से इसकी मांग बालोद से लेकर रायपुर तक है. इसकी फसल से किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है. पिछले 20 सालों से किसान यहां कमल कंद की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'इसके साथ मछली पालन भी किया जा सकता है. बाजार में यह सब्जी कम आने की वजह से हाथों-हाथ बिक जाती है और ज्यादा कमाई की उम्मीद से किसान इसे महानगरों में भेज देते हैं.


50 हजार तक की होती है आमदनी
इस फसल की खेती करने में ज्यादा लागत की जरूरत नहीं है. इसमें बस मेहनत की जरूरत होती है. एक एकड़ में लगभग 50 हजार रुपये तक की आमदनी इस खेती से हो जाती है और सीजन में यह 20 से 30 रुपए प्रति बंडल के हिसाब से बेचा जाता है.


फूल से जड़ तक होती है उपयोगी
खेती करने वाले किसान बताते हैं कि 'इसके फूल से लेकर जड़ तक हर चीज उपयोगी होती हैं. कमल का फूल मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए जाता है, ढेंस की सब्जी बनाई जाती है, कमल के अंदर का फल जिसे पोखरा कहा जाता है उसे भी पूजा-पाठ में रखा जाता है और चाव से खाया जाता है. इसके साथ ही मछली पालन का कार्य भी अच्छे तरीके से किया जा सकता है.


ग्राहकों को होता है कमल कंद का इंतजार
किसान राम सिंह निषाद ने बताया कि, 'हर दिन एक व्यक्ति 10 हजार रुपये तक की फसल उगा सकता है. इस सब्जी की मांग इतनी हैं कि हम इसकी पूर्ति नहीं कर पाते हैं और तो और यह काफी पौष्टिक होता है और प्राकृतिक भी जिसके लिए ग्राहकों को काफी इंतजार रहता है.

बालोदः जिले के हीरापुर के तालाब सहित कई खेतों में किसान कमल कंद की खेती कर रहे हैं. कमल कंद को क्षेत्रिय बोली में कमल ककड़ी या ढेंस भी कहा जाता है. जिले के कृषि विभाग के पास इसके उत्पादन के रकबे का कोई वास्तविक आंकड़ा नहीं है. यह खेती किसी आंकड़े पर स्थाई नहीं है, क्योंकि ज्यादातर ये ग्रामीण क्षेत्र में नदियों के किनारे, तलाबों और पोखरों में उगाई जाती है.

50 हजार तक की होती है आमदनी, फूल से जड़ तक होती है उपयोगी


बालोद से लेकर रायपुर तक मांग
कमल कंद की फसल काफी प्राकृतिक और खूबियों से भरी होती है. यह रेशेदार सब्जी है. इसकी खेती कम होने की वजह से इसकी मांग बालोद से लेकर रायपुर तक है. इसकी फसल से किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है. पिछले 20 सालों से किसान यहां कमल कंद की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'इसके साथ मछली पालन भी किया जा सकता है. बाजार में यह सब्जी कम आने की वजह से हाथों-हाथ बिक जाती है और ज्यादा कमाई की उम्मीद से किसान इसे महानगरों में भेज देते हैं.


50 हजार तक की होती है आमदनी
इस फसल की खेती करने में ज्यादा लागत की जरूरत नहीं है. इसमें बस मेहनत की जरूरत होती है. एक एकड़ में लगभग 50 हजार रुपये तक की आमदनी इस खेती से हो जाती है और सीजन में यह 20 से 30 रुपए प्रति बंडल के हिसाब से बेचा जाता है.


फूल से जड़ तक होती है उपयोगी
खेती करने वाले किसान बताते हैं कि 'इसके फूल से लेकर जड़ तक हर चीज उपयोगी होती हैं. कमल का फूल मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए जाता है, ढेंस की सब्जी बनाई जाती है, कमल के अंदर का फल जिसे पोखरा कहा जाता है उसे भी पूजा-पाठ में रखा जाता है और चाव से खाया जाता है. इसके साथ ही मछली पालन का कार्य भी अच्छे तरीके से किया जा सकता है.


ग्राहकों को होता है कमल कंद का इंतजार
किसान राम सिंह निषाद ने बताया कि, 'हर दिन एक व्यक्ति 10 हजार रुपये तक की फसल उगा सकता है. इस सब्जी की मांग इतनी हैं कि हम इसकी पूर्ति नहीं कर पाते हैं और तो और यह काफी पौष्टिक होता है और प्राकृतिक भी जिसके लिए ग्राहकों को काफी इंतजार रहता है.

Intro:धान गेहूं एवं अन्य पारंपरिक फसल तो किसान करते ही हैं परंतु ग्राम हीरापुर के कृषकों ने एक अलग नमूना कृषि का निकाला है विगत 20 वर्षों से यहां किसान कमल कंद जिसे छत्तीसगढ़ में डेस के नाम से जाना जाता है।

बालोद

एक ओर जहां गंदे पानी और कीचड़ को देखकर लोग नाखूनों से कोर्स हैं वहीं दूसरी ओर यही पानी किसानों के लिए आजीविका का साधन बना हुआ ठहरे हुए पानी में कमल कंद की खेती करते हुए किसान लाखों रुपए कमा रहे हैं शासन द्वारा किसी तरह का अनुदान तो नहीं दिया जाता परंतु जिले के किसान दलदली जमीन पर इसकी खेती कर अपनी तकदीर सवार रहे हैं।




Body:बालोद जिले का एक गांव है हीरापुर जहां पर एक तालाब सहित खेतों में किसान कमल कंद की खेती कर रहे हैं इसी विभाग के पास भी इसके रख बे का वास्तविक आंकड़ा नहीं है क्योंकि यह खेती किसी आंकड़े पर नहीं पुल की एक सुचारू व्यवस्था पर संचालित होती है जो कि ग्रामीण परिवेश में उपलब्ध रहता है।

बालोद से लेकर रायपुर तक मांग

कमल कन्द जी से छत्तीसगढ़ में डेश के नाम से जाना जाता है यह फसल काफी प्राकृतिक होता है और खूबियों से भरा होता है परंतु यह काफी कम पाया जाता है क्योंकि इसकी खेती कम ही होती हैं इस खेती से उगने वाले फसल को लेकर बालों से लेकर रायपुर तक इसकी सप्लाई की जाती है और किसानों को एक अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है विगत 20 वर्षों से किसान यहां यही खेती कर रहे हैं और तो और उनका कहना है कि इसके साथ मछली पालन भी किया जा सकता है।


वीओ - अक्सर बाजार में यह सब्जी कम आती है आती भी है तो हांथो हाँथ बिक जाती है और अधिक कमाई की उम्मीद में कृषक बाहर महानगरों में भेज देते हैं।


Conclusion:इस फसल में नुकसान और लागत की ज्यादा जरूरत तो नहीं बस मेहनत की आवश्यकता होती है 1 एकड़ में लगभग 50000 की आमदनी इस खेती से हो जाती है और सीजन में यह 20 से ₹30 प्रति बंडल के हिसाब से बेचा जाता है इसकी खेती करने वाले किसान बताते हैं कि फूल से लेकर जड़ सभी इसका उपयोगी होता है फूल मंदिरों में पूजा-अर्चना के काम आते हैं डेस सब्जी बनाने का काम आता है और हाथों हाथ यह सब्जी बिक जाती है और सब्जी के साथ ही मछली पालन का कार्य भी अच्छे तरीके से किया जा सकता है।

वीओ - कृषक राम सिंह निषाद ने बताया कि प्रत्येक दिन एक व्यक्ति 10000 तक का माल यहां से बेच सकता है परंतु वह भी कम पड़ता है इस सब्जी की मांग इतनी हैं कि हम इसकी पूर्ति नहीं कर पाते हैं और तो और यह काफी पौष्टिक होता है और प्राकृतिक भी जिसके लिए ग्राहक काफी उत्सुक रहते हैं।

बाइट - संतानू निषाद, कृषक हीरापुर

बाइट - रामसिंह निषाद, कृषक

बाइट - हेमलता, गृहणी

बाइट - डॉमिन, सब्जी विक्रेता
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