बालोद: जिले के ग्राम करहीभदार से लेकर रनचिरई जामगांव तक सड़क चौड़ीकरण का कार्य शुरू हो चुका है. इससे लगभग 50 पीड़ित परिवारों को मुआवजे का अता-पता नहीं है. कुछ लोगों को मुआवजे का चेक तो दिया गया है, लेकिन वह चेक भी बाउंस होने लगा है. आखिर प्रशासनिक चेक बाउंस होने लगेंगे तो आम जनता किस पर भरोसा करेंगे? इसको लेकर पीड़ित लोगों द्वारा इसकी शिकायत प्रशासन से कर दी गई है. प्रशासन कुछ नहीं करती है तो आने वाले दिनों में लगभग 50 प्रभावित परिवार कोई ठोस कदम उठाएगी.
बता दें कि सड़क चौड़ीकरण का कार्य शुरू हो चुका है और राजस्व विभाग का अता-पता नहीं है. वहीं पीड़ित परिवारों का कहना है कि लगभग 2 साल से यह प्रकरण चल रहा है. नोटिस भेजे जा रहे हैं और किसी तरह के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है.
किया जा रहा चिह्नांकन
सड़क निर्माण को लेकर लगभग 50 घरों को तोड़ने के लिए चिह्नांकन शुरू कर लिया गया है. प्रभावित परिवार इस बात को लेकर चिंतित है कि मुआवजा जिस चेक के माध्यम से दिया जा रहा है. वह बाउंस होने लगा है. आखिर किस पर विश्वास करें. प्रशासन द्वारा पहले ही मकान तोड़ दिए जाते हैं और मुआवजे के लिए कार्यालय का चक्कर काटते है. आखिर वह किसके पास अपनी अर्जी लगाएंगे. राजस्व विभाग द्वारा अब तक मुआवजा प्रकरण को लेकर किसी तरह का निरीक्षण नहीं किया गया है. पीड़ित परिवार सामाजिक संगठन हिंद सेना के साथ जाकर प्रशासन को मामले से अवगत कराया गया है. इस दौरान सभी प्रभावित परिवार आक्रोशित नजर आए.
चेक हो रहा बाउंस
कुछ प्रभावित लोग द्वारा चेक बैंक में लगाया गया तो वह बाउंस हो गया. सभी लोगों को चेक संबंधित विभाग के माध्यम से दिया गया है. आने वाले दिनों में यह कितने चेक बाउंस होते हैं यह भी देखना दिलचस्प होगा? क्या इतने संवेदनशील मामले में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इतनी बड़ी लापरवाही कैसे की जा सकती है. प्रशासनिक चेक बाउंस होने लगेंगे तो फिर प्रभावित किससे न्याय की उम्मीद कर सकते हैं. प्रभावित परिवारों का घर तोड़ा जाता है तो उन्हें वर्तमान में रहने और खाने को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
लागत ज्यादा राहत कम
मुआवजे को लेकर प्रभावित परिवारों ने बताया कि घर को बनाने में जितनी लागत लगी है. उससे आधा पर मुआवजा दी जा रही है. हमें यह राशि मंजूर नहीं है और इसका विरोध करते हैं. 15,00,000 लाख रुपए के हमारे मकान की लागत है और 6,00,000 लाख रुपए का चेक पकड़ा दिया जा रहा है तो आखिर हमें हमारे लागत का पैसा कौन देगा? हम खून पसीने की मेहनत से यहां पर मकान बनाते हैं. सभी प्रभावित परिवार की लगभग यही समस्या है.